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World Animal Day 2022: बेजुबानों का सहारा बने डॉ. तपेश...पशुओं को कृत्रिम पैर लगाकर दे रहे नया जीवन

विश्व पशु दिवस हर साल 4 अक्टूबर को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य दुनिया भर में पशु कल्याण के लिए लोगों को जागरूक करना और बेजुबानों को ऐसा माहौल देना कि वह खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. इस साल 2022 में वर्ल्ड एनिमल डे A Shared Planet थीम के साथ मनाया जा रहा है. इस खास दिन पर आज हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं डॉ. तपेश माथुर से पशुओं के कृत्रिम पैर लगाकर उन्हें नया जीवन दे रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

World Animal Day 2022
World Animal Day 2022
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Published : Oct 4, 2022, 6:41 AM IST

Updated : Oct 4, 2022, 9:52 AM IST

जयपुर. हर साल पूरी दुनिया में 4 अक्टूबर को विश्व पशु दिवस (World Animal Day 2022) मनाया जाता है. विश्‍व पशु दिवस दरअसल पशु अधिकार के लिए एक वैश्विक पहल है जिसका उद्देश्‍य जानवरों के कल्‍याण के लिए बेहतर मानक तय करना है और पर्यावरण में उनके महत्‍व के प्रति लोगों को जागरुक करना है. इस दिन को एनिमल्‍स लवर्स डे के नाम से भी मनाया जाता है. यूं तो पशुओं की देखरेख के लिए तमाम संस्थाएं कार्य कर रही हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए ही चारा-पानी और खाने की व्यवस्था के लिए सहयोग करती हैं. लेकिन जयपुर के ऐसे डॉक्टर हैं जिन्होंने पशुओं के लिए मानो अपना जीवन ही समर्पित कर दिया है.

जी हां हम बात कर रहे हैं राजधानी के डॉक्टर तपेश माथुर की. डॉ. तपेश संभवतः देश के पहले ऐसे डॉक्टर हैं जो अपंग पशुओं में कृत्रिम पैर (Dr Tapesh Mathur putting artificial legs to animal) लगाते हैं. खास बात ये है कि माथुर पालतू पशुओं को अपने खर्चे पर कृत्रिम पैर लगाते हैं. डॉ. माथुर अब तक 200 से ज्यादा पशुओं को कृत्रिम पैर लगाकर न केवल उनकी जान बचाई बल्कि उन्हें चलने योग्य भी बनाया.

बेजुबानों का सहारा बने डॉ. तपेश

पढ़ें. World Animal Day 2022: विदेशों में भी है हरियाणा के 'काले सोने' की डिमांड, जानें क्या है इनकी खासियत

'कृष्णा लिंब' यानी आर्टिफीशियल पांव का नवाचार
अपंग पशुओं की लाचारी की बड़ी वजह है कि सड़क दुर्घटनाओं में घायल होने पर उन्हे इलाज नहीं मिल पाता है. राजस्थान के पशु चिकित्सक डॉ तपेश माथुर ने अपंग पशुओं के लिए 'कृष्णा लिम्ब' का नवाचार कर पशु अपंगता के मसले पर सबका ध्यान खींचा और आम धारणा भी बदली. इस मसले पर लोगों को जागरूक करने के लिए उन्होंने अपने स्तर पर 2014 में देशव्यापी मुहिम शुरू की. इस मुहिम के तहत उन्होंने अब तक 22 राज्यों में 218 से ज़्यादा पशुओं के कृत्रिम पैर लगाकर उन्हें सक्षम बनाने का प्रयास किया है जिनमें 90 फीसदी मामले गायों के हैं. घोड़ा, श्वान, भैंस, खरगोश और चिड़िया के भी पैर लगाकर उन्हें खड़ा करने और उनके जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की है.

