कोटा. स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत कोटा में हजारों करोड़ों के काम करवाए जा रहे हैं. जिनके जरिए शहर स्मार्ट और ट्रैफिक के मामले में विश्व स्तरीय शहरों की बराबरी कर सकेगा. लेकिन, कोटा शहर में आज भी निजी बस स्टैंड की दरकरार है. कोटा शहर के लिए एक भी निजी बस स्टैंड चिन्हित नहीं है, जहां से सभी जगह के लिए बसें संचालित हो सके. यात्रियों को बस बदलने के लिए जगह भी बदलनी पड़ती है, जिससे काफी परेशानी होती है. हालांकि, बसों से टैक्स वसूली करने वाले परिवहन विभाग के अधिकारी इस मामले में नगर विकास न्यास की जिम्मेदारी बताते हैं. उनका कहना है कि बस स्टैंड बनाना स्थानीय प्रशासन का ही काम है. जबकि, यूआईटी के अधिकारी कहते हैं कि वे जल्द ही इस संबंध में कार्यवाही कर रहे हैं. देखें ये खास रिपोर्ट...
अलग-अलग बस स्टैंड...
कोटा शहर में निजी बसों के लिए जगह-जगह अड्डे बने हुए हैं. जिनमें सांगोद की तरफ जाने वाली बसों के लिए छावनी से ही यात्रियों को आना पड़ता है. यहां से ही बारां जिले के छबड़ा और छिपाबड़ोद जाने वाली बसें भी मिलती है, जो कि सांगोद होकर की जाती है. इसी तरह से बारां जाने वाली बसों को महर्षि नवल सर्किल के आसपास रतन कचोरी के पास खड़ी मिलती है. बूंदी और जयपुर की तरफ जाने वाली बसें नयापुरा चौराहे से पुलिया की तरफ जाने वाली सड़क पर खड़ी मिलती है. बारां के लिए बसें जवाहर नगर से भी संचालित होती है. रावतभाटा के लिए घोड़े वाले बाबा चौराहे से संचालित होती है. बूंदी और नैनवा के लिए न्यू क्लॉथ मार्केट के आसपास से बसें मिलती हैं. इसके अलावा सीबी गार्डन के बाहर तो बसों के रेलम पेल ही लगी रहती है. यहां से कोटा जिले के इटावा से लेकर मध्यप्रदेश के श्योपुर तक बसें संचालित होती हैं.
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स्लीपर कोच के लिए कोई दायरा नहीं...
कोटा शहर से काफी स्लीपर कोच बसें संचालित हो रही हैं. सभी बसों के लिए अलग-अलग चौराहे निश्चित किए हुए हैं, जहां से यात्रियों को बैठाया जाता है. इसके चलते शाम के समय इन चौराहों पर भी ट्रैफिक जाम की स्थिति हो जाती है. जिनमें छावनी चौराहा, केशवपुरा चौराहे के नजदीक, जवाहर नगर व सीबी गार्डन शामिल है. जबकि, नयापुरा के विवेकानंद चौराहे पर कई बस ऑपरेटरों ने अपने ऑफिस डाले हुए हैं. ऐसे में उन सब के ऑफिस के बाहर ही बसें खड़ी हो जाती है.
80 फीट रोड पर नहीं थी पर्याप्त जगह...
नगर विकास न्यास में करीब 10 साल पहले 80 फीट रोड पर एक जगह को चिन्हित किया गया. जहां पर निजी बसों के लिए स्टैंड बनाया जाना था. इसके लिए वहां पर एक रूम के साथ-साथ सुविधाएं भी जुटाई गई. इसके लिए एमओयू भी बस मालिक संघ के साथ नगर विकास न्यास ने किया था. जिसमें कुछ राशि बस ऑपरेटरों को भी जमा करानी थी, लेकिन सभी बस ऑपरेटरों में जगह कम होने के चलते वहां पर बसें नहीं खड़ी की. बस वहां से संचालित नहीं हो सकी. सालों तक वीरान रहने के बाद इसके बाद यूआईटी ने जगह वापस ले लिया और अभी नगर निगम की सिटी बसों को यहां पर खड़ा किया गया है.
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एमबीएस मार्ग पर भी नहीं बन सका निजी बस स्टैंड...
80 फीट रोड के बस स्टैंड का प्लान फेल होने के बाद नगर विकास न्यास ने बस ऑपरेटरों की सहमति से बस मालिक संघ को एमबीएस मार्ग पर ट्रक यूनियन के नजदीक निजी बस स्टैंड संचालित करने के लिए कहा, लेकिन वहां भी प्लान फेल हो गया. बस मालिकों का कहना है कि वहां जमीन सड़क से 10 फीट गड्ढे में है, ऐसे में उस जगह बसों को नहीं खड़ा किया जा सकता है.
सालाना एक करोड़ का टैक्स, फिर भी सुविधा नहीं...
बस मालिक संघ के अध्यक्ष सत्यनारायण साहू का कहना है उन्होंने हाल ही में मांग की है कि प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर निजी बसों को खड़ा करने के लिए स्टैंड होना चाहिए, ताकि यात्रियों को रोडवेज बस स्टैंड की मुकाबले की सुविधा मिल सके. उन्होंने कहा कि कोटा से करीब 750 बसें संचालित होती है, जो कि हर महीने एक करोड़ रुपए परिवहन टैक्स भी राज्य सरकार को जमा करा रही है, लेकिन इसके बावजूद भी निजी बसों को खड़ा करने के लिए एक भी बस स्टैंड नहीं है.
देश भर से आते हैं बच्चे...
कोटा शहर में दो लाख के करीब कोचिंग के छात्र पढ़ने के लिए हर साल आते हैं. कोटा से करीब हर बड़े शहर के लिए बस सेवा निजी तौर पर संचालित हो रही है. जिनमें स्लीपर, एसी कोच के साथ-साथ वोल्वो बसें भी शामिल हैं, लेकिन निजी बस स्टैंड नहीं होने के चलते उन्हें असुविधा होती है.