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17 साल के हृदेश्वर सिंह गोलाकर शतरंज के यंगेस्ट पेटेंट होल्डर, राष्ट्रपति बाल शक्ति अवार्ड मिलेगा

एक ही शतरंज पर 60 खिलाड़ी एक साथ इस गेम को एंजॉय कर सकते हैं. जयपुर के रहने वाले 17 साल के हृदेश्वर ने ऐसा शतरंज बनाकर पूरी दुनिया में अपना नाम दर्ज करवा दिया है. उन्हें अब राष्ट्रपति की ओर से पुरस्कार से नवाजा जाएगा.

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17 साल के हृदेश्वर सिंह की 60 खिलाड़ियों वाली शतरंज
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Published : Jan 12, 2020, 11:46 AM IST

जयपुर. जिंदगी में कुछ कर गुजरने के लिए इंसान के हौसले बुलंद होने चाहिए, लेकिन अगर आपके हौसले बुलंद नहीं होंगे तो आप मृत समान है, ये कहना है दिव्यांगों में विश्व के सबसे कम उम्र के पेटेंट धारक जयपुर निवासी हृदेश्वर सिंह का. 17 वर्षीय हृदेश्वर चल नहीं सकते, लेकिन उन्होंने अपने दिमाग से ना सिर्फ भारत में बल्कि विश्व में नाम रोशन किया है.

17 साल के हृदेश्वर सिंह की 60 खिलाड़ियों वाली शतरंज

हृदेश्वर ने 6,12 और 60 प्लेयर्स के खेलने के लिए गोलाकार शतरंज का आविष्कार किया है. इस आविष्कार के लिए उन्हें 3 दिसंबर को राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार 'अति उत्कृष्ट आविष्कारक 2019' से नवाजा गया. इतना ही नहीं हृदेश्वर सिंह को राष्ट्रपति द्वारा 'प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार 2020' से भी सम्मानित किया जाएगा. इस आविष्कार के बाद हृदेश्वर दिव्यांग केटेगरी में विश्व के साथ भारत के भी सबसे कम उम्र के पेटेंट धारक बन चुके हैं.

ऐसे हुआ आविष्कार

हम सभी ने शतरंज को दो खिलाड़ियों के साथ खेलता देखा है और हृदेश्वर भी अपने पिता सरोवर सिंह भाटी के साथ शतरंज खेल रहे थे. उसी व्यक्त हृदेश्वर के कुछ दोस्त उनके पास आए और शतरंज खेलने के लिए बोला लेकिन हृदेश्वर ने कहा, कि अभी वे अपने पापा के साथ खेल रहे हैं, आप बाद में आना. इसके बाद दोस्त तो चले गए, लेकिन हृदेश्वर को बुरा लगा. तभी से हृदेश्वर ने ज्यादा लोगों के साथ शतरंज खेलने को लेकर खोज की और धीरे-धीरे इसका आविष्कार किया.

यह भी पढ़ें : स्पेशल : प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में अऋणी किसानों ने कराया बीमा, जालोर रहा अव्वल

भारत की विरासत को रखा जिंदा

शतरंज भारत का आविष्कार है और भारत की विरासत है, लेकिन जापान डिस्टिंक्ट चेस वेरिएंट्स के मामले में दुनिया में पहले पायदान पर माना जाता था. हृदेश्वर ने सोचा भारत के आविष्कार में जापान आगे कैसे निकल चुका है, इसलिए हृदेश्वर ने 12 और 60 खिलाड़ियों के लिए सर्कुलर चेस का आविष्कार किया, ताकि भारत की विरासत जिंदा रह सके और इसके बाद भारत को चैस वेरियंस इनोवेशन में पहला स्थान दिलाया.

