जोधपुर. प्रदेश में सबसे अधिक कोरोना का संक्रमण जोधपुर में बढ़ रहा है. प्रशासन की तरफ से कोरोना गाइडलाइन की पालना करवाई जा रही है. कोरोना में सबसे अधिक प्रभावित रक्तदान हो रहा है. सोशल डिस्टेंसिंग के चलते बड़े रक्तदान शिविरों का आयोजन नहीं हो पा रहा है. जिसके चलते अस्पतालों में पिछले साल की तुलना में ब्लड के स्टोरेज में 50 प्रतिशत तक की कमी देखने को मिली है.
मथुरादास माथुर में आधा हुआ ब्लड स्टोरेज
जोधपुर संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल मथुरादास माथुर में पिछले साल की तुलना में इस बार 6000 यूनिट ब्लड कम आया है. कोरोना की शुरुआत में कई प्लान सर्जरी टल गई नहीं तो मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ सकता था. एमडीएम अस्पताल ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. जीसी मीणा का कहना है कि गत सितंबर तक हमारे पास 13 हजार यूनिट स्वैच्छिक रक्तदान आया था, लेकिन इस बार यह 7000 यूनिट ही आया है.
पढ़ें: Special: तितलियों के झुंड ने बढ़ाया कौतूहल, विशेषज्ञ बोले- चिंता की बात नहीं
डॉ. मीणा बताते हैं कि स्वयंसेवी संस्थाएं मेगा ब्लड डोनेशन शिविर आयोजित नहीं कर पा रही हैं. छोटे-छोटे कैंप ही कोरोना काल में आयोजित किए जा रहे हैं. जिसके चलते मरीजों की आवश्यकता के अनुसार ब्लड मिल रहा है. लेकिन ब्लड का स्टोरेज नहीं हो पा रहा है. डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध महात्मा गांधी अस्पताल की अधीक्षक एवं ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. राजश्री बेहरा का कहना है कि जितनी जरूरत है उतना ब्लड छोटे-छोटे कैंपों से मिल रहा है.
वर्तमान में 95 फीसदी रक्त स्वैच्छिक रक्तदान से दिया जा रहा है. कोरोना के चलते पहले ब्लड की जरूरत कम थी लेकिन अब सुपर स्पेशलिटी सहित सभी विभागों में काम सामान्य हो गया है तो जरूरत बढ़ रही है. मेडिकल कॉलेज की तीन ब्लड बैंकों में सालाना 28 से 30 हजार यूनिट ब्लड की आवश्यकता होती है. इसके एवज में 30 से 32 हजार यूनिट से ज्यादा रक्त आता है. इस बार आवश्यकता में कमी के साथ-साथ रक्तदान में भी कमी के चलते मांग और खपत भी आधी हो गई है.
किन रोगों में होती है सबसे ज्यादा ब्लड की आवश्यकता
सबसे ज्यादा थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों के लिए खून काम आता है. जिन्हें हर सप्ताह से पंद्रह दिनों में खून चढ़ाना होता है. इसके अलावा सिजेरियन डिलीवरी में सर्वाधिक रक्त की आवश्यकता होती है. परेशानी वाली बात यह है कि अगर आने वाले समय में डेंगू के मामले बढ़ते हैं तो बैंकों में ब्लड का स्टोरेज नहीं होने से प्लेटलेट बनाने में दिक्कत सामने आएगी. क्योंकि डेंगू के इलाज में प्लेटलेट्स की सर्वाधिक डिमांड रहती है. लेकिन इस बार स्टोरेज नहीं होने मरीजों को दिक्कतों को सामना करना पड़ेगा.
पढ़ें: स्पेशल: दलित उत्पीड़न मामले में देश में दूसरे नंबर पर पहुंचा राजस्थान, महिलाओं पर अत्याचार भी बढ़ा
रक्तदान शिविर लगाने वाली संस्थाएं क्या कह रही हैं?
जोधपुर में रक्तदान शिविरों का आयोजन करने वाली संस्थाओं का कहना है कि कोरोना काल में भी छोटे कैपों के माध्यम से ही रक्तदान जारी है. 'दो बूंद जिंदगी' के संरक्षक डॉ. नगेंद्र शर्मा का कहना है कि पूरे कोरोना काल में हमारी संस्था ने रक्तदान शिविरों का आयोजन जारी रखा. इसके पीछे वजह यही थी कि कोरोना काल में मरीजों को किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना ना करना पड़े. संस्था के अध्यक्ष रजत गौड़ का कहना है कि छह माह में 1300 यूनिट से ज्यादा यूनिट रक्तदान संस्थान ने करवाया है.
कोरोना काल में 35 शिविरों के माध्यम से 1750 यूनिट ब्लड मरीजों को उपलब्ध करवाने वाली बाबा रामदेव संस्थान के अध्यक्ष करण सिंह राठौड़ का कहना है कि अब कोरोना का संक्रमण घर-घर फैल गया है ऐसे में बड़े कैंपों का आयोजन संभव नहीं है. सरकार ने ऐसे कैंपों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य कर रखा है जिसमें खासी दिक्कत आती है. इसलिए व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से आवश्यकता होने पर ब्लड डोनर भेजे जाते हैं. जिससे मरीजों को भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता और रक्तदान भी हो जाता है. आने वाले समय में डेंगू से निपटने के लिए रक्तदान शिविरों का आयोजन करने वाली संस्थाओं का कहना है कि उसके लिए भी ब्लड डोनर तैयार किए जा रहे हैं. डेंगू के मरीजों के लिए सिंगल डोनर प्लेटलेट की भी आवश्यकता होती है. जिसके लिए डोनर तैयार किए जा रहे हैं.