जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निस्तारित करते हुए पुलिस को निर्देश दिए हैं कि नाबालिग बालिका को उसके माता-पिता के पास सुरक्षित रूप से पहुंचाया जाए. वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता और न्यायाधीश देवेन्द्र कच्छवाहा की खंडपीठ के समक्ष गुरुवार को नाबालिग बालिका को नारी निकेतन से लाकर पेश किया गया.
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बाल कल्याण समिति ने भी उम्र संबंधी दस्तावेजों की जांच कर रिपोर्ट पेश की, जिसमें बताया गया कि बालिका अभी नाबालिग है. जब बाल कल्याण समिति की रिपोर्ट पेश हुई तो नाबालिग ने न्यायालय के समक्ष कहा कि अब उसे माता-पिता के घर जाना है तो न्यायालय ने पुलिस को निर्देश दिए कि सुरक्षा के साथ नाबालिग को उसके परिजनों के पास भेजा जाए.
गौरतलब है कि नाबालिग के भाई ओमप्रकाश की ओर से एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अधिवक्ता अशोक छंगाणी के जरिए बताया कि बालिका नाबालिग है और स्कूल दस्तावेजों के अनुसार 2005 उसकी जन्म तिथि है. अप्रार्थी मूलाराम उसे भगाकर ले गया और जबरन बंधक बनाकर रखा है. बालिका को जब पिछली सुनवाई पर पेश किया गया तो न्यायालय ने बालिका से पूछताछ की तो उसने बताया कि वह बालिग है और स्कूल दस्तावेजों में गलत तारीख अंकित की गई है. उसने अपनी मर्जी से मूलाराम के साथ विवाह किया है. वह अपने परिजनों के साथ नहीं जाना चाहती है.
बालिका के बयान के बाद न्यायालय में अधिवक्ता छंगाणी ने कहा कि किशोर न्याय के प्रावधान के अनुसार स्कूल दस्तावेज ही मान्य है, जिसमें वह नाबालिग है. न्यायालय ने सुनवाई के बाद बालिका को नारी निकेतन क्वॉरेंटाइन सेंटर में भेजने के निर्देश दिए थे. वहीं, बाल कल्याण समिति जोधपुर को निर्देश दिए थे कि वो बालिका की आयु संबंधी दस्तावेजों की पूछताछ करने के साथ जांच कर रिपोर्ट पेश करें.