World Animal Day 2022
बेजुबानों का सहारा बने डॉक्टर

अपनी इस मुहिम के तहत वे पशु क्रूरता से सम्बन्धित कानूनों के बारे में और आम नागरिक के तौर पर पशुओं के प्रति हमारे कर्त्तव्योें और जिम्मेदारियों के बारे में भी लोगों को जागरूक कर रहे हैं. डॉ तपेश का कहना है कि हमें इस बारे में भी सोचना होगा कि आखिर हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं, जहां काम में आने के बाद पशुपालक अपने पशुओं को बेसहारा छोड़ देते हैं. हाईवे और सड़कों पर घूमते पशुओं की वजह से जो हादसे होते हैं उससे इन्सान और पशु दोनों को नुकसान होता है.

अक्षम पशु की आस
डॉ. तपेश माथुर कहते हैं कि कृष्णा लिम्ब की प्रेरणा उन्हेें दो साल के कृष्णा नाम के बछड़े से मिली जिसने उन्हें ये सोच दी कि पशुओं के लिए आत्मनिर्भरता के क्या मायने हैं. शरीर पर बाहरी तौर पर लगाया जाने वाला कृष्णा लिंब लगभग 5-7 घंटे तक लगातार लगाया जा सकता है और इसके लिए सेवाभावी पशु मालिक या सेवक होना जरूरी शर्त है. कीमत के कारण कोई पशु कृष्णा लिम्ब से वंचित न रहे इसलिए इसे कम लागत में तैयार कर गरीब और जरूरतमन्द किसान, पशुपालकों की अच्छी देखरेख में पल रही गायों और अन्य पशुओं को पैन मीडिया फाउण्डेशन के माध्यम से मुफ्त उपलब्ध करवाया जाता है.

World Animal Day 2022
अक्षम पशु की आस

डॉ तपेश बताते हैं कि चलने फिरने में अक्षम होने पर पशु को सहारे की जरूरत होती है. ऐसे पशुओं की शारीरिक कार्य यानी फिजियोलॉजी और पौष्टिकता में लगातार गिरावट आती है और वे औसतन 6 माह या दो साल से ज्यादा जीवित नहीं रह पाते. इसके लिए सबसे बड़ी जागरूकता सड़क हादसों को रोकने और घायल पशुओं को वक्त पर चिकित्सा मुहैया करवाने की है . यही एक तरीका है जिससे पशुओं को स्थायी तौर पर अपंग होने से रोका जा सकता है.

बेसहारा पशु और हादसे
माथुर बताते है कि राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार देश में होने वाले कुल सड़क हादसों में से 18 फीसदी हादसे पशुओं के टकराने की वजह से होते हैं, लेकिन राज्यों में दुर्घटना में घायल होने वाले पशुओं को कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं होने से इस मसले की गंभीरता का अन्दाज नहीं लग पाता. इसका समाधान सही देखभाल, चिकित्सा और जहां कहीं संभव हो वहां पशुओं को कृत्रिम पैर देकर निकाला जा सकता है. डॉ तपेश ने जब इस मामले के मानवीय पक्ष को समझा तो उन्होंने खाने पीने के लिए मोहताज पशुओं के लिए बने कृष्णा लिम्ब के निशुल्क वितरण का बीड़ा उठाया. खुद के स्तर पर ही शुरू इस मुहिम का अब लोगों को समर्थन और सहयोग दोनों मिलने लगा है. डॉ तपेश कहते हैं कि समाज और पशु चिकित्सा जगत में घायल पशुओं की शल्य चिकित्सा को लेकर जागरूकता फैलाने की जरूरत है ताकि लाखों पशु अपंगता के अभिशाप से मुक्त रह सकें.

