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SPECIAL: लॉकडाउन का बच्चों पर असर...प्रॉब्लम सॉल्विंग, लर्निंग एबिलिटी, आत्मविश्वास को भी कर रहा कमजोर

कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन का असर अब बच्चों पर भी दिखाई दे रहा है. स्कूल नहीं जा पाने से बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास प्रभावित हो रहा है. लॉकडाउन का बच्चों पर क्या असर पड़ रहा है, इसको लेकर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

lockdown effect on children, education of children in lockdown
लॉकडाउन का बच्चों पर असर
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Published : Jun 20, 2021, 10:47 AM IST

Updated : Jun 20, 2021, 3:51 PM IST

कोटा. कोरोना की वजह से स्कूल बंद हैं. बच्चे भी घरों में कैद हैं. हालांकि ऑनलाइन एजुकेशन उपलब्ध है, लेकिन बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास भी प्रभावित हो रहा है. मनोचिकित्सकों का भी मानना है कि घरों में कैद रहने से बच्चों पर बुरा असर पड़ा है.

बेटी इस उम्र में काफी कुछ सीखी, बेटे पर असर

सुरभि का कहना है कि बच्चे कोरोना काल में बाहर की दुनिया या एक्टिविटी से बिल्कुल भी टच में नहीं हैं. गार्डन ले जाते हैं और बहुत सारे लोग दिख जाते हैं तो बच्चा डर जाता है. इस उम्र में जब मेरी बेटी थी तो काफी चीजें समझती थी. अब बच्चे घर में टीवी, मोबाइल पर निर्भर हो गए हैं.

लॉकडाउन का बच्चों पर असर

बच्चे आपस में खेलकर काफी कुछ सीखते हैं

रुचिता दत्त शर्मा का कहना है कि उनकी 3 साल की बेटी को घर पर ही पढ़ाई करा रहे हैं. चार्ट, स्टडी मटेरियल, टॉयज और कुछ गेम्स लेकर आए हैं. छत पर जब बच्चे को ले जाते हैं तो पड़ोसी बच्चों से भी इंटरेक्ट करवाते हैं. छोटे बच्चे आपस में खेलकर ही काफी कुछ सीखते हैं. मोबाइल में ज्यादा इंवॉल्व हो गई है. स्कूल जाती तो वहां पर खुलापन मिलता.

lockdown effect on children, education of children in lockdown
बच्चे आपस में खेलकर काफी कुछ सीखते हैं

बाहर जाने की आजादी खत्म, घर पर पढ़ाना मुश्किल

लक्ष्मी जैन का कहना है कि बच्चों की खेलने-कूदने की आजादी खत्म हो गई है. उन्हें बाहर की दुनिया की समझ नहीं है. छोटे बच्चे स्कूल जाकर बहुत कुछ सीखते हैं. कोरोना के डर से बाहर भी नहीं खेल पाते हैं. स्कूल बंद हैं इसलिए हम घर पर बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. वे ठीक से लिख भी नहीं पाते हैं. बच्चों को पढ़ाना काफी कठिन होता है.

lockdown effect on children, education of children in lockdown
बाहर जाने की आजादी खत्म, घर पर पढ़ाना मुश्किल

कुछ फिजिकल एक्टिविटी को छोड़ दें तो लॉकडाउन का कोई ड्राबैक नहीं

गरिमा की भी 3 साल की बेटी है. वह उसे घर पर ही एजुकेशन से रिलेटेड एक्टिविटीज करवाती हैं. उनका मानना है कि बाहर का प्रैक्टिकल नॉलेज नहीं मिल पा रहा है. बच्ची को घर पर ही ड्राइंग, पेंटिंग, डांस सीखा रहे हैं लेकिन लॉकडाउन की वजह से स्विमिंग, स्केटिंग नहीं सीख पा रहे हैं. गरिमा यह भी कहती हैं कि कुछ फिजिकल एक्टिविटी को छोड़ दें तो लॉकडाउन का ड्राबैक नहीं है.

