कोटा. पीएम नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे किसानों पर भारी पड़ता नजर आ रहा है. राजस्थान से गुजरने वाले इस एक्सप्रेस-वे का करीब 140 किलोमीटर का हिस्सा कोटा और बूंदी जिले से गुजरेगा. प्रोजेक्ट की डिजाइन तैयार करने के दौरान (Expressway Construction in Rajasthan) एक छोटी सी चूक ने करीब 5000 किसानों के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है. जिस जगह से यह प्रोजेक्ट निकल रहा है, वहां के किसानों की खेती की जमीन दो हिस्सों में बंट गई है. जिससे उनके सामने अपने खेतों तक आवागमन के साथ ही सिंचाई करना भी मुश्किल होता जा रहा है.
कोटा-बूंदी से निकल रहे इस एक्सप्रेस-वे में करीब 140 किलोमीटर का एरिया आ रहा है. इसमें से करीब 50 किलोमीटर के एरिया में दाएं तरफ चंबल और बाएं तरफ मुख्य नहर का कमांड एरिया आता है. यहां के किसान अब रोने को मजबूर हो गए हैं. क्योंकि इस प्रोजेक्ट के चलते नहरी तंत्र का एलाइमेंट ही बदल दिया है. जिन भी किसानों के खेत के ऊपर से यह एक्सप्रेस-वे निकला है, अब उनके खेत दो हिस्सों में बट गए हैं. ऐसे में अब किसानों के पास सड़क के दूसरी तरफ के खेत के लिए पानी की सुविधा अटक गई है.
बिजली का कनेक्शन भी खेत के एक तरफ वाले हिस्से में आ गया है, जबकि सड़क के दूसरी तरफ वाले खेत में नलकूप की मोटर डली हुई है. जिसके कारण इस मोटर का भी उपयोग नहीं हो रहा है. वहीं, नहरी तंत्र के स्ट्रक्चर के टूट जाने के चलते (Bharat Mala Project Creates Irrigation Problem in Rajasthan) खेतों में पानी भरने की समस्या भी अब आम हो गई है. इसके चलते सैकड़ों बीघा जमीन पर खेती आने वाले समय में मुश्किल हो जाएगी. क्योंकि उनके खेतों में बारिश का पानी जमा रहेगा. इस स्थति से करीब 5000 किसान प्रभावित हो रहे हैं. अब किसान अपनी इस समस्या को लेकर लगातार सरकारी कार्यालयों पर गुहार लगा रहे हैं.
किसानों का कहना है कि अब उनके पास में एक ही रास्ता बचा है कि इस (Rajasthan Farmers on Delhi Mumbai Expressway) एक्सप्रेस-वे के निर्माण को रोक दें और इसके लिए वे लंबा आंदोलन भी करने के मूड में नजर आने लगे हैं. दीगोद की उपखंड अधिकारी पुष्पा हरवानी का कहना है कि नहरी तंत्र को नुकसान पहुंचा है. किसानों के आने-जाने के रास्ते जो बंद हुए हैं. इस संबंध में उच्चाधिकारियों को अवगत करा दिया है. यहां तक कि संभागीय आयुक्त ने भी इस संबंध में मीटिंग ली है और दिशा-निर्देश दिए हैं. नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अधिकारियों को भी संबंध में अवगत कराया है. अब सभी स्तर पर इस पर किसानों को राहत पहुंचाने के लिए काम चल रहा है.
अंडर पास खेतों से नीचे भरेगा पानी : एक्सप्रेस-वे के नीचे ग्रामीणों के निकलने के लिए हर 500 मीटर में एक अंडरपास दिया है. इनमें ऊंचाई भी कम रखी गई है. ऐसे में किसानों के भारी कृषि उपकरण जिनमें हार्वेस्टर और कंपाइल मशीन हैं, वे यहां से नहीं निकल पाएगी. ऐसे में किसानों को इसका भी खामियाजा उठाना पड़ेगा. फसलों की कटाई के लिए दिक्कत होगी. साथ ही कई जगह पर अंडर पास भी इस तरह से बने हुए हैं कि हमेशा पानी भरा रहेगा. वहां से किसानों के लिए निकल पाना ही टेढ़ी खीर होगा.
