कोटा. देश के बड़े संस्थानों में पढ़ने के लिए पहले एंट्रेंस टेस्ट लिया जाता है. इसमें पास होने के लिए कोचिंग करवाई जाती है. जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक होती है वे अपने बच्चों की शिक्षा के इस भारी खर्च को वहन कर लेते हैं. लेकिन गरीब परिवारों के होनहार बच्चे इस रेस में काबिल होने के बावजूद पिछड़ जाते हैं. रिपोर्ट देखिये.
कोटा में कुछ कोचिंग संस्थान प्रतिभावान छात्रों को चयनित कर उन्हें अपने संस्थानों में पढ़ाई निशुल्क करवाते हैं. लेकिन उनके रहने खाने का खर्चा काफी ज्यादा होने के चलते वह भी संभव कम हो पाता है. ऐसे में राज्य सरकारों से उम्मीद की जाती है कि वे होनहार विद्यार्थियों की मदद करें. अगर उन्हें बेहतर कोचिंग मिले तो वे अच्छे मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर सकते हैं.
लाखो रुपए का खर्चा, गरीब के बस का नहीं
कोटा या फिर किसी भी बड़े संस्थान की बात की जाए जो मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करवाता है, वहां फीस 1 साल में एक लाख रुपए से ज्यादा ही है. ऐसे में उन विद्यार्थियों का रहने खाने का खर्चा मिलाकर करीब दो लाख रुपए तक हो जाता है. यह सामान्य परिवार के लोग ही वहन नहीं कर पाते. ऐसे में निचले गरीब तबके के लोगों के सामने तो और भी समस्या आ जाती है. ऐसे लोगों की मदद अधिकांश सरकारें नहीं करती हैं. इसके चलते जो गरीब परिवारों के प्रतिभावान बच्चे हैं, वे मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों तक नहीं पहुंच पाते हैं.
कलेक्टर ने 2017 में शुरू की योजना, तबादले के बाद बंद
आईएएस और आईआईटियन रोहित गुप्ता मई 2017 में कोटा के जिला कलेक्टर बने. उन्होंने अपनी ही तरह गरीब तबके के विद्यार्थियों को आईआईटियन बनाने का सपना भी देखा. इस पर काफी काम उन्होंने किया. साथ ही पूरे प्रदेश के 33 जिलों में उन्होंने नीट और जेईई परीक्षा की तैयारियां की कोचिंग बड़े संस्थानों में निशुल्क करवाने के लिए एक परीक्षा आयोजित की. इसमें प्रदेश के सभी जिलों के एडीएम को नोडल ऑफिसर बनाया. वहां पर परीक्षा 1 दिन करवाई गई.
इसमें 200 विद्यार्थियों को चयनित किया. जिनमें से करीब 100 विद्यार्थी मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस परीक्षा के लिए कोटा बुलाया गया. जिनको रहना, खाना और कोचिंग भी निशुल्क दिलाई गई. इनको हॉस्टल एसोसिएशन के जरिए एक हॉस्टल में एक बच्चे को रुकवाया गया. वहां उसके खाने-पीने का इंतजाम हुआ. साथ ही कोचिंग संस्थानों में निशुल्क उन्हें पढ़ाया गया. लेकिन अब उनका तबादला हो गया और उसके बाद यह योजना काम नहीं कर पाई. ये बच्चे 2 साल कोटा में रहे और निशुल्क पढ़ाई उन्होंने की.
टेस्ट लेकर देते हैं स्कॉलरशिप
कोटा के कोचिंग संस्थान टेस्ट लेकर छात्रों को स्कॉलरशिप देते हैं. इसमें एक स्कॉलरशिप के जरिये रूटीन की फीस छात्रों की कम कर दी जाती है. जो कि 10 से 90 फ़ीसदी तक होती है. जबकि एक दूसरा टेस्ट भी आयोजित किया जाता है जिसमें छोटे बच्चों को ही लाखों रुपए का नगद उपहार सहित उनकी पढ़ाई में भी स्कॉलरशिप दी जाती है. यहां तक कि सेना के जवानों और अधिकारियों के बच्चों को सीधा 15 फ़ीसदी फीस में छूट मिलती है.
गुजरात सरकार ने किया कोटा की कोचिंग संस्थान से एमओयू
गुजरात सरकार ने हाल ही में कोटा के एक बड़े कोचिंग संस्थान के साथ एमओयू किया है. जिसके बाद कोटा की कोचिंग संस्थानों के स्तर के चार सेंटर गुजरात के शहरों में खोले जाएंगे. जहां पर 1200 विद्यार्थियों को शिक्षा नगरी कोटा के कोचिंग संस्थान के जरिए मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं तैयारी करवाई जाएगी. इसमें 800 विद्यार्थियों की फीस गुजरात सरकार देगी. जबकि 400 विद्यार्थियों को कोचिंग संस्थान निशुल्क पढ़ाएंगे. इसके तहत सूरत, वडोदरा, राजकोट और अहमदाबाद में कोचिंग सेंटर खोले जाएंगे.
