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छात्र को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने के मामला, हाईकोर्ट के तत्काल प्रवेश देने के आदेश

राजस्थान हाईकोर्ट ने छात्र को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने के मामले में छात्र को तत्काल प्रवेश देने के आदेश दिए हैं. साथ ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों और निजी स्कूल को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब तलब किया है.

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Published : Jul 2, 2019, 11:34 PM IST

हाईकोर्ट के तत्काल प्रवेश देने के आदेश

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर एक छात्र को नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार से वंचित करने के मामले में छात्र को तत्काल प्रवेश देने के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही कोर्ट ने शिक्षा विभाग के प्रमुख शासन सचिव, प्रारम्भिक शिक्षा निदेशालय राजस्थान के निदेशक, जोधपुर के जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारम्भिक) और निजी स्कूल को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया है.

छात्र को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने के मामला, हाईकोर्ट के तत्काल प्रवेश देने के आदेश

जोधपुर के महामंदिर निवासी राधा रानी के चार वर्षीय पुत्र दिव्यम की ओर से कोर्ट में वकील रज्जाक हैदर और पंकज साईं ने पैरवी करते हुए बताया कि याचिकाकर्ता ने नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत ऑनलाइन आवेदन किया था. लॉटरी प्रक्रिया में चयनित होने के उपरांत उसे प्रवेश के लिए पात्र घोषित किया गया. लेकिन निजी स्कूल ने उसे इस आधार पर प्रवेश से वंचित कर दिया कि उसने सम्बन्धित विभाग से जन्म प्रमाण पत्र लॉटरी दिनांक से बाद में प्राप्त किया है और दस्तावेज जमा करवाने की अंतिम तिथि तक उनके दस्तावेज जमा नहीं होने के कारण अब प्रवेश नहीं दिया जा सकता है.

वकील हैदर ने कोर्ट को तर्क दिया कि नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 14 (2) में स्पष्ट प्रावधान है कि किसी बालक को आयु का सबूत न होने के कारण किसी स्कूल में प्रवेश से इंकार नहीं किया जा सकता. इसी अधिनियम के तहत राज्य सरकार की ओर से बनाए गए राजस्थान नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम, 2011 में भी प्रावधान है कि आयु का सबूत न होने पर उसके माता-पिता की घोषणा अथवा जन्म से सम्बन्धित कोई भी दस्तावेज आयु प्रमाण पत्र के रूप में स्वीकार किया जाएगा.

मामले में याचिकाकर्ता के पास आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र है. लेकिन फिर भी उसे नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया गया. जो न केवल अविधिक और अनुचित है. बल्कि असंवैधानिक भी है. प्रारंभिक सुनवाई के बाद न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने राज्य सरकार व स्कूल प्रशासन को नोटिस जारी करते हुए 4 सप्ताह में जवाब पेश करने और छात्र को अंतरिम तौर पर स्कूल में प्रवेश देने का आदेश पारित किया.

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर एक छात्र को नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार से वंचित करने के मामले में छात्र को तत्काल प्रवेश देने के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही कोर्ट ने शिक्षा विभाग के प्रमुख शासन सचिव, प्रारम्भिक शिक्षा निदेशालय राजस्थान के निदेशक, जोधपुर के जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारम्भिक) और निजी स्कूल को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया है.

छात्र को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने के मामला, हाईकोर्ट के तत्काल प्रवेश देने के आदेश

जोधपुर के महामंदिर निवासी राधा रानी के चार वर्षीय पुत्र दिव्यम की ओर से कोर्ट में वकील रज्जाक हैदर और पंकज साईं ने पैरवी करते हुए बताया कि याचिकाकर्ता ने नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत ऑनलाइन आवेदन किया था. लॉटरी प्रक्रिया में चयनित होने के उपरांत उसे प्रवेश के लिए पात्र घोषित किया गया. लेकिन निजी स्कूल ने उसे इस आधार पर प्रवेश से वंचित कर दिया कि उसने सम्बन्धित विभाग से जन्म प्रमाण पत्र लॉटरी दिनांक से बाद में प्राप्त किया है और दस्तावेज जमा करवाने की अंतिम तिथि तक उनके दस्तावेज जमा नहीं होने के कारण अब प्रवेश नहीं दिया जा सकता है.