हाईटेंशन लाइन भी दे रही किसानों को टेंशन : एक्सप्रेस-वे के दौरान हाईटेंशन लाइनों की ऊंचाई बढ़ाई जा रही है. इसके लिए बड़े विद्युत के पोल खड़े किए जा रहे हैं. यह विद्युत लाइनें ग्रिड से ग्रेड में सप्लाई देने वाली हैं. इन हाईटेंशन लाइनों का भी एलाइमेंट बदला जा रहा है. पहले जहां किसानों के खेत में कम खंबे थे, अब विद्युत पोल की संख्या बढ़ा दी जाएगी. इनके निर्माण के दौरान भी किसान अपने खेत में फसल नहीं कर पाएगा. साथ ही बाद में इस पुल के नीचे वाले हिस्से में भी खेती नहीं कर पाएगा. इसका उन्हें कोई मुआवजा भी नहीं मिलता है.
वर्तमान समय में कम हो गई है किसानों की उपज : हाईवे का निर्माण बीते डेढ़ साल से चल रहा है और अभी आगामी करीब 2 साल तक इसका निर्माण जारी रहेगा. इस निर्माण ने किसानों के नहरी तंत्र को पूरी तरह से ध्वस्त किया है. इसके अलावा कई किसानों के खेतों में पानी भी भरता है. साथ ही हाईवे की दूसरी तरफ के किसानों को पानी भी नहीं मिलता. ऐसे में पूरा सिस्टम बिगड़ा हुआ है. यहां बने मजबूत नहरी तंत्र को तोड़कर अस्थाई रूप से घुमाव वाली नहरें बनाई गई हैं. इसके चलते भी किसान इन सालों में खेती ठीक से नहीं कर पाएगा और उपज भी कम होगी. ऐसा बारिश में नजर भी आया है. किसानों के खेतों में पानी भर गया, क्योंकि पानी की निकासी का ड्रेन ही 8 लेन निर्माण कंपनी ने बंद कर दिया. जिससे किसानों की फसल खराब हुई.
पहले नहीं रखा सीएडी के अधिकारियों ने ध्यान : किसानों ने आरोप लगाया है कि चंबल कमांड एरिया के अधिकारियों ने जब इस एक्सप्रेस-वे का डिजाइन और स्ट्रक्चर अप्रूवल करवाया गया था. तब इस संबंध में बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा. उनका कहना है कि उनकी जमीन अधिग्रहण की गई थी, तब अधिकारी ही मीटिंग में जाते थे. किसानों को तो इस संबंध में कोई जानकारी भी नहीं थी, लेकिन इसका खामियाजा अब किसान भुगत रहे हैं. किसानों ने तो यह भी मुद्दा उठा दिया कि न तो जनप्रतिनिधि उनकी बात समझते हैं, न अधिकारी उस पर गौर करते हैं. अब जब पूरा स्ट्रक्चर खत्म हो रहा है, तब अधिकारी जागे हैं. आला अधिकारियों ने भी अब इसमें हस्तक्षेप किया है. जिसके चलते नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अधिकारी भी अब ध्यान दे रहे हैं, लेकिन काफी देर से हो चुकी है. अधिकांश जगह पर नहर के पानी की निकासी के लिए स्ट्रक्चर तैयार कर दिए हैं.
बड़ी नहर को भी छोटे पाइप से निकाला : स्ट्रक्चर चेंज में एनएचएआई के अधिकारियों ने बड़ी नहर या माइनर को भी एक छोटे पाइप से निकाल दिया है. ऐसे में वहां से पूरा पानी वेग से नहीं निकल पाएगा. किसानों का कहना है कि खुली माइनर होने पर तो वे अभी उसकी सफाई कर देते हैं. उसमें से कचरा निकाल देते हैं, ताकि उनके खेतों में वेग से पानी पहुंचे और सिंचाई पर्याप्त समय में हो जाए. लेकिन अब नहर को ही एक पाइप के जरिए निकाला गया है. ऐसे में किसान अगर इसमें मिट्टी या अन्य कचरा फंस जाए तो उसकी सफाई नहीं कर पाएगा. पानी का रास्ता कभी भी अवरुद्ध हो जाएगा. यह अवरुद्ध पानी खेतों में ही भरेगा जिससे फसल भी खराब होगी.