अबतक 7 आविष्कार कर चुके, 3 को मिला पेटेंट

इतनी कम उम्र में हृदेश्वर 7 आविष्कार कर चुके हैं. जिसमें से अब तक 3 को पेटेंट मिल चुका है. इसी बीच अब हृदेश्वर ने साइबर अटैक की सिक्योरिटी पर रिसर्च करना शुरू कर दिया है. हृदेश्वर अपनी अवस्था के कारण स्कूल तो नहीं जा पाते लेकिन घर पर ही पूरी दुनिया को यूनिवर्सिटी बनाकर तालीम लेते हैं. हर दिन करीब 10 घंटे वह इंटरनेट और टीवी के जरिए देश दुनिया की नॉलेज का खजाना टटोलते हैं. खासकर साइंस के बारे में पढ़ना हृदेश्वर को बेहद पसंद है.

जयपुर. जिंदगी में कुछ कर गुजरने के लिए इंसान के हौसले बुलंद होने चाहिए, लेकिन अगर आपके हौसले बुलंद नहीं होंगे तो आप मृत समान है, ये कहना है दिव्यांगों में विश्व के सबसे कम उम्र के पेटेंट धारक जयपुर निवासी हृदेश्वर सिंह का. 17 वर्षीय हृदेश्वर चल नहीं सकते, लेकिन उन्होंने अपने दिमाग से ना सिर्फ भारत में बल्कि विश्व में नाम रोशन किया है.

17 साल के हृदेश्वर सिंह की 60 खिलाड़ियों वाली शतरंज

हृदेश्वर ने 6,12 और 60 प्लेयर्स के खेलने के लिए गोलाकार शतरंज का आविष्कार किया है. इस आविष्कार के लिए उन्हें 3 दिसंबर को राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार 'अति उत्कृष्ट आविष्कारक 2019' से नवाजा गया. इतना ही नहीं हृदेश्वर सिंह को राष्ट्रपति द्वारा 'प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार 2020' से भी सम्मानित किया जाएगा. इस आविष्कार के बाद हृदेश्वर दिव्यांग केटेगरी में विश्व के साथ भारत के भी सबसे कम उम्र के पेटेंट धारक बन चुके हैं.

ऐसे हुआ आविष्कार

हम सभी ने शतरंज को दो खिलाड़ियों के साथ खेलता देखा है और हृदेश्वर भी अपने पिता सरोवर सिंह भाटी के साथ शतरंज खेल रहे थे. उसी व्यक्त हृदेश्वर के कुछ दोस्त उनके पास आए और शतरंज खेलने के लिए बोला लेकिन हृदेश्वर ने कहा, कि अभी वे अपने पापा के साथ खेल रहे हैं, आप बाद में आना. इसके बाद दोस्त तो चले गए, लेकिन हृदेश्वर को बुरा लगा. तभी से हृदेश्वर ने ज्यादा लोगों के साथ शतरंज खेलने को लेकर खोज की और धीरे-धीरे इसका आविष्कार किया.

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भारत की विरासत को रखा जिंदा

शतरंज भारत का आविष्कार है और भारत की विरासत है, लेकिन जापान डिस्टिंक्ट चेस वेरिएंट्स के मामले में दुनिया में पहले पायदान पर माना जाता था. हृदेश्वर ने सोचा भारत के आविष्कार में जापान आगे कैसे निकल चुका है, इसलिए हृदेश्वर ने 12 और 60 खिलाड़ियों के लिए सर्कुलर चेस का आविष्कार किया, ताकि भारत की विरासत जिंदा रह सके और इसके बाद भारत को चैस वेरियंस इनोवेशन में पहला स्थान दिलाया.

अबतक 7 आविष्कार कर चुके, 3 को मिला पेटेंट

इतनी कम उम्र में हृदेश्वर 7 आविष्कार कर चुके हैं. जिसमें से अब तक 3 को पेटेंट मिल चुका है. इसी बीच अब हृदेश्वर ने साइबर अटैक की सिक्योरिटी पर रिसर्च करना शुरू कर दिया है. हृदेश्वर अपनी अवस्था के कारण स्कूल तो नहीं जा पाते लेकिन घर पर ही पूरी दुनिया को यूनिवर्सिटी बनाकर तालीम लेते हैं. हर दिन करीब 10 घंटे वह इंटरनेट और टीवी के जरिए देश दुनिया की नॉलेज का खजाना टटोलते हैं. खासकर साइंस के बारे में पढ़ना हृदेश्वर को बेहद पसंद है.

