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स्पेशल स्टोरी: कोटा में 'मुद्रा भंडार', एडवोकेट शैलेश के पास है 2500 सालों के प्रचलित सिक्के और मोहरें - Advocate Shailesh has 2500 years old coins and stamps

देश में प्रचलित मुद्रा की तस्वीर बदलने का इतिहास काफी पुराना है. जैसें रियासतें बदली, शासक बदले, वैसे-वैसे भारतवर्ष में चलने वाली मुद्रा सिक्कों की तस्वीर भी बदलती रही है. कभी बिंदु आकार के सिक्के प्रचलन में आए तो कभी पंचमार्क सिक्के. कभी तांबे के सिक्के आए तो कभी चांदी-सोने के सिक्के प्रचलन में रहे. सिक्कों का यह इतिहास 2500 साल पुराना है.

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Published : Nov 15, 2019, 2:37 PM IST

Updated : Nov 15, 2019, 2:44 PM IST

कोटा. नोटबंदी को 3 साल हो गए हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में ही भारतीय मुद्रा की तस्वीर नहीं बदली है. बल्की देश में प्रचलित मुद्रा की तस्वीर बदलने का इतिहास काफी पुराना है. जैसे-जैसे रियासतें बदली, शासक बदले, वैसे-वैसे भारतवर्ष में चलने वाली मुद्रा और सिक्कों की तस्वीर भी बदलती रही.

सिक्कों का 2500 साल पुराना इतिहास

सिक्कों का यह इतिहास करीब 2500 साल पुराना है. यानी 500 ईसा पूर्व का है. जब सिक्कों का प्रचलन ज्ञात हुआ था. कभी बिंदु आकार के सिक्के प्रचलन में आए तो कभी पंचमार्क के सिक्कों का बोलबाला रहा. कभी तांबे के सिक्के आए तो कभी चांदी-सोने के सिक्के प्रचलन में रहे. इसमें गुप्त काल से लेकर मुगलकाल और सुल्तान के साथ अलग-अलग स्टेट की भी अलग-अलग मुद्राएं हुआ करती थी.

2500 साल पुराना है सिक्कों का इतिहास

समय बदला, शताब्दी बदली, शासक बदले और मुद्रा की तस्वीरें बदलती गई. आज के दौर में जहां सबसे आधुनिक मुद्रा के रूप में क्रिप्टो करेंसी बिटकॉइन भी प्रचलन में आ चुकी है. वहीं कोटा निवासी इतिहासकार और वरिष्ठ मुद्रा विशेषज्ञ एडवोकेट शैलेश जैन के पास मौजूद सिक्कों पर नजर डाली जाए जो भारतवर्ष के इतिहास के उस दौर में ले जाएंगी, जब पंचमार्क सिक्कों का चलन था.

यह इतिहास करीब ढाई हजार साल पुराना है. जब मुद्रा के नाम पर धातु के टुकड़े पर महज एक छाप लगा दी जाती थी. जिसे पंचमार्क सिक्का नाम दिया गया. उस समय शासक अपना फोटो एक धातु के टुकड़े पर छाप देते थे. हर राजा पंचमार्क सिक्कों पर अलग-अलग 5 निशान छापते थे. जिससे कि पता चल सके कि कौनसा सिक्का किस जनपद का है. शैलेश जैन ने बताया कि उस समय कुल 14 जनपद हुआ करती थी. जिनमें सबकी अलग-अलग मुद्रा थी.

ये पढ़ेंः स्पेशल स्टोरीः 'सुनीता यादव और गोपाल सिंह' जयपुर के इस पाठशाला के बच्चों के सपनों में लगा रहे पंख

हर दौर के सिक्कों का कलेक्शन

मुद्रा विशेषज्ञ जैन के पास लगभग हर शताब्दी और शासकों के दौर के सिक्के मौजूद हैं. जिनमें सबसे पुराना लगभग चौथी शताब्दी के समय शासक राजा हर्षवर्धन का सिक्का भी मौजूद है. जिस पर राजा का फोटो छपा हुआ है. जिनके पास प्राचीन मुद्राओं का एक कलेक्शन बेहद रोचक व महत्वपूर्ण है. प्राचीन मुद्राओं का यह कलेक्शन बताता है कि वक्त व आवश्यकताओं के बदलते दौर में मुद्राओं के स्वरूप में भी परिवर्तन आया है.

