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Special: चीन से MBBS कर रहे स्टूडेंट्स Online Study से परेशान....बिन प्रैक्टिकल कैसे सीखेंगे सर्जरी और इलाज ?

डॉक्टरी की पढ़ाई यानी एमबीबीएस (MBBS) की कल्पना बिना प्रैक्टिकल के संभव नहीं है. लेकिन चीन से MBBS कर रहे हजारों भारतीय स्टूडेंट्स (Indian Students) के सामने यही सबसे बड़ा संकट है कि वे प्रैक्टिकल कैसे करें? जनवरी-फरवरी 2020 में चीन से भारत लौटे करीब 15 हजार स्टूडेंट्स सिर्फ ऑनलाइन पढ़ाई के भरोसे हैं.

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चीन से MBBS कर रहे स्टूडेंट्स परेशान
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Published : Jul 22, 2021, 6:15 PM IST

Updated : Jul 22, 2021, 9:01 PM IST

कोटा: चीन के 200 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज और यूनिवर्सिटी से करीब 20 हजार भारतीय स्टूडेंट्स एमबीबीएस कर रहे हैं. कोविड-19 के पहले करीब 15 हजार स्टूडेंट्स भारत आ गए थे, जबकि 3-4 हजार स्टूडेंट चीन में ही फंस गए थे. चीन में ठहरे स्टूडेंट्स की ऑफलाइन पढ़ाई तो कुछ वक्त बाद शुरू हो गई है लेकिन भारत लौटे स्टूडेंट्स ऑनलाइन क्लास करने को मजबूर हैं. अब इन स्टूडेंट्स के सामने प्रैक्टिकल की समस्या गहरा गई है.

इन सभी बच्चों को क्लिनिकल एक्सपीरियंस (Clinical Experience) भी नहीं मिल पा रहा है. मरीजों के लक्षण, बीमारी की जानकारियां, मेडिकल कॉलेज में बॉडी पार्ट्स, ट्रीटमेंट गाइडलाइंस और जांचों के बारे में भी जानकारी नहीं मिल पा रही है.

चीन से MBBS कर रहे स्टूडेंट्स परेशान

पढ़ें: Special: पूरा देश Unlock लेकिन कोटा में Lockdown जैसे हालात

दादाबाड़ी इलाके में रहने वाले राघव श्रृंगी साउदर्न मेडिकल यूनिवर्सिटी ग्वांगझू से एमबीबीएस कर रहे हैं. उन्होंने 2018 में प्रवेश लिया. अब फोर्थ ईयर में हैं. उनका कहना है कि हम लोग प्रैक्टिकल नहीं कर पा रहे हैं. थर्ड ईयर भी ऑनलाइन ही पढ़ाई की है. सर्जरी और बिना प्रैक्टिकल के हम कैसे सीखेंगे? अगर मेडिकल यूनिवर्सिटी में होते तो अच्छे से सर्जरी कर पाते और हॉस्पिटल की विजिट भी करते.

राघव का कहना है कि चीन का विदेश मंत्रालय विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेजों को बाहरी छात्रों को बुलाने की अनुमति नहीं दे रहा. अब हमें नया वीजा भी बनाना पड़ेगा. इसके लिए चीन का विदेश मंत्रालय अनुमति नहीं दे रहा है. यूनिवर्सिटी हमें वहां पर बुलाने के लिए तैयार है, लेकिन यूनिवर्सिटी का कहना है कि चीन सरकार से ग्रीन सिग्नल नहीं मिल रहा है. भविष्य में अवसर मिलेगा या नहीं, यह भी नहीं पता.

स्वामी विवेकानंद नगर निवासी वंशिका जोशी का कहना है कि ऑनलाइन पढ़ाई में वीडियो स्ट्रीमिंग लाइव होता है. एमबीबीएस थ्योरी आधारित नहीं हो सकती, प्रैक्टिकल काफी जरूरी है. मैं सेकंड ईयर में आ गई हूं. केवल एक सेमेस्टर ही चीन में ऑफलाइन पढ़ाई की है. उसके बाद डेढ़ साल से ऑनलाइन ही पढ़ाई कर रही हूं. ऑनलाइन पढ़ाई से संतुष्ट नहीं हूं. हमारे कुछ साथी वहां पर ही रह गए थे. कुछ दिन तक हमारी और उनकी ऑनलाइन क्लासेज हुई, लेकिन अब उन लोगों को ऑफलाइन क्लासेज और प्रैक्टिकल सब करने को मिल रहा है.

