कोटा. लहसुन के गिरते दामों ने किसानों के अरमानों पर पानी (Kota garlic farmers pain) फेर दिया है. किसानों ने बच्चों की शादी, मकान बनाने और पुराना कर्जा चुकाने की उम्मीद के साथ लहसुन का रकबा बढ़ाया था. उम्मीद थी कि बीते साल जैसा भाव इस साल भी मिलेगा. लेकिन ये सभी अरमान गिरते लहसुन के भावों के साथ बह गए. हालात यह है कि किसानों पर लाखों रुपए का कर्जा लहसुन को उगाने के चक्कर में हो गया है.
सिर पर चढ़े कर्ज से परेशान किसानों का कहना है कि उन्हें घाटे से उबरने में ही सालों लग (Kota Farmers suffering) जाएंगे. उन्होंने कहा कि इस बार हालात साल 2018 से भी ज्यादा खराब हो गए हैं. जब लहसुन के दाम गिरने के चलते मुनाफे पर जमीन लेकर काश्तकारी करने वाले किसानों और कर्ज नहीं चुका पाने के चलते आत्महत्या का क्रम शुरू हो (Kota Garlic producing Farmers Died By Suicide) गया था. यह सब कुछ महाराष्ट्र के विदर्भ जैसा ही था. अभी भी लहसुन उत्पादक किसान 2 से लेकर 10 लाख रुपए तक के कर्जे में डूबते नजर आ रहे हैं. यह कर्जा चुका पाना उनके लिए अब मुश्किल ही है. किसानों ने कहा कि उन्होंने मंडी में लहसुन के चल रहे ऊंचे भाव को देखकर ही फसल की थी, ताकि उनका परिवार समृद्ध हो सके. लेकिन ऐसा हो नहीं सका, उलट लाखों रुपए के कर्ज में डूब गए.
लहसुन के गिरते भाव से टूटने लगे किसानों के सपने
केस 1- बच्चों की शादी के लिए उधार लेकर बोई लहसुन की फसलः कोटा जिले के सांगोद इलाके के लटूरा गांव के दौलतराम का कहना है कि उन्होंने 5 बीघा का खेत किराए पर लेकर लहसुन का उत्पादन किया (Garlic producers of Kota) था. उनके पास खुद की 1 बीघा जमीन भी नहीं है. घर में 27 और 25 साल के बेटा बेटी कुंवारे हैं, जिनका विवाह भी करना है. उन्होंने बताया कि इस बार लहसुन पर दांव खेला था कि बढ़िया भाव मिल जाएंगे, बच्चों की शादी कर देंगे. लेकिन पूरी योजना फेल हो गई है. इस लहसुन के चक्कर में हम सड़क पर आ गए और डेढ़ लाख रुपए का नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि सिर पर चढ़े कर्ज को उतारना भी मुश्किल ही लग रहा है.
दौलतराम ने कहा कि अब तो यही बाकी रह गया है कि जिन से पैसा उधार लिया है. उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाऊंगा कि आपके पैसे लौटा दूंगा, लेकिन किस्तों में ही दे पाऊंगा. इसमें भी काफी समय लगेगा. उन्होंने कहा कि 'मैंने इस बार भी मुनाफे से काश्त की है, अगर फायदा नहीं हुआ तो भारी कर्जा ऊपर होगा, पेट भरने के लिए भी मजदूरी ही करनी पड़ेगी'.