ये भी पढ़ेंः चूरू का घंटेल गांव; यहां एक भी मुस्लिम परिवार नहीं, हिंदू भाई करते हैं पीर बाबा की दरगाह में पूजा और मांगते हैं दुआएं

ये है सिक्कों के चलन का क्रम

मुद्रा विशेषज्ञ जैन का कहना है कि सिक्कों के ढाई हजार साल के इतिहास में पंचमार्क सिक्कों के बाद मौर्य वंश और फिर कुषाण आए, जिसके बाद गुप्त वंशजों ने राज किया और फिर सुल्तान आए. इसके बाद मुगल शासन आया. जिसके बाद ब्रिटिश हुकुमत ने राज किया और हर बार मुद्रा सिक्कों की तस्वीर बदलती रही. बदलते शासन में पंचमार्क सिक्कों से रिपब्लिक मुद्रा तक के सिक्के विभिन्न आकार लेते रहे.

ये पढ़ेंः स्पेशल स्टोरी: अच्छे भाव के चलते बढ़ रहा कोटा संभाग में लहसुन का रकबा, 1 लाख पहुंचने का अनुमान

सिक्कों पर ब्रह्म, नागरी और उर्दू लिपि

अलग-अलग टकसालों से अलग-अलग आकार के धातु के सिक्के बनते थे और प्रचलन में रहते थे. इन सिक्कों पर अलग-अलग दौर में प्रचलित अलग-अलग भाषाओं में छपी होती थी. लगभग 2000 साल पहले के इतिहास को याद करते हुए शैलेश जैन ने बताया कि 2000 साल पहले ब्रह्म लिपि का प्रचलन था. इसलिए उस दौर में मुद्रा पर ब्रह्म लिपि में शासक का नाम और रियासत का नाम बेहद छोटे अक्षरों में छपा होता था. इसके बाद नागरी लिपि आई और फिर 7वीं शताब्दी में सुल्तानों का शासन आया. जिसके बाद मुगल काल के अंत तक सिक्कों में उर्दू में जानकारी लिखी जाती थी.

बूंद आकार के सिक्के

रियासतों में शासकों ने कभी बूंद जैसे छोटे सिक्के चलाए तो कभी कील जैसे सिक्के भी प्रचलन में थे. वजन और काम के हिसाब से मुद्रा चलाई जाती थी. जैसे वर्तमान में भारत में सबसे बड़ी मुद्रा के रूप में 2000 के नोट का प्रचलन में है, वैसे ही तत्कालीन शासकों ने बड़ी मुद्रा के तौर पर सोने की मोहरें चला रखी थी. जिसका सबसे बड़ा श्रेय राजा समुद्रगुप्त को जाता है. जिनके दौर में सबसे ज्यादा सोने की मुद्रा का प्रचलन था.

कोटा. नोटबंदी को 3 साल हो गए हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में ही भारतीय मुद्रा की तस्वीर नहीं बदली है. बल्की देश में प्रचलित मुद्रा की तस्वीर बदलने का इतिहास काफी पुराना है. जैसे-जैसे रियासतें बदली, शासक बदले, वैसे-वैसे भारतवर्ष में चलने वाली मुद्रा और सिक्कों की तस्वीर भी बदलती रही.