पढ़ें: Ground Report: कोटा के हजारों स्टूडेंट्स की टेंशन...Offline Coaching के बिना JEE, NEET में नहीं हो पाएगा सिलेक्शन

शहर की आकाशवाणी कॉलोनी के राजेंद्र नगर निवासी जजीला काजी चीन के जियांगशी के नानचांग सिटी से एमबीबीएस कर रही हैं. इस साल फाइनल ईयर है. वे कहती हैं कि प्रैक्टिकल नॉलेज काफी जरूरी है. हमारे विश्वविद्यालय ने प्रॉमिस किया है कि जब भी हम वहां जाएंगे तो हमारे छूटे हुए सभी प्रैक्टिकल करा देंगे, लेकिन मेरा लास्ट सेमेस्टर है. बचे हुए कम समय में पूरा डेढ़ साल का प्रैक्टिकल कराना कैसे संभव होगा? मुझे एमसीआई की परीक्षा भी देनी है, उसकी तैयारी में कैसे कर पाऊंगी? यह भी समस्या है.

दादाबाड़ी के रहने वाले वत्सल विजय यूनान के कुनमिंग मेडिकल कॉलेज के सेकड ईयर स्टूडेंट हैं. सितंबर 2019 में उन्होंने एडमिशन लिया. फरवरी 2020 में वापस आ गए थे. तब से घर पर ही ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है. उनका कहना है कि घर पर पढ़ाई का माहौल कम ही रहता है. चीन में गूगल नहीं चलता है. वहां सर्वर का ही उपयोग करते हैं. जिसको यहां लोड होने में काफी टाइम लगता है. कई बार वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क के जरिए ही संपर्क होता है. सबसे बड़ी समस्या है कि चाइनीज ऐप भारत में बैन है. ऐसे में हमारी पढ़ाई डिंगटॉक और वी चैट ऐप के जरिए होती है, जो भारत में चलते नहीं हैं. इसी के जरिए हमारे वीडियो लेक्चर और स्टडी मैटेरियल भेजा जाता है. यूनिवर्सिटी से संपर्क भी इसी के जरिए होता है. परीक्षा देते समय भी वीपीएन जब अनस्टेबल हो जाता है तो हमें समस्या आ जाती है और एग्जाम भी आधा ही रह जाता है. यूनिवर्सिटी को इससे मतलब नहीं है.

चीन से एमबीबीएस कर रहे स्टूडेंट्स ने "टेक अस टू बैक चाइना" (tackustobackchina) अभियान भी सोशल मीडिया पर चलाया है. करीब 10,000 से ज्यादा स्टूडेंट जुड़े हुए हैं. कई स्टूडेंट्स ने भारतीय विदेश मंत्रालय से संपर्क किया है. भारत सरकार पूरा सहयोग करने के लिए तैयार है. लेकिन चीन की फॉरेन मिनिस्ट्री ने अभी भारतीय छात्रों को वापस बुलाने पर रोक लगाई हुई है.

पढ़ें: Special: मेडिकल-इंजीनियरिंग के साथ ही विदेशी विश्वविद्यालयों में भी एंट्री दिला रहा कोटा

भारत में मेडिकल एंट्रेंस परीक्षा नीट यूजी में हर साल करीब 16 लाख विद्यार्थी शामिल होते हैं. करीब 84 हजार मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस सीटें होती है. अन्य सीटें बीडीएस और बीएएमएस कॉलेजों की भी शामिल होती है. लेकिन सभी एमबीबीएस करना चाहते हैं. जनरल कैटेगरी के स्टूडेंट को तो 25 हजार से नीचे रैंक लाने पर ही प्रवेश मिल पाता है.

