जयपुर. दुनिया भर में इस बार 7 मई को विश्व एथलेटिक्स दिवस (World Athletics Day) मनाया जा रहा है. विश्व एथलेटिक्स दिवस की तारीख हर साल बदलती है जिसे IAAF की ओर से निर्धारित किया जाता है. हालांकि इसे अधिकांश मई महीने में ही मनाया जाता है. पहला विश्व एथलेटिक्स दिवस 1996 में मनाया गया था. विश्व एथलेटिक्स दिवस का मूल उद्देश्य एथलेटिक्स में युवाओं को भागीदारी करने के लिए प्रोत्साहित करना है. इस मौके पर ईटीवी भारत ने राजस्थान के मुख्य खेल अधिकारी और द्रोणाचार्य अवार्ड विजेता वीरेंद्र पूनिया (Dronacharya Award winner Virendra Poonia shared experience) से खास बातचीत की. उनसे जाना कि पद्मश्री और डिस्क थ्रो खिलाड़ी कृष्णा पूनिया को गोल्ड मेडलिस्ट बनाने के लिए किस तरह उन्होंने पति के साथ ही एक गुरु की भी जिम्मेदारी निभाई. ये सफर कितना चुनौतीपूर्ण रहा इस बारे में भी उन्होंने बात की.
क्या है विश्व एथलेटिक्स दिवस का उद्देश्य?
- विश्व एथलेटिक्स दिवस का उद्देश्य लोगों में खेलों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और युवाओं को खेलों के महत्व के बारे में शिक्षित करना है.
- स्कूलों और संस्थानों में प्राथमिक खेल के रूप में एथलेटिक्स को बढ़ावा देना.
- युवाओं के बीच खेल को लोकप्रिय बनाने और युवाओं, खेल और पर्यावरण संरक्षण के बीच एक कड़ी स्थापित करना.
- समूचे विश्व के स्कूलों में एथलेटिक्स को नंबर खेल के रूप में स्थापित करना.
कृष्णा पूनिया ने शादी के बाद बनाया करियर
वीरेंद्र पूनिया का राजस्थान की खेल जगत में नाम नया नहीं है. ओलंपिक खिलाड़ी और वर्तमान में सादुलपुर से कांग्रेस विधायक कृष्णा पूनिया के पति वीरेंद्र पूनिया फिलहाल राजस्थान के चीफ स्पोर्ट्स ऑफिसर हैं. वे खुद एक एथलीट हैं और द्रोणाचार्य अवार्ड से नवाजे भी जा चुके हैं. वर्ल्ड एथलीट डे के मौके पर जब ईटीवी भारत ने उनसे बातचीत की तो उनके पहले टास्क को समझने की भी कोशिश की. कैसे कृष्णा पूनिया ने दुनिया में ख्याति अर्जित करने में कामयाबी हासिल की.
इस बारे में वीरेंद्र पूनिया ने बताया कि शादी के बाद जब उनके गांव में घूंघट प्रथा जोरों पर थी उस दौर में उनके पिता ने कृष्णा पूनिया को आगे बढ़ने की सीख दी थी. यही वजह रही कि 19 साल की कृष्णा पूनिया ने डिस्क थ्रो को अपने खेल के रूप में चुना और तैयारी शुरू की. वक्त के साथ कामयाबी उन्हें मिलती रही और कॉमनवेल्थ में मिल्खा सिंह के बाद गोल्ड मेडल हासिल करने वाले एथलीट के रूप में कृष्णा पूनिया का नाम इतिहास में दर्ज हो गया. ओलंपिक में भी उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और डिस्क थ्रो में पांचवा मुकाम हासिल किया.
पहली ट्रेनिंग अमेरिका में चुनौतीपूर्ण रही
अपनी पहली विदेशी ट्रेनिंग की चुनौती का भी जिक्र इस दौरान किया और बताया कि कैसे वह तमाम बाधाओं को पार करते हुए पहली बार विदेशी जमीन पर ट्रेनिंग करने के लिए पहुंचे थे. इस दौरान वहां पड़ रही कड़ाके की ठंड उनके लिए चुनौती बन गई थी. एक दौर ऐसा भी आया कि वीरेंद्र पूनिया ने हार मान ली, लेकिन उन्हें कृष्णा पूनिया के हौसले को देखते हुए अमेरिका में रुकना पड़ा और ट्रेनिंग के सेशन को पूरा किया. नतीजा यह रहा कि हम ट्रेनिंग के साथ लौटते ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाने में कामयाब रहे.
राजस्थान के खेलों में भी किए नवाचार
खिलाड़ी ही खिलाड़ी के हक की बात को समझ सकता है. यह कहना है वीरेंद्र पूनिया का. स्पोर्ट्स ऑफिसर बनने के साथ ही उन्होंने राजस्थान में खेलों की दुर्दशा को भी गंभीर माना. उन्होंने इस बात को भी समझा कि किन हालात की वजह से राजस्थान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को नहीं दे पाता है. लिहाजा किन बातों की बुनियादी जरूरत है. इस दौरान उन्होंने वर्तमान सरकार के प्रयासों की भी सराहना की और बताया कि कैसे खेलों को प्रोत्साहन देने की दिशा में काम किया जा रहा है.