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मानवीय संवेदनाओं का सत स्वरूप है राजस्थानी साहित्य : नाहरसिंह जसोल

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Published : Jan 24, 2021, 8:16 PM IST

जसोल ने कहा कि राजस्थानी और गुजराती भाषा दोनों आपस में बहने हैं. ज्यादा अंतर नहीं है. उन्होंने चारण साहित्य पर भी अपनी बात रखी. पूर्व नरेश गजसिंह ने कहा कि राजस्थानी भाषा-साहित्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर है.

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'आखर राजस्थान' का वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित

जोधपुर. प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से रविवार को 'आखर राजस्थान' का वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित हुआ. इस कार्यक्रम में राजस्थानी भाषा के साहित्यकार नाहर सिंह जसोल ने अपने अनुभव साझा किए.

'आखर राजस्थान' का वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित

जसोल ने कहा कि राजस्थानी और गुजराती भाषा दोनों आपस में बहने हैं. ज्यादा अंतर नहीं है. उन्होंने चारण साहित्य पर भी अपनी बात रखी. साथ ही उन्होंने कहा कि उन्होंने लक्ष्मी चुंडावत को अपनी एक पुस्तक भेजी थी. जिसके बाद उन्होंने कहा था कि मैं जब तक जीवित हूं तब तक कलम चलाता रहा हूं और उसकी पालना अभी तक कर रहा हूं.

पूर्व नरेश गजसिंह ने कहा कि राजस्थानी भाषा - साहित्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर है. इसलिए अपनी गौरवशाली मातृभाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता के लिए हम सब को एक साथ मिलकर सकारात्मक कार्य करना होगा. राजस्थानी भाषा को विदेशों में मान्यता है. मगर अपने ही देश और प्रदेश में मान्यता के लिए संघर्ष कर रहें हैं. अतः राजस्थानी भाषा को राजस्थान की द्वितीय राजभाषा तथा देश में संवैधानिक मान्यता मिलनी ही चाहिए.

पढ़ें- राजस्थानी साहित्य कार्यक्रम 'आखर' का डिजिटल आयोजन...पुस्तक का हुआ लाइव लोकार्पण

उन्होंने कहा कि इसके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र भी लिखा और इसका जवाब भी आया है कि इस पर विचार किया जा रहा है. राजस्थानी को बोलने वालों की संख्या 15 करोड़ है.

जोधपुर. प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से रविवार को 'आखर राजस्थान' का वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित हुआ. इस कार्यक्रम में राजस्थानी भाषा के साहित्यकार नाहर सिंह जसोल ने अपने अनुभव साझा किए.

'आखर राजस्थान' का वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित

जसोल ने कहा कि राजस्थानी और गुजराती भाषा दोनों आपस में बहने हैं. ज्यादा अंतर नहीं है. उन्होंने चारण साहित्य पर भी अपनी बात रखी. साथ ही उन्होंने कहा कि उन्होंने लक्ष्मी चुंडावत को अपनी एक पुस्तक भेजी थी. जिसके बाद उन्होंने कहा था कि मैं जब तक जीवित हूं तब तक कलम चलाता रहा हूं और उसकी पालना अभी तक कर रहा हूं.

पूर्व नरेश गजसिंह ने कहा कि राजस्थानी भाषा - साहित्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर है. इसलिए अपनी गौरवशाली मातृभाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता के लिए हम सब को एक साथ मिलकर सकारात्मक कार्य करना होगा. राजस्थानी भाषा को विदेशों में मान्यता है. मगर अपने ही देश और प्रदेश में मान्यता के लिए संघर्ष कर रहें हैं. अतः राजस्थानी भाषा को राजस्थान की द्वितीय राजभाषा तथा देश में संवैधानिक मान्यता मिलनी ही चाहिए.

पढ़ें- राजस्थानी साहित्य कार्यक्रम 'आखर' का डिजिटल आयोजन...पुस्तक का हुआ लाइव लोकार्पण

उन्होंने कहा कि इसके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र भी लिखा और इसका जवाब भी आया है कि इस पर विचार किया जा रहा है. राजस्थानी को बोलने वालों की संख्या 15 करोड़ है.

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