ऐसे में बचे स्टूडेंट्स दूसरे देशों से भी एमबीबीएस की पढ़ाई करने चले जाते हैं. वहां खर्चा भी कम होता है. विदेशों में करीब 30 से 35 लाख रुपए में एमबीबीएस हो जाती है. जबकि भारत में एमबीबीएस की फीस निजी मेडिकल कॉलेजों में 75 लाख से एक करोड़ है. ज्यादातर स्टूडेंट चीन, यूक्रेन, रशिया, जॉर्जिया, फिलीपींस, कजाकिस्तान, तजिकिस्तान, बेलारूस, तजाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए जाते हैं.

कोटा: चीन के 200 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज और यूनिवर्सिटी से करीब 20 हजार भारतीय स्टूडेंट्स एमबीबीएस कर रहे हैं. कोविड-19 के पहले करीब 15 हजार स्टूडेंट्स भारत आ गए थे, जबकि 3-4 हजार स्टूडेंट चीन में ही फंस गए थे. चीन में ठहरे स्टूडेंट्स की ऑफलाइन पढ़ाई तो कुछ वक्त बाद शुरू हो गई है लेकिन भारत लौटे स्टूडेंट्स ऑनलाइन क्लास करने को मजबूर हैं. अब इन स्टूडेंट्स के सामने प्रैक्टिकल की समस्या गहरा गई है.

इन सभी बच्चों को क्लिनिकल एक्सपीरियंस (Clinical Experience) भी नहीं मिल पा रहा है. मरीजों के लक्षण, बीमारी की जानकारियां, मेडिकल कॉलेज में बॉडी पार्ट्स, ट्रीटमेंट गाइडलाइंस और जांचों के बारे में भी जानकारी नहीं मिल पा रही है.

चीन से MBBS कर रहे स्टूडेंट्स परेशान

पढ़ें: Special: पूरा देश Unlock लेकिन कोटा में Lockdown जैसे हालात

दादाबाड़ी इलाके में रहने वाले राघव श्रृंगी साउदर्न मेडिकल यूनिवर्सिटी ग्वांगझू से एमबीबीएस कर रहे हैं. उन्होंने 2018 में प्रवेश लिया. अब फोर्थ ईयर में हैं. उनका कहना है कि हम लोग प्रैक्टिकल नहीं कर पा रहे हैं. थर्ड ईयर भी ऑनलाइन ही पढ़ाई की है. सर्जरी और बिना प्रैक्टिकल के हम कैसे सीखेंगे? अगर मेडिकल यूनिवर्सिटी में होते तो अच्छे से सर्जरी कर पाते और हॉस्पिटल की विजिट भी करते.

राघव का कहना है कि चीन का विदेश मंत्रालय विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेजों को बाहरी छात्रों को बुलाने की अनुमति नहीं दे रहा. अब हमें नया वीजा भी बनाना पड़ेगा. इसके लिए चीन का विदेश मंत्रालय अनुमति नहीं दे रहा है. यूनिवर्सिटी हमें वहां पर बुलाने के लिए तैयार है, लेकिन यूनिवर्सिटी का कहना है कि चीन सरकार से ग्रीन सिग्नल नहीं मिल रहा है. भविष्य में अवसर मिलेगा या नहीं, यह भी नहीं पता.

स्वामी विवेकानंद नगर निवासी वंशिका जोशी का कहना है कि ऑनलाइन पढ़ाई में वीडियो स्ट्रीमिंग लाइव होता है. एमबीबीएस थ्योरी आधारित नहीं हो सकती, प्रैक्टिकल काफी जरूरी है. मैं सेकंड ईयर में आ गई हूं. केवल एक सेमेस्टर ही चीन में ऑफलाइन पढ़ाई की है. उसके बाद डेढ़ साल से ऑनलाइन ही पढ़ाई कर रही हूं. ऑनलाइन पढ़ाई से संतुष्ट नहीं हूं. हमारे कुछ साथी वहां पर ही रह गए थे. कुछ दिन तक हमारी और उनकी ऑनलाइन क्लासेज हुई, लेकिन अब उन लोगों को ऑफलाइन क्लासेज और प्रैक्टिकल सब करने को मिल रहा है.