सर्वे में केवल शामिल किया नहर या ड्रेन, खेत पर जाने के रास्ते बंद : एनएचएआई ने एक्सप्रेस-वे के सर्वे के दौरान केवल नहर, माइनर, ड्रेन और धोरों का ध्यान रखा गया. ऐसे में इस पूरे प्रोजेक्ट में केवल पानी की निकासी ही हाईवे के एक छोर से दूसरे छोर पर की है. जबकि इन नहर माइनर और ड्रेन दोनों के साथ ही किसान भी एक जगह से दूसरे जगह पर जाता था. अब उसके खेत में जाने के रास्ते ही बंद हो गए हैं. नहर, माइनर, धोरों व ड्रेन में 142 जगह पर किसानों को इस तरह की समस्या सामने आ रही है. जिसमें नहरी तंत्र बिखर गया है. चंबल के दाईं और बाईं मुख्य नहर के कमांड एरिया का है.
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जमीन दो हिस्सों में बटं गई, जाने का रास्ता भी नहीं : हाईवे निर्माण में कई पीड़ित किसान ऐसे भी हैं. जिनकी जमीन हाइवे गुजर जाने के चलते दो हिस्सों में बट गई है. ऐसे में अब इन किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा. किसान को खेत के दूसरे हिस्से पर जाने के लिए 500 मीटर का रास्ता ही क्रॉस करना होगा. हालांकि, इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह आती है कि जब हाईवे के नजदीक कोई पैरेलल सड़क या कच्चा रास्ता नहीं बनेगा तो 500 मीटर दूर अंडरपास तक किसान कैसे पहुंचेगा?. किसान को अपने खेत में ट्रैक्टर या अन्य कृषि उपकरण ले जाने के लिए दूसरे के खेत से होकर ही गुजरना होगा, जो संभव नहीं हो पाएगा. गांवों को कनेक्ट करने वाले रास्तों पर भी इसी तरह के हालात अंडरपास के होने वाले हैं. अभी इनकी शिकायत ग्रामीणों और किसान कर रहे हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है. अंडर पास का उपयोगी नहीं हो पाएगा, क्योंकि खेत के दोनों तरफ रास्ता ही नहीं है.
बदल दिया है नहरों का एलाइनमेंट : राज्य सरकार ने नहरों के एलाइनमेंट को बदलने पर रोक लगाई हुई है. इसके लिए राज्य सरकार से अनुमति (Rajasthan Farmers Demands on Expressway Construction) लेनी होती है. लेकिन नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने जो निर्माण किया है उसमें सभी नहर, माइनर, धोरों के कई एलाइनमेंट बदल दिए हैं. इससे किसानों के खेत में पानी पहुंचने में दिक्कत होगी. पानी की गति भी कम हो जाएगी और रुकावट भी हो रही है.
किसान नेताओं का कहना है कि इस दुर्दशा में पहुंचाने के लिए जनप्रतिनिधियों के साथ नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया, सीएडी, जिला प्रशासन, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत से जुड़े अधिकारी शामिल रहे हैं. क्योंकि इन लोगों ने किसानों की ठीक से पैरवी नहीं की. साथ ही जब किसानों ने ही काम रुकवा दिया और परेशानी को आला अधिकारियों के सामने उजागर किया, तब अधिकारियों की नींद खुली. इस सिस्टम को कुछ दुरस्त करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन अब देरी हो चुकी है. कई जगह पर निर्माण पक्का हो गया है. ऐसे में अब एक्सप्रेस-वे का एलाइनमेंट बदलना मुश्किल है.