Intro:जयपुर- जिंदगी में कुछ कर गुजरने के लिए इंसान के हौसले बुलंद होने चाहिए, फिर चाहे वो सक्षम इंसान हो या असक्षम। लेकिन अगर आपके हौसले बुलंद नहीं होंगे तो आप मृत समान है। ये कहना है दिव्यांगों में विश्व के सबसे कम उम्र के पेटेंट धारक जयपुर निवासी हृदेश्वर सिंह का। 17 वर्षीय हृदेश्वर चल फिर नहीं सकते लेकिन उन्होंने अपने दिमाग से ना सिर्फ भारत में बल्कि विश्व मे अपना नाम दर्ज करवाया है। हृदेश्वर ने 6, 12 और 60 प्लेयर्स को खेलने का गोलाकार शतरंज का अविष्कार किया है और इस अविष्कार के लिए उन्हें 3 दिसंबर को राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार 'अति उत्कृष्ट अविष्कारक 2019' से नवाजा गया। इतना ही नहीं हृदेश्वर सिंह को राष्ट्रपति द्वारा 'प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार 2020' से भी सम्मानित किया जाएगा। इस अविष्कार के बाद हृदेश्वर दिव्यांग केटेगरी में विश्व के सबसे कम उम्र के पेटेंट धारक बन चुके है और भारत के पहले सबसे कम उम्र के पेटेंट धारक बन चुके है।

ऐसे हुआ अविष्कार
हम सभी ने शतरंज को दो खिलाड़ियों के साथ खेलता देखा है और हृदेश्वर भी अपने पिता सरोवर सिंह भाटी के साथ शतरंज खेल रहे थे। उसी व्यक्त हृदेश्वर के कुछ दोस्त उनके पास आए और शतरंज खेलने के लिए बोला लेकिन हृदेश्वर ने कहा कि अभी वे अपने पापा के साथ खेल रहे है आप बाद में आना। इतना सब बोलकर हृदेश्वर के दोस्त चले गए लेकिन हृदेश्वर को भूरा लगा। तब ही से हृदेश्वर ने ज्यादा लोगों के साथ शतरंज खेलने को लेकर खोज की और धीरे धीरे इसका अविष्कार किया।

भारत की विरासत को रखा जिंदा
शतरंज भारत का अविष्कार है और भारत की विरासत है। लेकिन जापान डिस्टिंक्ट चेस वेरिएंट्स के मामले में दुनिया में पहले पायदान पर माना जाता था। हृदेश्वर ने सोचा भारत के आविष्कार में जापान आग कैसे निकल चुका है। इसलिए हृदेश्वर ने 12 और 60 खिलाड़ियों के लिए सर्कुलर चेस का अविष्कार किया ताकि भारत की विरासत जिंदा रह सके और इसके बाद भारत को चैस वेरियंस इनोवेशन में पहला स्थान दिलाया।


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अब तक 7 अविष्कार कर चुके, 3 का पेटेंट
इतनी कम उम्र में हृदेश्वर 7 अविष्कार कर चुके है जिसमें अब 3 को पेटेंट मिल चुका है। इसी बीच अब हृदेश्वर देश मे साइबर अटैक की सिक्योरिटी पर रिसर्च करना शुरु कर दिया है। हृदेश्वर अपनी अवस्था के कारण स्कूल तो नहीं जा पाते लेकिन घर पर और अपनी व्हील चेयर पर बैठकर ही पूरी दुनिया को यूनिवर्सिटी बनाकर तालीम लेते है। हर दिन करीब 10 घंटे वह इंटरनेट और टीवी के जरिए देश दुनिया की नॉलेज का खजाना टटोलते है। खासकर साइंस को एक्सप्लोरर करना ही हृदेश्वर को बेहद पसंद है।

बाईट- हृदेश्वर सिंह भाटी, शतरंज अविष्कार
बाईट- सरोवर सिंह भाटी, पिता


Conclusion:
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