सिक्कों का 2500 साल पुराना इतिहास

सिक्कों का यह इतिहास करीब 2500 साल पुराना है. यानी 500 ईसा पूर्व का है. जब सिक्कों का प्रचलन ज्ञात हुआ था. कभी बिंदु आकार के सिक्के प्रचलन में आए तो कभी पंचमार्क के सिक्कों का बोलबाला रहा. कभी तांबे के सिक्के आए तो कभी चांदी-सोने के सिक्के प्रचलन में रहे. इसमें गुप्त काल से लेकर मुगलकाल और सुल्तान के साथ अलग-अलग स्टेट की भी अलग-अलग मुद्राएं हुआ करती थी.

2500 साल पुराना है सिक्कों का इतिहास

समय बदला, शताब्दी बदली, शासक बदले और मुद्रा की तस्वीरें बदलती गई. आज के दौर में जहां सबसे आधुनिक मुद्रा के रूप में क्रिप्टो करेंसी बिटकॉइन भी प्रचलन में आ चुकी है. वहीं कोटा निवासी इतिहासकार और वरिष्ठ मुद्रा विशेषज्ञ एडवोकेट शैलेश जैन के पास मौजूद सिक्कों पर नजर डाली जाए जो भारतवर्ष के इतिहास के उस दौर में ले जाएंगी, जब पंचमार्क सिक्कों का चलन था.

यह इतिहास करीब ढाई हजार साल पुराना है. जब मुद्रा के नाम पर धातु के टुकड़े पर महज एक छाप लगा दी जाती थी. जिसे पंचमार्क सिक्का नाम दिया गया. उस समय शासक अपना फोटो एक धातु के टुकड़े पर छाप देते थे. हर राजा पंचमार्क सिक्कों पर अलग-अलग 5 निशान छापते थे. जिससे कि पता चल सके कि कौनसा सिक्का किस जनपद का है. शैलेश जैन ने बताया कि उस समय कुल 14 जनपद हुआ करती थी. जिनमें सबकी अलग-अलग मुद्रा थी.

ये पढ़ेंः स्पेशल स्टोरीः 'सुनीता यादव और गोपाल सिंह' जयपुर के इस पाठशाला के बच्चों के सपनों में लगा रहे पंख

हर दौर के सिक्कों का कलेक्शन

मुद्रा विशेषज्ञ जैन के पास लगभग हर शताब्दी और शासकों के दौर के सिक्के मौजूद हैं. जिनमें सबसे पुराना लगभग चौथी शताब्दी के समय शासक राजा हर्षवर्धन का सिक्का भी मौजूद है. जिस पर राजा का फोटो छपा हुआ है. जिनके पास प्राचीन मुद्राओं का एक कलेक्शन बेहद रोचक व महत्वपूर्ण है. प्राचीन मुद्राओं का यह कलेक्शन बताता है कि वक्त व आवश्यकताओं के बदलते दौर में मुद्राओं के स्वरूप में भी परिवर्तन आया है.

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ये है सिक्कों के चलन का क्रम

मुद्रा विशेषज्ञ जैन का कहना है कि सिक्कों के ढाई हजार साल के इतिहास में पंचमार्क सिक्कों के बाद मौर्य वंश और फिर कुषाण आए, जिसके बाद गुप्त वंशजों ने राज किया और फिर सुल्तान आए. इसके बाद मुगल शासन आया. जिसके बाद ब्रिटिश हुकुमत ने राज किया और हर बार मुद्रा सिक्कों की तस्वीर बदलती रही. बदलते शासन में पंचमार्क सिक्कों से रिपब्लिक मुद्रा तक के सिक्के विभिन्न आकार लेते रहे.