राज्य सरकारों को लिखा पत्र, प्रतिभावानों को निशुल्क पढ़ाने का आग्रह
कोटा की कोचिंग संस्थान के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट नितेश शर्मा का कहना है कि उन्होंने देशभर के कई राज्यों की सरकारों को आग्रह करने के लिए पत्र भी कई बार लिखे हैं. जिसमें वहां के प्रतिभावान छात्रों को निशुल्क पढ़ाने का आग्रह किया गया है. वह केवल उन बच्चों की कोटा में रहने खाने की व्यवस्था कर दें. उसके बाद निशुल्क मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस की तैयारी उन्हें संस्थान करवाएगा. साथ ही देश भर के कई प्रतिभावान बच्चों को वह अपने कोचिंग संस्थानों में पढ़ाते भी हैं.
राहत मिले तो कई प्रतिभावान बच्चे भी तोड़ें रिकॉर्ड
कई पेरेंट्स का कहना है कि वह अपने एक बच्चे की फीस तो वहन कोटा में कर पाते हैं, लेकिन बाकी की नहीं कर पाते. ऐसे में कई बार उन्हें समस्या आती है. अगर सरकारें बच्चों की मदद करें और एंट्रेंस की कोचिंग भी करवाएं, तो उनके बच्चे भी मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं को क्रेक कर पाएंगे और अच्छे संस्थानों में पढ़ पाएंगे.
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बच्चों का कहना है कि उनके साथ भी कई गरीब बच्चे पढ़ते थे, जो उनके बराबर ही इंटेलिजेंट होते हैं, लेकिन वह अपने मां बाप के पास पैसा नहीं होने के चलते कोटा में कोचिंग नहीं ले पाते हैं. ऐसा दूसरे शहरों में भी वह कोचिंग के लिए नहीं जा पाते हैं.
गुदड़ी के लाल स्कीम से भी फायदा
कोटा की कोचिंग संस्थान गुदड़ी के लाल स्कीम के तहत भी कई बच्चों को पढ़ाई में मदद करते हैं. ऐसे जो बच्चे गरीब तबके के होते हैं. उन्हें चयनित कर उन्हें पहले कोचिंग दी जाती है और जब वे सिलेक्ट हो जाते हैं, तो उनके बाद अगले 3 से 4 सालों तक उनकी पढ़ाई का खर्चा भी उठाते हैं. इसका सिलेक्शन का क्राइटेरिया भी कोचिंग संस्थान खुद ही तय करता है और बिल्कुल गरीब तबके के बच्चों को ही इसमें चुना जाता है.
लगातार चयनित होते हैं गरीब तबके के बच्चे
कोटा के कोचिंग संस्थानों में किसी तरह का कोई सुपर थर्टी बैच तो नहीं चलता है, लेकिन गरीब तबके के ऐसे कई बच्चों को यहां पर पढ़ाया जाता है. जिनमें से हर साल करीब एक से दो हजार बच्चे ऐसे संस्थानों में प्रवेश लेते हैं. जो कि एम्स और देश के टॉप मेडिकल कॉलेजों में भी प्रवेश लेते हैं, साथ ही आईआईटियन भी बनते हैं.
हरियाणा, छत्तीसगढ़ और एमपी सरकार भी करवा रही कोचिंग
देश की कई राज्य सरकारें अपने यहां के गरीब तबके के विद्यार्थियों को बड़े कोचिंग संस्थानों में निशुल्क कोचिंग भी करवा रही हैं. ऐसा हरियाणा मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में हो रहा है. वहां की सरकारें बच्चों का चयन करती है और उन्हें कोचिंग करवाती है ताकि वहां के बच्चे देश के बड़े इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों में पढ़ाई कर सकें. इसके लिए राज्य सरकारों ने देश के कई बड़े निजी कोचिंग संस्थानों के साथ एमओयू किए हुए हैं. हालांकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में केवल आदिवासी और एससी-एसटी के विद्यार्थियों को ही कोचिंग करवाई जाती है. जबकि हरियाणा में सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों को भी इसमें जोड़ा गया है.
किसी वर्ग के लिए नहीं है राजस्थान में स्कीम
शिक्षा नगरी कोटा जेईई और मेडिकल एंट्रेंस नीट परीक्षा में देश भर में सबसे ज्यादा बच्चों का चयन करवाती है, लेकिन राजस्थान के सरकार की तरफ से किसी भी छात्र को जेईई और नीट के एंट्रेंस की तैयारी नहीं करवाती है. किसी तरह की कोई स्कीम उनकी नहीं है. साथ ही कोटा में भी किसी तरह का कोई हॉस्टल भी ऐसे स्टूडेंट्स के लिए नहीं हैं, ताकि वे वहां पर रहकर कोचिंग कर सके. उन्हें केवल कोचिंग संस्थान की ही फीस देनी हो, केवल सरकारी स्कूलों या कॉलेजों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए ही इस तरह की हॉस्टल सुविधा मिली हुई है. जो भी एससी एसटी के वर्ग के बच्चों के लिए ही है.