केस 02- पक्का मकान बनाने का था सपनाः सांगोद इलाके के किसान माणक चंद कहना है कि 25 बीघा मुनाफे की जमीन लेकर खेती की थी. 'मैंने सोचा था कि पक्का मकान बन जाएगा और कुछ छोटा मोटा व्यापार भी इस बार डाल लूंगा, अब तो कोई फायदा इस लहसुन से होता नजर नहीं आ रहा है'. उन्होंने कहा कि फसल से लागत भी नहीं निकल रही है. किसान ने बताया कि उसे करीब साढ़े पांच लाख रुपए का नुकसान हुआ है. इसमें खेत का किराया, खाद, बीज, दवा, ट्रैक्टर से हकाई, जुताई और मजदूरी शामिल है. उन्होंने बताया कि बीते साल काफी अच्छे दाम मिले थे. कुछ समय पहले ही भतीजी का ब्याह और लहसुन की फसल के लिए 3 से 4 लाख रुपए का लोन भी लिया है, इससे अब अगले दो-तीन साल नहीं चुका पाऊंगा. अगर अगले सीजन में सोयाबीन की फसल अच्छी होती है, तो कुछ राहत मिल सकती है.
केस 03- घर में गमी हो जाए तो, 12 दिन के कार्यक्रम का भी पैसा भी नहीं बचाः बारां जिले के गऊघाट एरिया के कराड़िया गुलजी से कोटा मंडी में लहसुन बेचने आए किसान बाबू लाल बैरवा का कहना है कि पिछली बार लहसुन से हुए मुनाफे से इस बार ज्यादा जमीन किराए पर लेकर फसल की है. मकसद था कि ज्यादा इनकम हो जाएगी तो बच्चों की शादी कर दूंगा. यह पूरा पैसा नुकसान में तब्दील हो गया है. लहसुन 4 से 5 रुपए किलो बिक गया. जबकि लाने में ही 5000 किराया लगा है.
उन्होंने बताया कि करीब 4 से 5 लाख रुपए का नुकसान हो गया. लहसुन से आमदनी होती तो, दो बेटियां और एक बेटे की शादी कर पाता. किसान बाबू लाल ने बताया कि उसके माता-पिता काफी बुजुर्ग है. उन्होंने बताया कि 'मैं कोटा लहसुन बेचने आया था, पीछे से पिताजी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई है, मैं तो यहां से प्राइवेट व्हीकल करके वापस जाने वाला हूं' घर में कोई गमी हो जाए, तो 12 दिन के कार्यक्रम करने के लिए भी पैसा मेरे पास नहीं है. जैसे ही लहसुन बेच कर घर जाऊंगा, तब मजदूर, ट्रैक्टर, मालिक, खेत मालिक, खाद व दवा वाले अपना पैसा मांगने पहुंच जाएंगे.
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केस 04- मकान दूर की बात, कर्जा चुकाने में सालों लग जाएंगेः कुंदनपुर निवासी रामकुंवार पारेता ने कहा कि उसने 15 हजार रुपए में 17 बीघा जमीन मुनाफे पर थी. फसल को करने में करीब 5 लाख का खर्चा हो गया है. इस साल भाव अच्छे होने से मकान बनाने की उम्मीद थी. इस साल लहसुन बेचने से केवल 40 हजार रुपए मिले हैं. पूरी लागत और जमीन का किराया सब कुछ घाटे में है. कुछ जमीन उसके परिवार के पास है, वह भी कर्जा (Debt on Kota farmers) नहीं चुका पाया तो बिक जाएगी. ब्याज भी दो रुपए सैकड़े के अनुसार लग रहा है. उन्होंने बताया कि यह कर्जा चुका पाने में 2 से 4 साल लग जाएंगे.
केस 05- बच्चों की फीस का पैसा भी जेब में नहीं बचेगाः हिंगी निवासी किसान गजेंद्र नागर ने बताया कि बीते साल लहसुन के अच्छे दाम मिले थे. इस बार 4 से बढ़ाकर 8 बीघा में यह खेती की. इसी के चलते हालात निल बटा निल हो गया है. ट्रैक्टर से लहसुन की खेती में काफी काम होता है, उनका भी पैसा उधार है. केसीसी की किस्त भी अगस्त महीने में देनी है. बच्चों की फीस के लिए भी लहसुन की फसल के बाद का नाम लिया था. उन्होंने बताया कि इस लहसुन ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा है. लहसुन से तो केवल नमक मिर्ची खरीद कर गुजारा ही चल सकता है.