पढ़ें: Ground Report: कोटा के हजारों स्टूडेंट्स की टेंशन...Offline Coaching के बिना JEE, NEET में नहीं हो पाएगा सिलेक्शन

शहर की आकाशवाणी कॉलोनी के राजेंद्र नगर निवासी जजीला काजी चीन के जियांगशी के नानचांग सिटी से एमबीबीएस कर रही हैं. इस साल फाइनल ईयर है. वे कहती हैं कि प्रैक्टिकल नॉलेज काफी जरूरी है. हमारे विश्वविद्यालय ने प्रॉमिस किया है कि जब भी हम वहां जाएंगे तो हमारे छूटे हुए सभी प्रैक्टिकल करा देंगे, लेकिन मेरा लास्ट सेमेस्टर है. बचे हुए कम समय में पूरा डेढ़ साल का प्रैक्टिकल कराना कैसे संभव होगा? मुझे एमसीआई की परीक्षा भी देनी है, उसकी तैयारी में कैसे कर पाऊंगी? यह भी समस्या है.

दादाबाड़ी के रहने वाले वत्सल विजय यूनान के कुनमिंग मेडिकल कॉलेज के सेकड ईयर स्टूडेंट हैं. सितंबर 2019 में उन्होंने एडमिशन लिया. फरवरी 2020 में वापस आ गए थे. तब से घर पर ही ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है. उनका कहना है कि घर पर पढ़ाई का माहौल कम ही रहता है. चीन में गूगल नहीं चलता है. वहां सर्वर का ही उपयोग करते हैं. जिसको यहां लोड होने में काफी टाइम लगता है. कई बार वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क के जरिए ही संपर्क होता है. सबसे बड़ी समस्या है कि चाइनीज ऐप भारत में बैन है. ऐसे में हमारी पढ़ाई डिंगटॉक और वी चैट ऐप के जरिए होती है, जो भारत में चलते नहीं हैं. इसी के जरिए हमारे वीडियो लेक्चर और स्टडी मैटेरियल भेजा जाता है. यूनिवर्सिटी से संपर्क भी इसी के जरिए होता है. परीक्षा देते समय भी वीपीएन जब अनस्टेबल हो जाता है तो हमें समस्या आ जाती है और एग्जाम भी आधा ही रह जाता है. यूनिवर्सिटी को इससे मतलब नहीं है.

चीन से एमबीबीएस कर रहे स्टूडेंट्स ने "टेक अस टू बैक चाइना" (tackustobackchina) अभियान भी सोशल मीडिया पर चलाया है. करीब 10,000 से ज्यादा स्टूडेंट जुड़े हुए हैं. कई स्टूडेंट्स ने भारतीय विदेश मंत्रालय से संपर्क किया है. भारत सरकार पूरा सहयोग करने के लिए तैयार है. लेकिन चीन की फॉरेन मिनिस्ट्री ने अभी भारतीय छात्रों को वापस बुलाने पर रोक लगाई हुई है.

पढ़ें: Special: मेडिकल-इंजीनियरिंग के साथ ही विदेशी विश्वविद्यालयों में भी एंट्री दिला रहा कोटा

भारत में मेडिकल एंट्रेंस परीक्षा नीट यूजी में हर साल करीब 16 लाख विद्यार्थी शामिल होते हैं. करीब 84 हजार मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस सीटें होती है. अन्य सीटें बीडीएस और बीएएमएस कॉलेजों की भी शामिल होती है. लेकिन सभी एमबीबीएस करना चाहते हैं. जनरल कैटेगरी के स्टूडेंट को तो 25 हजार से नीचे रैंक लाने पर ही प्रवेश मिल पाता है.

ऐसे में बचे स्टूडेंट्स दूसरे देशों से भी एमबीबीएस की पढ़ाई करने चले जाते हैं. वहां खर्चा भी कम होता है. विदेशों में करीब 30 से 35 लाख रुपए में एमबीबीएस हो जाती है. जबकि भारत में एमबीबीएस की फीस निजी मेडिकल कॉलेजों में 75 लाख से एक करोड़ है. ज्यादातर स्टूडेंट चीन, यूक्रेन, रशिया, जॉर्जिया, फिलीपींस, कजाकिस्तान, तजिकिस्तान, बेलारूस, तजाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए जाते हैं.

Last Updated : Jul 22, 2021, 9:01 PM IST
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