'बच्चों को नहीं मिल रही पूरी आजादी'

मेडिकल कॉलेज के एडिशनल प्रिंसिपल और मनोरोग विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. देवेंद्र विजयवर्गीय के मुताबिक घरों में रहने वाले बच्चे शाई नेचर के बन जाते हैं. वे बाहर की दुनिया से एक्सपोज नहीं हो पाते हैं. बच्चे घरों में खेलने की कोशिश करते हैं, लेकिन पैरेंट्स उन्हें दिशा-निर्देश देते रहते हैं. बच्चों को घर में पूरी आजादी नहीं मिल पाती है. पहले यह आजादी एक दोस्त के सहयोग से खेलने के दौरान मिलती थी. बच्चा बाहर की दुनिया से कट जाता है. लंबे समय तक स्कूल बंद रहेंगे तो तो बच्चों की सीखने की क्षमता कम होगी. कम आत्मविश्वास वाले बच्चे होंगे. कुछ समस्या होने पर भी ये बच्चे घबरा जाते हैं. लोगों से किस तरह इंटरेक्ट करना है, यह नहीं समझ पाते हैं.

ऑब्जर्वेशंस लर्निंग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण

मनोचिकित्सक डॉ. देवेंद्र विजयवर्गीय का कहना है कि छोटे बच्चे बड़ों को देखकर आदर करते हैं. बाहरी दुनिया को देखकर भी बहुत सीखते हैं. इस ऑब्जरवेशन लर्निंग का फायदा भी बच्चों को लॉकडाउन के चलते नहीं मिल पा रहा है. बच्चे शाई टाइप के हो जाते हैं, गुमसुम रहते हैं. बात करने में सोशल फोबिया हो जाता है और डरते भी हैं. इन्हें स्कूल जाने में घबराहट होती है. वह घर पर ही रहते हैं तो उन्हें स्कूल का कोई कॉन्सेप्ट डेवेलप नहीं होता है. पड़ोसी बच्चों या बड़े बच्चों को स्कूल जाते हुए बच्चे देखते हैं तो उनसे सीखते हैं, लेकिन इन्होंने किसी को स्कूल जाते हुए नहीं देखा. ऐसे बच्चे खुद भी स्कूल जाने से भी डरने लग जाते हैं.

lockdown effect on children, education of children in lockdown
ऑब्जर्वेशंस लर्निंग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण

शारीरिक और सामाजिक विकास पर असर

डॉ. विजयवर्गीय का कहना है कि 5 साल से नीचे के बच्चे स्वाभाविक रूप से चंचल होते हैं. सामाजिक और शारीरिक विकास भी साथ-साथ चलता है. बच्चा बैठना, खड़ा होना, चलना, भागना और बोलता है. यह सब शारीरिक गतिविधियां हैं. सामाजिक गतिविधियों में लोगों से मिलने पर सम्मान करना, बड़ों से बातचीत का तरीका, उन्हें देखकर हंसना, घुलना-मिलना यह सब सामाजिक विकास में आता है, लेकिन यह सब अब घरों में रहने से मुश्किल हो गया है.

कहीं आत्मविश्वास की कमी न हो जाए...

खेलते समय दूसरे बच्चे या अपने से कुछ उम्र के ज्यादा बच्चों की गतिविधियों को गौर से देखते हैं. फिर खुद बच्चे भी वैसा ही करने लग जाते हैं. इसी से उनमें आत्मविश्वास भी आता है. अब बच्चे बाहर नहीं जा पा रहे हैं तो उनमें आत्मविश्वास नहीं आ पाता है. दूसरे बच्चों को साइकिल चलाते हुए देखने पर ही इन्हें भी साइकिल चलाने की इच्छा होती है. उसी तरह से दूसरी गतिविधियों में भी इनका मन लगता है.