World Animal Day 2022
कृत्रिम पैर लगाकर दे रहे नया जीवन

पहचान और सम्मान
’कृष्णा लिम्ब’ के नवाचार और इसे देश भर में उपलब्ध करवाने के उनके प्रयासों को कई राष्ट्रीय अर्न्तराष्ट्रीय मंचों पर सराहा गया है. पशु शल्य चिकित्सा की शीर्षस्थ संस्थान इंडियन सोसायटी फॉर वेटेरिनरी सर्जरी की ओर से इस नवाचार को प्रमाणित करते हुए उन्हें 2014 और 2015 में राष्ट्रीय पुरस्कार और स्वर्ण पदक भी मिला है. साल 2019 में वर्ल्ड वेटेरिनरी एसोसिएशन की ओर से भी इस नवाचार के लिए उन्हें ब्रॉन्ज मेडल से सम्मानित किया गया. भारत के उपराष्ट्रपति की ओर से 2020 में लोकार्पित भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के संकलन अन्त्योदय बेस्ट प्रेक्टिसेस में इस नवाचार को शामिल किया गया है. केन्द्र सरकार के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से पशु क्रूरता को रोकने के लिए बनी केन्द्रीय समिति सीपीसीएसईए के सदस्य के तौर पर भी उन्हें नामित किया गया. हाल ही में साल 2022 में उन्हें नेशनल वेटेरिनरी फाउंडेशन की ओर से 'आउटस्टैंडिंग प्रोफेशनल एक्सीलेंस फ़ॉर इनोवेशन एंड फर्स्ट एनिमल प्रोस्टेसिस ऑफ इंडिया' का सम्मान दिया गया. टाइम्स नाओ ने अमेजिंग इन्डियन अवार्ड के लिए भी उनके इस काम को चुना है. सुप्रीम मास्टर शिंग हाई इंटरनेशनल असोसिएशन ने उन्हें 'शाइनिंग वर्ल्ड कंपेशन अवार्ड' से नवाज़ा है.

आगे की राह
माथुर कहते हैं कि इस मिशन को जारी रखने के लिए उन्होंने गरीब किसान-पशुपालक के अपंग हुए पशुधन को अपनी प्राथमिकता में रखा है, साथ ही पालतू और छोटे पशुओं के लिए वे एनिमल कार्ट भी बना रहे हैं. जागरूकता के लिहाज से वे बतातेे हैं पिछले छह सालों से जारी इस काम की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि लोगों का अपंग पशुओं के लिए नज़रिया बदला है और पशुपालक उन्हें बेसहारा या गोशालाओं में छोड़ने की बजाय घर पर ही रखने को प्रेरित हो रहे हैं.

World Animal Day 2022
पशुओं को लगाया कृत्रिम पैर

ऊंट के लगाया कृष्णा लिंब-
माथुर कहते हैं कि हाल ही जोधपुर के एक ऊंट के भी उन्होंने कृत्रिम पैर लगाए हैं. इसे खड़ा करने की कोशिश जारी है, अगर सफलता मिली तो ये दुनिया का पहला मामला होगा जब कोई ऊंट कृत्रिम पैर के सहारे चल सकेगा.

दिव्यांग होने के बाद मालिक छोड़ देते हैं -
डॉक्टर तपेश बताते हैं कि जानवरों के मामले में आमतौर पर इंसान बहुत ज्यादा लापरवाह होता है. कई बार कुछ जानवर जैसे श्वान या फिर गाय के मालिक समझदार होते भी हैं तो भी उन्हें कई चीजों की जानकारी नहीं होती. अक्सर वही पशु दिव्यांग हो जाते हैं जिन्हें पहले चोट लगी होती हैं. उनकी हड्डियां टूटती हैं लेकिन लंबे वक्त तक उसका इलाज नहीं हो पाता और वह दिव्यांग हो जाते हैं और अधिकतर मामलों में पशु मालिक पशुओं को यूं ही छोड़ देते हैं.

फोन करके मांगते हैं मदद
डॉक्टर तपेश कहते हैं कि कई लोगों को जब यह मालूम होता है कि हम इस तरह का काम पशुओं के लिए कर रहे हैं तो उनके फोन आते हैं. पशुओं को कृत्रिम पांव लगाना बहुत कठिन होता है. सबसे पहले किसी भी पशु को प्रोस्थेटिक लिंब्स लगाने के लिए यह जरूरी है कि वह खड़ा हो पाए, तभी हम उसके दूसरे पैर के हिसाब से दिव्यांग पैर की नाप ले पाएंगे. डॉक्टर तपेश एक सरकारी डॉक्टर भी हैं. 5 दिन वह अपनी ड्यूटी करते हैं और फिर अपनी छुट्टी के 2 दिन वह इन बेजुबानों की सेवा करते हैं. डॉक्टर तपेश की पत्नी शिप्रा भी इस काम में उनका पूरा सहयोग करती हैं.

