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युवती ने कहा स्वेच्छा से माता-पिता के साथ हूं, हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की खारिज

राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान युवती द्वारा अपने माता पिता के साथ रहने की इच्छा जताने एवं किसी प्रकार की हिरासत नहीं होने पर याचिका को खारिज कर दिया.

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हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की खारिज
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Published : Apr 28, 2021, 10:34 PM IST

जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान युवती द्वारा अपने माता पिता के साथ रहने की इच्छा जताने एवं किसी प्रकार की हिरासत नहीं होने पर याचिका को खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता युवक हर्षित असरमा ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर बताया था कि उसने युवती के साथ प्रेम विवाह किया है. जबकि युवती के परिजन उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध बंधक बना कर रख रहे हैं.

पढ़ें: वैवाहिक उम्र होने से पहले लिव इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकते : HC

उच्च न्यायालय ने 07 अप्रैल को प्रारम्भिक सुनवाई के दौरान यह शर्त लगाई थी की युवक दस हजार रुपये ज्यूडिशियल रजिस्ट्रार के समक्ष जमा करवाएं उसके बाद नोटिस जारी किया जायेगा. यदि युवती ने सुनवाई के दौरान किसी प्रकार के अवैध हिरासत या युवक के साथ जाने से इंकार किया तो याचिका खारिज कर दी जायेगी. युवक ने उच्च न्यायालय की शर्त को मानते हुए दस हजार रुपये जमा करवा दिये. जिस पर 19 अप्रैल को उच्च न्यायालय ने उदयपुर पुलिस को निर्देश दिये कि युवती को न्यायालय के समक्ष पेश किया जाए.

बुधवार को सुनवाई के दौरान उदयपुर पुलिस ने युवती को वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश देवेन्द्र कच्छवाहा की खंडपीठ के समक्ष पेश किया. उच्च न्यायालय में युवती ने अपने बयान में बताया कि वह अपने माता पिता के साथ ही रहना चाहती है उसे किसी प्रकार की अवैध हिरासत में नहीं रखा गया है और ना ही वह युवक के साथ जाना चाहती है. सरकार की ओर से एएजी फरजंद अली के सहयोगी अभिषेक पुरोहित ने पक्ष रखा कि जब युवती जाना नहीं चाहती तो याचिका खारिज की जाए. उच्च न्यायालय ने सुनवाई को पूरा करते हुए युवती के इच्छा अनुसार उसे उसके माता पिता के साथ जाने की इजाजत देते हुये याचिका को खारिज कर दिया.

जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान युवती द्वारा अपने माता पिता के साथ रहने की इच्छा जताने एवं किसी प्रकार की हिरासत नहीं होने पर याचिका को खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता युवक हर्षित असरमा ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर बताया था कि उसने युवती के साथ प्रेम विवाह किया है. जबकि युवती के परिजन उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध बंधक बना कर रख रहे हैं.

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उच्च न्यायालय ने 07 अप्रैल को प्रारम्भिक सुनवाई के दौरान यह शर्त लगाई थी की युवक दस हजार रुपये ज्यूडिशियल रजिस्ट्रार के समक्ष जमा करवाएं उसके बाद नोटिस जारी किया जायेगा. यदि युवती ने सुनवाई के दौरान किसी प्रकार के अवैध हिरासत या युवक के साथ जाने से इंकार किया तो याचिका खारिज कर दी जायेगी. युवक ने उच्च न्यायालय की शर्त को मानते हुए दस हजार रुपये जमा करवा दिये. जिस पर 19 अप्रैल को उच्च न्यायालय ने उदयपुर पुलिस को निर्देश दिये कि युवती को न्यायालय के समक्ष पेश किया जाए.

बुधवार को सुनवाई के दौरान उदयपुर पुलिस ने युवती को वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश देवेन्द्र कच्छवाहा की खंडपीठ के समक्ष पेश किया. उच्च न्यायालय में युवती ने अपने बयान में बताया कि वह अपने माता पिता के साथ ही रहना चाहती है उसे किसी प्रकार की अवैध हिरासत में नहीं रखा गया है और ना ही वह युवक के साथ जाना चाहती है. सरकार की ओर से एएजी फरजंद अली के सहयोगी अभिषेक पुरोहित ने पक्ष रखा कि जब युवती जाना नहीं चाहती तो याचिका खारिज की जाए. उच्च न्यायालय ने सुनवाई को पूरा करते हुए युवती के इच्छा अनुसार उसे उसके माता पिता के साथ जाने की इजाजत देते हुये याचिका को खारिज कर दिया.

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