घर पर ही बच्चों को करवाएं बाहर की एक्टिविटी

मनोचिकित्सकों का मानना है कि बच्चों को घर पर ही इस तरह का वातावरण दिया जाए कि उन्हें समय से उठना हो और सारी एक्टिविटी घर पर करवाई जाए. जो लोग जॉब करते हैं, उनके लिए संभव नहीं हो पा रहा है, लेकिन व्यापारी वर्ग के लोगों को अभी समय भी मिल रहा है. वे अपने बच्चों को स्कूल की तरह पढ़ा सकते हैं. उनका डर खत्म किया जा सकता है ताकि स्कूल जाने पर उन्हें सहज महसूस हो. उनके पोषण पर भी पूरा ध्यान देना होगा. उनको घर या गार्डन में ही फिजिकल एक्टिविटी पूरी करवाई जाए. घर पर इस तरह के गेम्स लेकर आए हैं, जिससे वह खेलें. उन्हें ज्ञान की बातें बताई जाए ताकि उनका एक्सपोजर बाहर की दुनिया से बना रहे. घर में भी बच्चे अपनी मर्जी से जो कर रहे हैं, उन्हें करने दें.

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घर पर ही बच्चों को करवाएं बाहर की एक्टिविटी

बढ़ गया है स्क्रीन टाइम, लिमिट सेट होनी चाहिए

बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है तो ऑनलाइन क्लासेज बढ़ गई है। पैटर्न ही इस तरह का आ गया है कि बच्चे अब लिमिट सेट होनी चाहिए कि अनुशासन होना चाहिए इतनी गतिविधियों को स्क्रीन पर देखोगे किस तरह से देखेंगे कितनी देर से देखेंगे आंखों पर उनका असर नहीं पड़ना चाहिए और विक्टर समय इसकी आदत या इसका एडिक्शन नहीं हो यह भी देखना होगा मोबाइल एडिक्शन ऑफ कॉमन हो गया है.

घर पर भी बच्चों के साथ स्कूल का डिसिप्लीन बनाएं

स्कूल से ही प्राथमिक शिक्षा बच्चों की होती है. डिसिप्लिन का पाठ पढ़ाया जाता है. डेली रूटीन सिखाया जाता है. इससे मानसिक, शारीरिक, चारित्रिक और बौद्धिक विकास भी होता है. बच्चों में प्रॉब्लम सॉल्विंग एबिलिटी बढ़ती है. बच्चों को ये एनवायरनमेंट नहीं मिल पा रहा है. लिहाजा घर पर भी स्कूल जैसा अनुशासन अपनाएं.

कोटा. कोरोना की वजह से स्कूल बंद हैं. बच्चे भी घरों में कैद हैं. हालांकि ऑनलाइन एजुकेशन उपलब्ध है, लेकिन बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास भी प्रभावित हो रहा है. मनोचिकित्सकों का भी मानना है कि घरों में कैद रहने से बच्चों पर बुरा असर पड़ा है.

बेटी इस उम्र में काफी कुछ सीखी, बेटे पर असर

सुरभि का कहना है कि बच्चे कोरोना काल में बाहर की दुनिया या एक्टिविटी से बिल्कुल भी टच में नहीं हैं. गार्डन ले जाते हैं और बहुत सारे लोग दिख जाते हैं तो बच्चा डर जाता है. इस उम्र में जब मेरी बेटी थी तो काफी चीजें समझती थी. अब बच्चे घर में टीवी, मोबाइल पर निर्भर हो गए हैं.

लॉकडाउन का बच्चों पर असर

बच्चे आपस में खेलकर काफी कुछ सीखते हैं

रुचिता दत्त शर्मा का कहना है कि उनकी 3 साल की बेटी को घर पर ही पढ़ाई करा रहे हैं. चार्ट, स्टडी मटेरियल, टॉयज और कुछ गेम्स लेकर आए हैं. छत पर जब बच्चे को ले जाते हैं तो पड़ोसी बच्चों से भी इंटरेक्ट करवाते हैं. छोटे बच्चे आपस में खेलकर ही काफी कुछ सीखते हैं. मोबाइल में ज्यादा इंवॉल्व हो गई है. स्कूल जाती तो वहां पर खुलापन मिलता.

lockdown effect on children, education of children in lockdown
बच्चे आपस में खेलकर काफी कुछ सीखते हैं

