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बसों को लेकर होती रही राजनीति...इधर, कोटा और रावतभाटा के हजारों श्रमिक पैसा देकर गए अपने-अपने घर

देश में श्रमिक और बस को लेकर राजनीति हो रही है, हर कहीं यह मुद्दा छाया हुआ है, लेकिन कोटा की बात की जाए तो यहां व चित्तौड़गढ़ के रावतभाटा से हजारों की संख्या में श्रमिक अपने पैसे पर बस करते हुए अपने गृह राज्य गए हैं. यह क्रम अभी भी जारी है, करीब 50 बसों की स्वीकृति अभी भी कोटा जिला प्रशासन से बस ऑपरेटरों ने मांगी है.

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बसों को लेकर हो रही राजनीति
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Published : May 20, 2020, 7:32 PM IST

कोटा. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने जब से 1 हजार बसों को यूपी के श्रमिकों के लिए उपलब्ध करवाने की बात कही है, तब से ही देश में श्रमिक और बस को लेकर राजनीति हो रही है. हर कहीं यह मुद्दा छाया हुआ है, लेकिन कोटा की बात की जाए तो यहां व चित्तौड़गढ़ के रावतभाटा से हजारों की संख्या में श्रमिक अपने पैसे पर बस करते हुए अपने गृह राज्य गए हैं.

बसों को लेकर हो रही राजनीति

यह क्रम अभी भी जारी है, करीब 50 बसों की स्वीकृति अभी भी कोटा जिला प्रशासन से बस ऑपरेटरों ने मांगी है, जिसकी अनुमति मिलने के बाद हजारों की संख्या में श्रमिक पैसा देकर अपने गृह राज्य जाएंगे. इन श्रमिकों में अधिकांश से 3 से 4 हजार रुपए का किराया अपने गृह राज्य जाने के लिए दिया है. एक बस में सोशल डिस्टेंसिंग रखते हुए 25 से 30 लोगों को जगह दी गई है. वहीं 32 रुपए प्रति किलो मीटर में बस का खर्चा आ रहा है. ऐसे में जब बस हजारों किलोमीटर उनके घर छोड़कर आती है, तो उसका लाखों रुपए किराया बनता है. यह खर्चा बस में बैठे श्रमिक को ही वहन करना होता है.

यह भी पढ़ेंः राजनीतिक बसों पर यूपी में प्रवेश वर्जित...लेकिन, सरकारी बसें जा रही बॉर्डर पार, 3 दिनों में गईं 76 बसें

बसों की परमिशन बाकी है

बस मालिक संघ के प्रदेश महासचिव सत्यनारायण साहू का कहना है कि कोटा और रावतभाटा से 150 बसें मजदूरों को वर्कर भेजी गई है. उनका किराया मजदूरों ने ही दिया है, सरकार ने 32 रुपए किलोमीटर की दर से गई थी. उसी दर से हमने मजदूरों से पैसा लिया है. अभी 50 बसों की और परमिशन बाकी है. यह बसें पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड भेजी गई हैं.

घरों से मंगा कर दिया है किराया

कोटा में मजदूरी करने आए बिहार के मजदूरों का कहना है कि उन्होंने जो किराया बसों का दिया है. वह घरों से मंगाकर दिया है, जिन मजदूर के परिजन किराया भेज देते हैं. बस में सवार होकर जाने के लिए तैयार हो जाता है. जैसे ही बस हो जाने की परमिशन मिलती है. वह अपना किराया देता है और चला जाता है. अभी भी कई मजदूर ऐसे हैं. जिनके घर वाले किराया नहीं भेज पाए हैं ऐसे में उन्हें जाने की दिक्कत हो रही है.

कोटा. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने जब से 1 हजार बसों को यूपी के श्रमिकों के लिए उपलब्ध करवाने की बात कही है, तब से ही देश में श्रमिक और बस को लेकर राजनीति हो रही है. हर कहीं यह मुद्दा छाया हुआ है, लेकिन कोटा की बात की जाए तो यहां व चित्तौड़गढ़ के रावतभाटा से हजारों की संख्या में श्रमिक अपने पैसे पर बस करते हुए अपने गृह राज्य गए हैं.

बसों को लेकर हो रही राजनीति

यह क्रम अभी भी जारी है, करीब 50 बसों की स्वीकृति अभी भी कोटा जिला प्रशासन से बस ऑपरेटरों ने मांगी है, जिसकी अनुमति मिलने के बाद हजारों की संख्या में श्रमिक पैसा देकर अपने गृह राज्य जाएंगे. इन श्रमिकों में अधिकांश से 3 से 4 हजार रुपए का किराया अपने गृह राज्य जाने के लिए दिया है. एक बस में सोशल डिस्टेंसिंग रखते हुए 25 से 30 लोगों को जगह दी गई है. वहीं 32 रुपए प्रति किलो मीटर में बस का खर्चा आ रहा है. ऐसे में जब बस हजारों किलोमीटर उनके घर छोड़कर आती है, तो उसका लाखों रुपए किराया बनता है. यह खर्चा बस में बैठे श्रमिक को ही वहन करना होता है.

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बसों की परमिशन बाकी है

बस मालिक संघ के प्रदेश महासचिव सत्यनारायण साहू का कहना है कि कोटा और रावतभाटा से 150 बसें मजदूरों को वर्कर भेजी गई है. उनका किराया मजदूरों ने ही दिया है, सरकार ने 32 रुपए किलोमीटर की दर से गई थी. उसी दर से हमने मजदूरों से पैसा लिया है. अभी 50 बसों की और परमिशन बाकी है. यह बसें पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड भेजी गई हैं.

घरों से मंगा कर दिया है किराया

कोटा में मजदूरी करने आए बिहार के मजदूरों का कहना है कि उन्होंने जो किराया बसों का दिया है. वह घरों से मंगाकर दिया है, जिन मजदूर के परिजन किराया भेज देते हैं. बस में सवार होकर जाने के लिए तैयार हो जाता है. जैसे ही बस हो जाने की परमिशन मिलती है. वह अपना किराया देता है और चला जाता है. अभी भी कई मजदूर ऐसे हैं. जिनके घर वाले किराया नहीं भेज पाए हैं ऐसे में उन्हें जाने की दिक्कत हो रही है.

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