कोटा: कोटा (Kota) शहर के बीच से चंबल नदी (River Chambal) होकर गुजर रही है जो कि प्रदेश के कई जिलों की प्यास बुझा रही है. पाइप लाइन के जरिए चंबल नदी (River Chambal) से पानी वहां ले जाया जा रहा है, लेकिन कोटा शहर की सैकड़ों कॉलोनिया ही चंबल नदी के पानी से महरूम हैं. यह लोग बोरिंग के पानी पर ही निर्भर हैं और उससे बीमारियां तक भी झेल रहे हैं.
इन कॉलोनियों के लिए न तो कोई योजना से पानी पहुंचाया जा रहा है, ना ही किसी तरह से स्मार्ट सिटी (Smart City) के फंड का उपयोग किया जा रहा है. हर घर नल से जल (Nal Se Jal) पहुंचाने की जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission) भी गांवों को हो में ही साकार हो रहा है. जबकि कोटा शहर की लाखों की आबादी इससे कोसों दूर ही अपने आप को मान रही है. इन कॉलोनियों में अधिकांश रायपुरा, थेगड़ा, बोरखेड़ा, देवली अरब रोड, कालातालाब व चंद्रसेल रोड एरिया की कॉलोनियां हैं. पीएचईडी (PHED) के अधिकारियों का कहना है कि इन कॉलोनियों की नई बसावट हुई है. यहां पर सप्लाई की लाइन नहीं है. साथ ही इनके लिए अलग से बड़ी पाइपलाइन डाला जाना प्रस्तावित है. काम चल रहा है.
हजारों खर्च कर अवैध रूप से दूसरी कॉलोनियों से ला रहे हैं
जिन कॉलोनियों में पानी नहीं है, वहां के बाशिंदे दूसरी कॉलोनियों में से अवैध रूप से भी पानी ले रहे हैं. जगदीश शर्मा सहारा एंक्लेव से पानी लाने की बात कहते हैं. उन्होंने कनेक्शन नहीं लिया है, क्योंकि 22 हजार रुपए पाइप लाइन डालने के ही मांगे जा रहे हैं. सौदा महंगा था और पानी आने की गारंटी भी नहीं थी क्योंकि ये कार्य अवैध था इसीलिए उन्होंने अभी तक यह नहीं किया. बोरिंग से ही वह बीते 8 सालों से पानी पी रहे हैं. इसी तरह से धर्मेंद्र कुमार का कहना है कि पानी खराब होने के चलते उन्हें कैंपर पीने के लिए ही मंगवाना पड़ता है. जिसमें हर महीने हजारों रुपए खर्च हो रहे हैं.
छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में हो रही बीमारी
इन इलाकों में हर घर में बोरिंग के जरिए ही पानी लिया जा रहा है. ऐसे में बड़ी संख्या में भूजल का दोहन भी यहां पर हो रहा है. अधिकांश इलाके में काफी नीचे पानी है. ऐसे में हाथों से होने वाले बोरिंग करवाए गए हैं और कुछ लोगों ने तो 200 से लेकर 300 तक नलकूप खुदवा लिए हैं. हालांकि बोरिंग के पानी में फ्लोराइड ज्यादा है जिसके चलते हर घर में RO की जरूरत पड़ती है, सक्षम लोगों ने RO लगवा लिया हैं, अन्य लोग सीधा फ्लोराइड वाला पानी ही पी रहे हैं. इससे भी कई बीमारियां घर कर रही हैं.
बच्चों से लेकर बड़ों की भी हो रही Skin Problem
जहां भी नलकूप के जरिए पानी लिया जा रहा है. अधिकांश में चर्म रोग (Skin Problem) और बाल झड़ने की समस्या आ रही है. रॉयल सनसिटी कॉलोनी में रहने वाली राजकुमारी लोधा कहती हैं कि उनका पुराना मकान स्टेशन इलाके के खेड़ली फाटक में था. ऐसे में सिर धोने के लिए पानी वहां से लाती है. क्योंकि इस पानी से बाल खराब हो रहे है. यहां तक कि छोटे बच्चों के भी बाल सफेद आ गए हैं. साथ ही स्किन कि कई बीमारियां हो गई है. कविता शाह का कहना है कि बोरिंग के पानी से समस्याएं हैं. घर में टाइल्स खराब हो जाती है. नल खराब हो जाता है, यहां तक कि पानी की पाइप लाइन जाम हो जाती है, जो कपड़े धोते हैं, उनमें भी शाइनिंग नहीं रहती है.
यूआईटी के अप्रूव्ड कॉलोनियों में भी नहीं है पानी
Unauthorized कॉलोनियों में तो पानी पहुंचना शायद दूर की बात हो सकता है लेकिन यूआईटी के पूर्व कॉलोनी में भी पानी की पाइप लाइन नहीं है. इनमें जय श्रीविहार कॉलोनी में 10 साल से ज्यादा अप्रूव्ड हुए हो गए है, वहां पानी पहुंचाने की कोई योजना ही नहीं है. थेगड़ा रोड की मोती नगर से लेकर प्रताप कॉलोनी तक भी बड़ी कॉलोनी या शामिल है. यहां तक कि रायपुरा इलाके की भी कई कॉलोनियां अप्रूव्ड हो चुकी है, लेकिन वहां पर पानी नहीं है.
थेगड़ा में पाइप लाइन डालकर भूली PHED
थेगड़ा इलाके में नहर के नजदीक पीएचईडी के अधिकारी पाइपलाइन डाल कर यूं ही छोड़कर चलते बने हैं. इस पाइपलाइन का कुछ हिस्सा चोरी हो गया था. जिसके बाद उन्होंने उस पाइपलाइन को ही बंद करवा दिया. जबकि नहर से थेगड़ा इलाके में गांव में पानी लाने के लिए योजना थी. इस इलाके के रूप नारायण यादव का कहना है कि वे 2014 से ही यहां रहते हैं कई बार पीएचईडी (PHED) के अधिकारियों से आग्रह भी किया है.
अमृत जल योजना (Amrit Jal Yojna) के जरिए भी पानी आने की उम्मीद थी, लेकिन अब कोई आशा नजर नहीं आती है. उनका कहना है कि कोटा शहर से 10 किलोमीटर दूर चंद्रसेल तक तो पानी पहुंचाया जा रहा है, लेकिन हमारे यहां यह पानी नहीं पहुंच रहा है.