कोटा. पूरे देश भर में जेकेलोन अस्पताल बच्चों की मौत (Newborns death in JK Lone Hospital) के लिए बदनाम रहा है. सर्दी का सीजन आते ही दिसंबर महीने में बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़ने से हर बार अस्पताल सुर्खियों में रहा लेकिन इस बार यह आंकड़ा काफी हद तक कंट्रोल में रहा है. सरकार ने भी इसके लिए 65 करोड़ रुपए का सुविधाएं विकसित करने में लगाया है. जिससे अस्पताल में आमूलचूल बदलाव हुआ है. अस्पताल पर मरीजों का विश्वास बढ़ने के साथ-साथ यहां पर मृत्यु दर भी कम आई है.
बीते सालों से ओपीडी में दोगने मरीज पहुंचे (OPD doubled in JK Lone) हैं. यहां तक की चिकित्सकों से लेकर नर्सिंग स्टाफ तक में भी बढ़ोतरी हुई है. इस आने वाले साल में जेके लोन अस्पताल में जहां बेड की संख्या ढाई गुना से भी ज्यादा बढ़ जाएगी. बीते साल केवल 186 बेड का यह अस्पताल था, जो अब बढ़कर 247 बेड का हो गया है लेकिन आने वाले साल में यह 440 बेड का हो जाएगा. जीवन रक्षक उपकरण, चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ और भर्ती करने की जगह में भी आमूलचूल बदलाव हुए (infrastructure increased in JK Lone Kota) हैं.
पहले जहां मशीनें खराब पड़ी रहती थी, अब चंद घंटों में उन्हें दुरुस्त करवाया जा रहा है. अस्पताल में 6 महीने के प्रीमेच्योर नवजात को भी बचाया जा रहा है. इसके अलावा कई ऐसे केस भी सामने आए हैं, जिनमें गंभीर अवस्था के बच्चे को बचाया गया है.
ओपीडी, आईपीडी बढ़ी, मौत का आंकड़ा गिरा
जेके लोन अस्पताल में जहां पर ओपीडी बढ़कर दुगने के आसपास हो गया (OPD increases in JK Lone) है. 2020 में 38 हजार मरीज ही ओपीडी में पहुंचे थे, 2021 में यह संख्या 64 हजार पहुंच गई है. इनमें से 2020 में 13960 बच्चे भर्ती हुए थे. अब यह 2021 में अब तक आंकड़ा बढ़कर 18854 पहुंच गया है. साफ दिखता है कि मरीजों का ट्रस्ट अस्पताल में बढ़ रहा है.
वहीं मृत्यु दर जो यहां पर भर्ती मरीजों में सामने आई (death rate in Jk Lone Kota) थी. वह पहले 6.8 फीसदी थी, जो कि अब गिरकर 3.76 फीसदी रह गई है. एनआईसीयू की मृत्यु दर भी 17.63 से गिरकर 7.8 प्रतिशत रह गई है. इसी तरह से पीआईसीयू में भर्ती मरीजों का मौत का प्रतिशत 13.64 से 8.30 फीसदी ही रह गया है.
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खराब उपकरणों से लेकर स्टाफ की भी मॉनिटरिंग
पहले जहां उपकरण खराब रहते थे, अब सभी उपकरणों के लिए पूरा सिस्टम बना दिया गया है. इसके अलावा मेडिकल कॉलेज में बायोमेडिकल भी लगाया गया है, जो सब उपकरणों को दुरुस्त करवाने पर ध्यान देता है. इसके अलावा सभी की सीएमसी करवाई हुई है, जिससे समय पर उनको सही किया जा सके. यहां तक कि अधिकांश उपकरण तो नए हैं, जो कि अभी गारंटी पीरियड में हुई है.
इसके अलावा भी उपकरण डेढ़ गुने है. जिससे किसी भी उपकरण के खराब होने पर दूसरे का तुरंत उपयोग किया जा सके. इसके अलावा लगे हुए स्टाफ की भी मॉनिटरिंग की जा रही है. हर चीज को कैलकुलेट किया जाता है, बच्चे की मौत होने पर उसकी ऑडिट की जा रही है. जिससे कि उसके मौत के कारण जो सामने आते हैं, उनमें रोक लगाई जा सके.