वकील हैदर ने कोर्ट को तर्क दिया कि नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 14 (2) में स्पष्ट प्रावधान है कि किसी बालक को आयु का सबूत न होने के कारण किसी स्कूल में प्रवेश से इंकार नहीं किया जा सकता. इसी अधिनियम के तहत राज्य सरकार की ओर से बनाए गए राजस्थान नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम, 2011 में भी प्रावधान है कि आयु का सबूत न होने पर उसके माता-पिता की घोषणा अथवा जन्म से सम्बन्धित कोई भी दस्तावेज आयु प्रमाण पत्र के रूप में स्वीकार किया जाएगा.

मामले में याचिकाकर्ता के पास आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र है. लेकिन फिर भी उसे नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया गया. जो न केवल अविधिक और अनुचित है. बल्कि असंवैधानिक भी है. प्रारंभिक सुनवाई के बाद न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने राज्य सरकार व स्कूल प्रशासन को नोटिस जारी करते हुए 4 सप्ताह में जवाब पेश करने और छात्र को अंतरिम तौर पर स्कूल में प्रवेश देने का आदेश पारित किया.

Intro:शिक्षा के अधिकार के नियमों की पालना नहीं कर रहा था शिक्षा विभाग, कोर्ट ने दिए आदेश


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जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर एक मासूम छात्र को नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार से वंचित करने के मामले में छात्र को तत्काल प्रवेश देने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के प्रमुख शासन सचिव, प्रारम्भिक शिक्षा निदेशालय राजस्थान के निदेशक, जोधपुर के जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारम्भिक) और निजी स्कूल को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। जोधपुर के महामंदिर निवासी राधा रानी के चार वर्षीय पुत्र दिव्यम की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट में अधिवक्ता रजाक के. हैदर व पंकज साईं ने पैरवी करते हुए कहा कि, याचिकाकर्ता ने नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत ऑनलाइन आवेदन किया था। लॉटरी प्रक्रिया में चयनित होने के उपरांत उसे प्रवेश के लिए पात्र घोषित किया गया, लेकिन निजी स्कूल ने उसे इस आधार पर प्रवेश से वंचित कर दिया कि उसने सम्बन्धित विभाग से जन्म प्रमाण पत्र लॉटरी दिनांक से बाद में प्राप्त किया है और दस्तावेज जमा करवाने की अंतिम तिथि तक उनके दस्तावेज जमा नहीं होने के कारण अब प्रवेश नहीं दिया जा सकता।

जबकि कानून कहता है, प्रमाण न होने पर भी नहीं कर सकते इनकार
अधिवक्ता हैदर ने तर्क दिया कि नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 14 (2) में स्पष्ट प्रावधान है कि किसी बालक को, आयु का सबूत न होने के कारण किसी विद्यालय में प्रवेश से इनकार नहीं किया जा सकता। इसी अधिनियम के तहत राज्य सरकार की ओर से बनाए गए राजस्थान नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम, 2011 में भी प्रावधान है कि आयु का सबूत न होने पर उसके माता-पिता की घोषणा अथवा जन्म से सम्बन्धित कोई भी दस्तावेज आयु प्रमाण पत्र के रूप में स्वीकार किया जाएगा। इस मामले में याचिकाकर्ता के पास आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र है, लेकिन फिर भी उसे नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया गया, जो न केवल अविधिक और अनुचित है, बल्कि असंवैधानिक भी है। प्रारम्भिक सुनवाई के बाद न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने राज्य सरकार व स्कूल प्रशासन को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब पेश करने और छात्र को अंतरिम तौर पर स्कूल में प्रवेश देने का आदेश पारित किया।
बाईट रज्जाक हैदर, अधिवक्ता



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