ये पढ़ेंः स्पेशल स्टोरी: अच्छे भाव के चलते बढ़ रहा कोटा संभाग में लहसुन का रकबा, 1 लाख पहुंचने का अनुमान

सिक्कों पर ब्रह्म, नागरी और उर्दू लिपि

अलग-अलग टकसालों से अलग-अलग आकार के धातु के सिक्के बनते थे और प्रचलन में रहते थे. इन सिक्कों पर अलग-अलग दौर में प्रचलित अलग-अलग भाषाओं में छपी होती थी. लगभग 2000 साल पहले के इतिहास को याद करते हुए शैलेश जैन ने बताया कि 2000 साल पहले ब्रह्म लिपि का प्रचलन था. इसलिए उस दौर में मुद्रा पर ब्रह्म लिपि में शासक का नाम और रियासत का नाम बेहद छोटे अक्षरों में छपा होता था. इसके बाद नागरी लिपि आई और फिर 7वीं शताब्दी में सुल्तानों का शासन आया. जिसके बाद मुगल काल के अंत तक सिक्कों में उर्दू में जानकारी लिखी जाती थी.

बूंद आकार के सिक्के

रियासतों में शासकों ने कभी बूंद जैसे छोटे सिक्के चलाए तो कभी कील जैसे सिक्के भी प्रचलन में थे. वजन और काम के हिसाब से मुद्रा चलाई जाती थी. जैसे वर्तमान में भारत में सबसे बड़ी मुद्रा के रूप में 2000 के नोट का प्रचलन में है, वैसे ही तत्कालीन शासकों ने बड़ी मुद्रा के तौर पर सोने की मोहरें चला रखी थी. जिसका सबसे बड़ा श्रेय राजा समुद्रगुप्त को जाता है. जिनके दौर में सबसे ज्यादा सोने की मुद्रा का प्रचलन था.

Intro:देश में प्रचलित मुद्रा की तस्वीर बदलने का इतिहास काफी पुराना है. जैसे रियासते बदली, शासक बदले, वैसे-वैसे भारतवर्ष में रियासतों में चलने वाली मुद्रा सिक्कों की तस्वीर भी बदलती रही है. कभी बिंदु आकार के सिक्के प्रचलन में आए, तो कभी पंचमार्क सिक्के, कभी तांबे के सिक्के आए, तो कभी चांदी-सोने के सिक्के प्रचलन में रहे. सिक्कों का यह इतिहास 2500 साल पुराना है. यानी की 500 ईसा पूर्व का है.







Body:कोटा.
नोटबंदी को 3 साल हो गए हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में ही भारतीय मुद्रा की तस्वीर नहीं बदली है. देश में प्रचलित मुद्रा की तस्वीर बदलने का इतिहास काफी पुराना है. जैसे रियासते बदली, शासक बदले, वैसे-वैसे भारतवर्ष में रियासतों में चलने वाली मुद्रा सिक्कों की तस्वीर भी बदलती रही है. कभी बिंदु आकार के सिक्के प्रचलन में आए, तो कभी पंचमार्क सिक्के, कभी तांबे के सिक्के आए, तो कभी चांदी-सोने के सिक्के प्रचलन में रहे. सिक्कों का यह इतिहास 2500 साल पुराना है. यानी की 500 ईसा पूर्व का है. जब यह सिक्कों का प्रचलन ज्ञात हुआ था. इसमें गुप्त काल से लेकर मुगलकाल, कुशानो और सुल्तान के साथ अलग-अलग स्टेट की भी अलग-अलग मुद्राएं हुआ करती थी.