बाहर जाने की आजादी खत्म, घर पर पढ़ाना मुश्किल

लक्ष्मी जैन का कहना है कि बच्चों की खेलने-कूदने की आजादी खत्म हो गई है. उन्हें बाहर की दुनिया की समझ नहीं है. छोटे बच्चे स्कूल जाकर बहुत कुछ सीखते हैं. कोरोना के डर से बाहर भी नहीं खेल पाते हैं. स्कूल बंद हैं इसलिए हम घर पर बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. वे ठीक से लिख भी नहीं पाते हैं. बच्चों को पढ़ाना काफी कठिन होता है.

lockdown effect on children, education of children in lockdown
बाहर जाने की आजादी खत्म, घर पर पढ़ाना मुश्किल

कुछ फिजिकल एक्टिविटी को छोड़ दें तो लॉकडाउन का कोई ड्राबैक नहीं

गरिमा की भी 3 साल की बेटी है. वह उसे घर पर ही एजुकेशन से रिलेटेड एक्टिविटीज करवाती हैं. उनका मानना है कि बाहर का प्रैक्टिकल नॉलेज नहीं मिल पा रहा है. बच्ची को घर पर ही ड्राइंग, पेंटिंग, डांस सीखा रहे हैं लेकिन लॉकडाउन की वजह से स्विमिंग, स्केटिंग नहीं सीख पा रहे हैं. गरिमा यह भी कहती हैं कि कुछ फिजिकल एक्टिविटी को छोड़ दें तो लॉकडाउन का ड्राबैक नहीं है.

'बच्चों को नहीं मिल रही पूरी आजादी'

मेडिकल कॉलेज के एडिशनल प्रिंसिपल और मनोरोग विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. देवेंद्र विजयवर्गीय के मुताबिक घरों में रहने वाले बच्चे शाई नेचर के बन जाते हैं. वे बाहर की दुनिया से एक्सपोज नहीं हो पाते हैं. बच्चे घरों में खेलने की कोशिश करते हैं, लेकिन पैरेंट्स उन्हें दिशा-निर्देश देते रहते हैं. बच्चों को घर में पूरी आजादी नहीं मिल पाती है. पहले यह आजादी एक दोस्त के सहयोग से खेलने के दौरान मिलती थी. बच्चा बाहर की दुनिया से कट जाता है. लंबे समय तक स्कूल बंद रहेंगे तो तो बच्चों की सीखने की क्षमता कम होगी. कम आत्मविश्वास वाले बच्चे होंगे. कुछ समस्या होने पर भी ये बच्चे घबरा जाते हैं. लोगों से किस तरह इंटरेक्ट करना है, यह नहीं समझ पाते हैं.

ऑब्जर्वेशंस लर्निंग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण

मनोचिकित्सक डॉ. देवेंद्र विजयवर्गीय का कहना है कि छोटे बच्चे बड़ों को देखकर आदर करते हैं. बाहरी दुनिया को देखकर भी बहुत सीखते हैं. इस ऑब्जरवेशन लर्निंग का फायदा भी बच्चों को लॉकडाउन के चलते नहीं मिल पा रहा है. बच्चे शाई टाइप के हो जाते हैं, गुमसुम रहते हैं. बात करने में सोशल फोबिया हो जाता है और डरते भी हैं. इन्हें स्कूल जाने में घबराहट होती है. वह घर पर ही रहते हैं तो उन्हें स्कूल का कोई कॉन्सेप्ट डेवेलप नहीं होता है. पड़ोसी बच्चों या बड़े बच्चों को स्कूल जाते हुए बच्चे देखते हैं तो उनसे सीखते हैं, लेकिन इन्होंने किसी को स्कूल जाते हुए नहीं देखा. ऐसे बच्चे खुद भी स्कूल जाने से भी डरने लग जाते हैं.

lockdown effect on children, education of children in lockdown
ऑब्जर्वेशंस लर्निंग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण

