जोधपुर. आज कारगिल युद्ध (Kargil Vijay Diwas 2021) के 22 साल पूरे हो गए. पाकिस्तान की ओर से कारगिल (Kargil) क्षेत्र में की गई घुसपैठ की परिणिति के तौर पर यह युद्ध हुआ था. इस युद्ध में भारत के सैकड़ों जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर देश की सीमाओं की रक्षा की. कारगिल क्षेत्र की दुर्गम पहाड़ियों में कई ऐसे प्वाइंट थे जिन पर पाकिस्तानी घुसपैठिए और पाक सेना ने कब्जा कर लिया था. जिन्हें दुश्मन से छुड़ाने में भारत को अपने कई वीर जवान खोने पड़े.
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जोधपुर के भोपालगढ़ क्षेत्र के खेड़ी चारणान गांव निवासी कालूराम जाखड़ पुत्र गंगाराम जाखड़ 28 अप्रैल 1994 को भारतीय सेना की 17 जाट रेजीमेंट में सिपाही के पद पर सेना में भर्ती हुए थे. चार-साढ़े चार साल बाद ही उनकी तैनाती जम्मू कश्मीर इलाके में हो गई थी. मई 1999 में कारगिल युद्ध (Kargil War) शुरू हो गया था. कालूराम कारगिल की पहाड़ी पर करीब 17850 फीट की ऊंचाई पर पीपुल-2-तारा सेक्टर में अपनी रेजिमेंट के साथ तैनात थे.
इस दौरान 4 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सेना ने उनकी रेजिमेंट पर हमला बोल दिया. एक बम का गोला कालूराम के पैर पर आकर लगा और उनका पैर शरीर से अलग ही हो गया था. इसके बावजूद भी कालूराम दुश्मनों से लड़ते रहे और अपने रॉकेट लॉन्चर से दुश्मनों का एक बंकर ध्वस्त कर उसमें छिपे 8 घुसपैठियों को मार गिराया.
बता दें, पिम्पल टॉप को पाक सेना और घुसपैठियों ने कब्जा लिया था. इस पर काबू करने की लिए 17 जाट बटालियन की टुकड़ी को भेजा गया, जिसमें जोधपुर के खेड़ी चारणा के नायक कालूराम जाखड़ भी शामिल थे. इसके लिए 4 जुलाई को भयंकर लड़ाई हुई. कालूराम के पास मोर्टार का जिम्मा था, जिससे उन्होंने दुश्मनों को नाकों चने चबवा दिए थे. पिम्पल पहाड़ी पर 2 बंकर नष्ट कर दिए और कई पाक सैनिकों को मार गिराया.
बंकरों को घेर लिया गया, एक बंकर शेष था. इसके बाद विचार-विमर्श कर चौतरफा हमला करने का निर्णय लिया गया. पाक की दिशा की तरफ से भारतीय सैनिकों ने गोले बरसाने शुरू किए. इसके साथ सामने भारत की तरफ से भी गोले आने लगे. इससे बंकर में छीपे बैठे पाक सैनिकों में हाहाकार मच गया. जवाबी फायरिंग शुरू हुई, जिसका जवाब भी कालूराम और उनके साथी दे रहे थे. इस बीच दुश्मन का एक गोला आया और कालूराम की जांघ पर लग गया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. लगातार हमला करते रहे. बाकी बचा बंकर नष्ट होने के साथ ही भारतीय सेना ने पिम्पल प्वाइंट फतह कर लिया, लेकिन इस दौरान कालूराम जाखड़ ने अपना सर्वोच्च बलिदान देश के लिए दे दिया.
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सम्मान मिला, अब सहयोग की जरूरत
सैनिक कुशलता, साहस, कर्तव्यनिष्ठा एवं देशभक्ति के लिए भारत सरकार ने उन्हें 'बैज ऑफ सैक्रिफाइस' (मरणोपरांत) से सम्मानित किया. शहीद कालूराम जाखड़ की स्मृति में गांव से जोधपुर जाने वाली मुख्य सड़क पर शहीद स्मारक बना हुआ है और गांव के मुख्य चौक में मूर्ति स्थल बना हुआ है. उनके नाम से स्कूल का नामकरण किया गया है.
गांव के निवासी सुनील बिश्नोई बताते हैं कि कालूराम जाखड़ की प्रेरणा से कई युवा सेना में शामिल हुए हैं. उनके नाम से स्मारक स्थल बना हुआ है, लेकिन हमारी मांग है कि वे अच्छे खिलाड़ी थे तो उनके नाम से एक खेल मैदान बनाया जाए और उनके स्मारक के लिए सरकार विद्युत कनेक्शन और एक ट्यूबवेल लगवा दें.
जिस दिन मां को लिखा खत उसी दिन हुए शहीद
कालूराम 1 जनवरी 1999 को अपनी छुट्टी पूरी कर वापस ड्यूटी पर लौटे थे. इसके बाद पत्राचार से ही बातचीत चल रही थी. उनकी मां अकेली देवी बताती हैं कि वह हमेशा एक ही बात कहता था कि कुछ नया करूंगा और नाम करूंगा और उसने कर ही दिया. कालूराम ने 4 जुलाई को ही परिवार के लिए खत लिखा और पोस्ट किया था. उस दिन रात को ही उनके भाई को समाचार मिला कि शहीद हो गए हैं. चिट्ठी 10 जुलाई को गांव पहुंची, उससे पहले शहीद की देह पहुंच गई.
युद्ध भूमि में होते हुए भी लिखा मजे में हूं, मां-पिताजी का ध्यान रखना
कालूराम ने 4 जुलाई को युद्ध मैदान से ही चिट्ठी लिखी थी और उसके बाद वे अपने ऑपरेशन में गए थे. उस चिट्ठी में भी यही लिखा कि मैं मजे में हूं, मेरी चिंता मत करना. अपने भाई को लिखा कि माता जी और पिताजी के स्वास्थ्य का ध्यान रखना. इस चिट्ठी में परिवार के लगभग प्रत्येक व्यक्ति का नाम लिख याद किया. इसके अलावा गांव के भी अपने कई दोस्तों के नाम लिखे थे.