जयपुर. हर साल पूरी दुनिया में 4 अक्टूबर को विश्व पशु दिवस (World Animal Day 2022) मनाया जाता है. विश्‍व पशु दिवस दरअसल पशु अधिकार के लिए एक वैश्विक पहल है जिसका उद्देश्‍य जानवरों के कल्‍याण के लिए बेहतर मानक तय करना है और पर्यावरण में उनके महत्‍व के प्रति लोगों को जागरुक करना है. इस दिन को एनिमल्‍स लवर्स डे के नाम से भी मनाया जाता है. यूं तो पशुओं की देखरेख के लिए तमाम संस्थाएं कार्य कर रही हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए ही चारा-पानी और खाने की व्यवस्था के लिए सहयोग करती हैं. लेकिन जयपुर के ऐसे डॉक्टर हैं जिन्होंने पशुओं के लिए मानो अपना जीवन ही समर्पित कर दिया है.

जी हां हम बात कर रहे हैं राजधानी के डॉक्टर तपेश माथुर की. डॉ. तपेश संभवतः देश के पहले ऐसे डॉक्टर हैं जो अपंग पशुओं में कृत्रिम पैर (Dr Tapesh Mathur putting artificial legs to animal) लगाते हैं. खास बात ये है कि माथुर पालतू पशुओं को अपने खर्चे पर कृत्रिम पैर लगाते हैं. डॉ. माथुर अब तक 200 से ज्यादा पशुओं को कृत्रिम पैर लगाकर न केवल उनकी जान बचाई बल्कि उन्हें चलने योग्य भी बनाया.

बेजुबानों का सहारा बने डॉ. तपेश

पढ़ें. World Animal Day 2022: विदेशों में भी है हरियाणा के 'काले सोने' की डिमांड, जानें क्या है इनकी खासियत

'कृष्णा लिंब' यानी आर्टिफीशियल पांव का नवाचार
अपंग पशुओं की लाचारी की बड़ी वजह है कि सड़क दुर्घटनाओं में घायल होने पर उन्हे इलाज नहीं मिल पाता है. राजस्थान के पशु चिकित्सक डॉ तपेश माथुर ने अपंग पशुओं के लिए 'कृष्णा लिम्ब' का नवाचार कर पशु अपंगता के मसले पर सबका ध्यान खींचा और आम धारणा भी बदली. इस मसले पर लोगों को जागरूक करने के लिए उन्होंने अपने स्तर पर 2014 में देशव्यापी मुहिम शुरू की. इस मुहिम के तहत उन्होंने अब तक 22 राज्यों में 218 से ज़्यादा पशुओं के कृत्रिम पैर लगाकर उन्हें सक्षम बनाने का प्रयास किया है जिनमें 90 फीसदी मामले गायों के हैं. घोड़ा, श्वान, भैंस, खरगोश और चिड़िया के भी पैर लगाकर उन्हें खड़ा करने और उनके जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की है.

World Animal Day 2022
बेजुबानों का सहारा बने डॉक्टर

अपनी इस मुहिम के तहत वे पशु क्रूरता से सम्बन्धित कानूनों के बारे में और आम नागरिक के तौर पर पशुओं के प्रति हमारे कर्त्तव्योें और जिम्मेदारियों के बारे में भी लोगों को जागरूक कर रहे हैं. डॉ तपेश का कहना है कि हमें इस बारे में भी सोचना होगा कि आखिर हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं, जहां काम में आने के बाद पशुपालक अपने पशुओं को बेसहारा छोड़ देते हैं. हाईवे और सड़कों पर घूमते पशुओं की वजह से जो हादसे होते हैं उससे इन्सान और पशु दोनों को नुकसान होता है.