2500 साल पुराना है सिक्कों का इतिहास
समय बदला, शताब्दी बदली, शासक बदले और मुद्रा की तस्वीर बदलती गई. आज के दौर में जहां सबसे आधुनिक मुद्रा के रूप में क्रिप्टो करेंसी बिटकॉइन भी प्रचलन में आ चुकी है.
वहीं कोटा निवासी इतिहासकार और वरिष्ठ मुद्रा विशेषज्ञ एडवोकेट शैलेश जैन के पास मौजूद सिक्कों पर नजर डाली जाए जो भारतवर्ष के इतिहास के उस दौर में ले जाएगी, जब मुद्रा के नाम पर धातु के टुकड़े पर महज एक छापा लगा दिया जाता था. जिसे पंचमार्क सिक्का नाम दिया गया.
यह इतिहास करीब ढाई हजार साल पुराना है. उस समय शासक अपना फोटो एक धातु के टुकड़े पर छाप देते थे. जिससे पंचमार्क सिक्कों का नाम किया गया. हर राजा पंचमार्क सिक्कों पर अलग-अलग 5 निशान छापते थे, जिससे कि पता चल सके कि कौनसा सिक्का किस जनपद का है. शैलेश जैन का कहना है कि कुल 14 जनपद में हुआ करती थी सबकी अलग-अलग मुद्रा थी.
मुद्रा विशेषज्ञ जैन का कहना है कि सिक्कों के ढाई हजार साल के इतिहास में पंचमार्क सिक्कों के बाद मौर्य वंश जाए और फिर कुषाण आए, जिसके बाद गुप्त वंशजों ने राज किया और फिर सुल्तान आए, फिर मुगल शासन आया. जिसके बाद भी ब्रिटिश ने राज किया और हर बार मुद्रा सिक्कों की तस्वीर बदलती रही. बदलते शासन में पंचमार्क सिक्कों से रिपब्लिक मुद्रा तक के सिक्के विभिन्न आकार लेते रहे.

बूंद आकार के सिक्के
रियासतों में शासकों ने कभी बूंद जैसे छोटे सिक्के चलाए तो कभी कील जैसे सिक्के भी प्रचलन में थे, वजन और काम के हिसाब से मुद्रा चलाई जाती थी. आज के दौर में 2000 का नोट सबसे बड़ा प्रचलन में है, वैसे ही तत्कालीन शासकों ने बड़ी मुद्रा के तौर पर सोने की मोहरें चला रखी थी. जिसका सबसे बड़ा श्रेय राजा समुद्रगुप्त को जाता है, जिसके दौर में सबसे ज्यादा सोने की मुद्रा का प्रचलन था. मुद्रा विशेषज्ञ शैलेश जैन के अनुसार विजय नगर साम्राज्य में सोने के सिक्के में थे जो संभवतः सबसे छोटे आकार की मुद्रा रही होगी.




Conclusion:ब्रह्म, फिर नागरी व उर्दू
अलग-अलग टकसालों से अलग-अलग आकार के धातु के सिक्के बनते थे और प्रचलन में रहते थे. इन सिक्कों पर अलग-अलग दौर में प्रचलित अलग-अलग भाषाओं में छपी होती थी. लगभग 2000 साल पहले के इतिहास को याद करते हुए शैलेश जैन ने बताया कि 2000 साल पहले ब्रह्म लिपि का प्रचलन था, इसलिए उस दौर में मुद्रा पर ब्रह्म लिपि में शासक का नाम और रियासत का नाम बेहद छोटे अक्षरों में छपा होता था. इसके बाद नागरी लिपि आई और फिर सातवीं शताब्दी में सुल्तानों का शासन आया. जिसके बाद मुगल काल के अंत तक सिक्कों में उर्दू में जानकारी लिखी जाती थी.


हर शताब्दी व शासको के सिक्के
मुद्रा विशेषज्ञ जैन के पास लगभग हर शताब्दी और शासकों के दौर के सिक्के मौजूद हैं. जिनमें सबसे पुराना लगभग चौथी शताब्दी के समय शासक राजा हर्षवर्धन का सिक्का भी मौजूद है. जिस पर राजा का फोटो छपा हुआ है. जिनके पास प्राचीन मुद्राओं का एक कलेक्शन बेहद रोचक वह महत्वपूर्ण है. प्राचीन मुद्राओं का यह कलेक्शन बताता है कि वक्त व आवश्यकताओं के बदलते दौर में मुद्राओं के स्वरूप में भी परिवर्तन आया है.


बाइट-- शैलेश जैन, मुद्रा विशेषज्ञ और इतिहासकार
Last Updated : Nov 15, 2019, 2:44 PM IST
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