शारीरिक और सामाजिक विकास पर असर

डॉ. विजयवर्गीय का कहना है कि 5 साल से नीचे के बच्चे स्वाभाविक रूप से चंचल होते हैं. सामाजिक और शारीरिक विकास भी साथ-साथ चलता है. बच्चा बैठना, खड़ा होना, चलना, भागना और बोलता है. यह सब शारीरिक गतिविधियां हैं. सामाजिक गतिविधियों में लोगों से मिलने पर सम्मान करना, बड़ों से बातचीत का तरीका, उन्हें देखकर हंसना, घुलना-मिलना यह सब सामाजिक विकास में आता है, लेकिन यह सब अब घरों में रहने से मुश्किल हो गया है.

कहीं आत्मविश्वास की कमी न हो जाए...

खेलते समय दूसरे बच्चे या अपने से कुछ उम्र के ज्यादा बच्चों की गतिविधियों को गौर से देखते हैं. फिर खुद बच्चे भी वैसा ही करने लग जाते हैं. इसी से उनमें आत्मविश्वास भी आता है. अब बच्चे बाहर नहीं जा पा रहे हैं तो उनमें आत्मविश्वास नहीं आ पाता है. दूसरे बच्चों को साइकिल चलाते हुए देखने पर ही इन्हें भी साइकिल चलाने की इच्छा होती है. उसी तरह से दूसरी गतिविधियों में भी इनका मन लगता है.

घर पर ही बच्चों को करवाएं बाहर की एक्टिविटी

मनोचिकित्सकों का मानना है कि बच्चों को घर पर ही इस तरह का वातावरण दिया जाए कि उन्हें समय से उठना हो और सारी एक्टिविटी घर पर करवाई जाए. जो लोग जॉब करते हैं, उनके लिए संभव नहीं हो पा रहा है, लेकिन व्यापारी वर्ग के लोगों को अभी समय भी मिल रहा है. वे अपने बच्चों को स्कूल की तरह पढ़ा सकते हैं. उनका डर खत्म किया जा सकता है ताकि स्कूल जाने पर उन्हें सहज महसूस हो. उनके पोषण पर भी पूरा ध्यान देना होगा. उनको घर या गार्डन में ही फिजिकल एक्टिविटी पूरी करवाई जाए. घर पर इस तरह के गेम्स लेकर आए हैं, जिससे वह खेलें. उन्हें ज्ञान की बातें बताई जाए ताकि उनका एक्सपोजर बाहर की दुनिया से बना रहे. घर में भी बच्चे अपनी मर्जी से जो कर रहे हैं, उन्हें करने दें.

lockdown effect on children, education of children in lockdown
घर पर ही बच्चों को करवाएं बाहर की एक्टिविटी

बढ़ गया है स्क्रीन टाइम, लिमिट सेट होनी चाहिए

बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है तो ऑनलाइन क्लासेज बढ़ गई है। पैटर्न ही इस तरह का आ गया है कि बच्चे अब लिमिट सेट होनी चाहिए कि अनुशासन होना चाहिए इतनी गतिविधियों को स्क्रीन पर देखोगे किस तरह से देखेंगे कितनी देर से देखेंगे आंखों पर उनका असर नहीं पड़ना चाहिए और विक्टर समय इसकी आदत या इसका एडिक्शन नहीं हो यह भी देखना होगा मोबाइल एडिक्शन ऑफ कॉमन हो गया है.

घर पर भी बच्चों के साथ स्कूल का डिसिप्लीन बनाएं

स्कूल से ही प्राथमिक शिक्षा बच्चों की होती है. डिसिप्लिन का पाठ पढ़ाया जाता है. डेली रूटीन सिखाया जाता है. इससे मानसिक, शारीरिक, चारित्रिक और बौद्धिक विकास भी होता है. बच्चों में प्रॉब्लम सॉल्विंग एबिलिटी बढ़ती है. बच्चों को ये एनवायरनमेंट नहीं मिल पा रहा है. लिहाजा घर पर भी स्कूल जैसा अनुशासन अपनाएं.

Last Updated : Jun 20, 2021, 3:51 PM IST
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