अक्षम पशु की आस
डॉ. तपेश माथुर कहते हैं कि कृष्णा लिम्ब की प्रेरणा उन्हेें दो साल के कृष्णा नाम के बछड़े से मिली जिसने उन्हें ये सोच दी कि पशुओं के लिए आत्मनिर्भरता के क्या मायने हैं. शरीर पर बाहरी तौर पर लगाया जाने वाला कृष्णा लिंब लगभग 5-7 घंटे तक लगातार लगाया जा सकता है और इसके लिए सेवाभावी पशु मालिक या सेवक होना जरूरी शर्त है. कीमत के कारण कोई पशु कृष्णा लिम्ब से वंचित न रहे इसलिए इसे कम लागत में तैयार कर गरीब और जरूरतमन्द किसान, पशुपालकों की अच्छी देखरेख में पल रही गायों और अन्य पशुओं को पैन मीडिया फाउण्डेशन के माध्यम से मुफ्त उपलब्ध करवाया जाता है.

World Animal Day 2022
अक्षम पशु की आस

डॉ तपेश बताते हैं कि चलने फिरने में अक्षम होने पर पशु को सहारे की जरूरत होती है. ऐसे पशुओं की शारीरिक कार्य यानी फिजियोलॉजी और पौष्टिकता में लगातार गिरावट आती है और वे औसतन 6 माह या दो साल से ज्यादा जीवित नहीं रह पाते. इसके लिए सबसे बड़ी जागरूकता सड़क हादसों को रोकने और घायल पशुओं को वक्त पर चिकित्सा मुहैया करवाने की है . यही एक तरीका है जिससे पशुओं को स्थायी तौर पर अपंग होने से रोका जा सकता है.

बेसहारा पशु और हादसे
माथुर बताते है कि राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार देश में होने वाले कुल सड़क हादसों में से 18 फीसदी हादसे पशुओं के टकराने की वजह से होते हैं, लेकिन राज्यों में दुर्घटना में घायल होने वाले पशुओं को कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं होने से इस मसले की गंभीरता का अन्दाज नहीं लग पाता. इसका समाधान सही देखभाल, चिकित्सा और जहां कहीं संभव हो वहां पशुओं को कृत्रिम पैर देकर निकाला जा सकता है. डॉ तपेश ने जब इस मामले के मानवीय पक्ष को समझा तो उन्होंने खाने पीने के लिए मोहताज पशुओं के लिए बने कृष्णा लिम्ब के निशुल्क वितरण का बीड़ा उठाया. खुद के स्तर पर ही शुरू इस मुहिम का अब लोगों को समर्थन और सहयोग दोनों मिलने लगा है. डॉ तपेश कहते हैं कि समाज और पशु चिकित्सा जगत में घायल पशुओं की शल्य चिकित्सा को लेकर जागरूकता फैलाने की जरूरत है ताकि लाखों पशु अपंगता के अभिशाप से मुक्त रह सकें.

