जयपुर. अशोक गहलोत सरकार के पिछले बजट में की गई 'जीरो बजट प्राकृतिक खेती योजना' वित्तीय वर्ष की समाप्ति के अंत तक पूरी तरीके से धरातल पर नहीं उतर पाई थी. योजना के लिए बजट दो करोड़ का था, लेकिन खर्च हो पाए महज 28 लाख 12 हजार रुपए. विधानसभा के प्रश्नकाल में लगाए भाजपा विधायक रामलाल शर्मा के प्रश्न के जवाब में कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने यह बात स्वीकार की.
प्रश्नकाल में लगाए गए चौमू से विधायक रामलाल शर्मा के सवाल पर जवाब देते हुए मंत्री ने यह भी बताया कि प्रदेश के टोंक, सिरोही और बांसवाड़ा जिले के लिए प्रारंभ की गई इस योजना में किसानों को जागरूक करने के लिए और प्रशिक्षण देने के लिए कई कार्यशाला आयोजित की गई.
400 ग्राम पंचायत स्तरीय दो दिवसीय प्रशिक्षण में अब तक 141 वर्कशॉप आयोजित कर 7000 से अधिक किसानों को इसका लाभ दिया गया है. हालांकि, विधायक रामलाल ने पूछा कि बजट में जो प्रावधान किया गया था, उसमें से जो खर्च हुआ वह केवल कार्यशाला आयोजन और महोत्सव आयोजन करने में ही खर्च कर दिए गए, या फिर प्राकृतिक खाद तैयार कर उसका किट वितरण करने का काम भी किया गया.
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रामलाल ने यह भी कहा कि क्या आप इस योजना को 3 जिलों से आगे बढ़ा कर पूरे राज्य में करना चाहते हैं? क्या आने वाले दिनों में इसका बजट प्रावधान भी बढ़ाने की मंशा सरकार की है? जवाब में मंत्री लालचंद कटारिया ने कहा निश्चित तौर पर पिछले बजट में स्वीकृत की गई राशि को हम खर्च नहीं कर पाए. हम जैविक खाद या रसायन तैयार करने का काम भी नहीं कर पाए, क्योंकि किसानों को प्रशिक्षण काफी देर से दिया गया.
मंत्री ने यह विश्वास दिलाया कि इस बार साल 2020-21 इस योजना का बजट 5 करोड़ किया है, और भविष्य में इसके जिलों की संख्या में भी बढ़ोतरी की जाएगी.