पीजी सीट बढ़कर 5 से 15, नर्सिंग कर्मी भी बढ़े
शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अमृता मयंगर ने बताया कि जेके लोन अस्पताल में सुविधाओं के बढ़ने के साथ ही पीजी सीट भी बढ़ गई है. पहले जहां पर केवल 5 ही पीजी सीट हुआ करती थी, अब यह बढ़कर 15 हो गई है. पहले जेके लोन अस्पताल में 73 नर्सिंग कर्मी ही पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट में कार्यरत थे लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 120 हो गई है.
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एनआईसीयू की बात की जाए तो पहले 24 नर्सिंग स्टाफ थे अब यह 72 काम कर रहे हैं. इसके अलावा कोठे के जेके लोन अस्पताल को स्टेट न्यूबोर्न रिसोर्स सेंटर के रूप में भी डाउनलोड किया जा रहा है. इसके तहत कोटा संभाग के पेरीफेरी में लगे हुए चिकित्सकों को पीडियाट्रिक्स विभाग ट्रेनिंग देता है, जिससे छोटे बच्चों के नवजात और शिशुओं की केयर रूरल हेल्थ सेंटरों पर अच्छी तरह से हो सके.
एनआईसीयू चार और पीआईसीयू 5 गुना बढ़ोतरी
जेके लोन अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. गोपीकिशन शर्मा का कहना है कि अस्पताल में बेड क्षमता 2022 में ढाई गुना बढ़ जाएंगी. जबकि एनआईसीयू के बेड में 4 गुना बढ़ोतरी होगी. इसी तरह से पीआईसीयू के बेड में भी 5 गुना बढ़ोतरी हो रही है. हालांकि जनरल वार्ड के बेड कम हो जाएंगे लेकिन सभी वार्ड में मेडिकल गैस पाइपलाइन और सेंट्रलाइज्ड एसी रहेगा. इसके अलावा 18 बेड का डे केयर सेंटर भी संचालित किया जाएगा. वहीं मदर विद बेबी वार्ड भी बनाया जा रहा है. जिससे ऐसे नवजात जिनकी मां भी बीमार है और बच्चा भी उन्हें एक साथ रखा जा सके.
हमारा टारगेट 3.5 प्रतिशत से कम मृत्यु दर रखना
पीडियाट्रिक एचओडी डॉ. अमृता मयंगर ने दावा किया है कि मरीजों का विश्वास लगातार बढ़ रहा है. इससे हमारे अस्पताल में बड़ी संख्या में मरीज आ भी रहे हैं. अस्पताल में एक भी नवजात शिशु या बच्चा चिकित्सा सुविधाओं की कमी के चलते नहीं मरा है. मौत का आंकड़ा 700 जरूर है लेकिन भर्ती मरीजों की संख्या भी काफी ज्यादा है. इनमें गंभीर बीमार नवजात और प्रीमेच्योर भी शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि पूरे देश भर के बड़े अस्पतालों में भी इस तरह के गंभीर बीमारियों के नवजात और प्रीमेच्योर से मृत्यु दर कम है. हर बच्चे की डेट ऑडिट कर सुधार कर रहे हैं. उनका कहना है कि हमारा टारगेट इसको 3.5 प्रतिशत से भी कम रखना है. अस्पताल में पीडियाट्रिक विभाग के चिकित्सकों से लेकर नर्सिंग स्टाफ, अस्पताल प्रबंधन और मेडिकल कॉलेज से भी पूरा सहयोग अस्पताल को मिल रहा है. सरकार ने भी काफी सुविधाएं उपलब्ध कराई है. जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते थे.
कई उपकरण अस्पताल में इंस्टॉल-
पोर्टेबल सोनोग्राफी मशीन: वार्ड एनआईसीयू और पीआईसीयू में ही नवजात और शिशु मरीजों के लिए सोनोग्राफी उपलब्ध कराने के लिए 20 लाख की मशीन स्थापित है
पेटिटोरियल डायलिसिस: नवजात बच्चों के किडनी काम नहीं करने पर उनके डायलिसिस का उपयोग की जाती है, ताकि ऐसे गंभीर बच्चों की जान बचाई जा सके
फ्लेक्सिबल ब्रोंकोस्कॉप: श्वास की बीमारियों में नवजात बच्चों की जांच के लिए
पीडियाट्रिक एंडोस्कोप: बच्चों के पेट, श्वास व आहार की नली, फेफड़ों की जांच के लिए उपयोगी
स्वेट क्लोराइड एनालाइजर: सिस्टिक फाइब्रोसिस वह फेफड़ों की बीमारी में पसीने की जांच के लिए उपयोगी मशीन है