World Animal Day 2022
कृत्रिम पैर लगाकर दे रहे नया जीवन

पहचान और सम्मान
’कृष्णा लिम्ब’ के नवाचार और इसे देश भर में उपलब्ध करवाने के उनके प्रयासों को कई राष्ट्रीय अर्न्तराष्ट्रीय मंचों पर सराहा गया है. पशु शल्य चिकित्सा की शीर्षस्थ संस्थान इंडियन सोसायटी फॉर वेटेरिनरी सर्जरी की ओर से इस नवाचार को प्रमाणित करते हुए उन्हें 2014 और 2015 में राष्ट्रीय पुरस्कार और स्वर्ण पदक भी मिला है. साल 2019 में वर्ल्ड वेटेरिनरी एसोसिएशन की ओर से भी इस नवाचार के लिए उन्हें ब्रॉन्ज मेडल से सम्मानित किया गया. भारत के उपराष्ट्रपति की ओर से 2020 में लोकार्पित भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के संकलन अन्त्योदय बेस्ट प्रेक्टिसेस में इस नवाचार को शामिल किया गया है. केन्द्र सरकार के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से पशु क्रूरता को रोकने के लिए बनी केन्द्रीय समिति सीपीसीएसईए के सदस्य के तौर पर भी उन्हें नामित किया गया. हाल ही में साल 2022 में उन्हें नेशनल वेटेरिनरी फाउंडेशन की ओर से 'आउटस्टैंडिंग प्रोफेशनल एक्सीलेंस फ़ॉर इनोवेशन एंड फर्स्ट एनिमल प्रोस्टेसिस ऑफ इंडिया' का सम्मान दिया गया. टाइम्स नाओ ने अमेजिंग इन्डियन अवार्ड के लिए भी उनके इस काम को चुना है. सुप्रीम मास्टर शिंग हाई इंटरनेशनल असोसिएशन ने उन्हें 'शाइनिंग वर्ल्ड कंपेशन अवार्ड' से नवाज़ा है.

आगे की राह
माथुर कहते हैं कि इस मिशन को जारी रखने के लिए उन्होंने गरीब किसान-पशुपालक के अपंग हुए पशुधन को अपनी प्राथमिकता में रखा है, साथ ही पालतू और छोटे पशुओं के लिए वे एनिमल कार्ट भी बना रहे हैं. जागरूकता के लिहाज से वे बतातेे हैं पिछले छह सालों से जारी इस काम की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि लोगों का अपंग पशुओं के लिए नज़रिया बदला है और पशुपालक उन्हें बेसहारा या गोशालाओं में छोड़ने की बजाय घर पर ही रखने को प्रेरित हो रहे हैं.

World Animal Day 2022
पशुओं को लगाया कृत्रिम पैर

ऊंट के लगाया कृष्णा लिंब-
माथुर कहते हैं कि हाल ही जोधपुर के एक ऊंट के भी उन्होंने कृत्रिम पैर लगाए हैं. इसे खड़ा करने की कोशिश जारी है, अगर सफलता मिली तो ये दुनिया का पहला मामला होगा जब कोई ऊंट कृत्रिम पैर के सहारे चल सकेगा.

दिव्यांग होने के बाद मालिक छोड़ देते हैं -
डॉक्टर तपेश बताते हैं कि जानवरों के मामले में आमतौर पर इंसान बहुत ज्यादा लापरवाह होता है. कई बार कुछ जानवर जैसे श्वान या फिर गाय के मालिक समझदार होते भी हैं तो भी उन्हें कई चीजों की जानकारी नहीं होती. अक्सर वही पशु दिव्यांग हो जाते हैं जिन्हें पहले चोट लगी होती हैं. उनकी हड्डियां टूटती हैं लेकिन लंबे वक्त तक उसका इलाज नहीं हो पाता और वह दिव्यांग हो जाते हैं और अधिकतर मामलों में पशु मालिक पशुओं को यूं ही छोड़ देते हैं.

फोन करके मांगते हैं मदद
डॉक्टर तपेश कहते हैं कि कई लोगों को जब यह मालूम होता है कि हम इस तरह का काम पशुओं के लिए कर रहे हैं तो उनके फोन आते हैं. पशुओं को कृत्रिम पांव लगाना बहुत कठिन होता है. सबसे पहले किसी भी पशु को प्रोस्थेटिक लिंब्स लगाने के लिए यह जरूरी है कि वह खड़ा हो पाए, तभी हम उसके दूसरे पैर के हिसाब से दिव्यांग पैर की नाप ले पाएंगे. डॉक्टर तपेश एक सरकारी डॉक्टर भी हैं. 5 दिन वह अपनी ड्यूटी करते हैं और फिर अपनी छुट्टी के 2 दिन वह इन बेजुबानों की सेवा करते हैं. डॉक्टर तपेश की पत्नी शिप्रा भी इस काम में उनका पूरा सहयोग करती हैं.

Last Updated : Oct 4, 2022, 9:52 AM IST
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