जयपुर. सड़कों पर भीख मांग रहे लोगों को तो आप रोजाना ही देखते होंगे लेकिन कभी सोचा है कि ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं. दूसरों के सामने हाथ फैलाए इन लोगों के चेहरों पर मजबूरी और मायूसी साफ दिखाई देती है. इनमें तमाम ऐसे लोग भी हैं जो काम की तलाश में भटकते हैं और कोई रास्ता न मिलने पर भीख मांग कर किसी तरह पेट पालते हैं. राजस्थान में भिखारी उन्मूलन और पुनर्वास कानून को लेकर जयपुर पुलिस की ओर से करवाए गए सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं.
जयपुर की प्रसन्न बावरी के इरादे कभी आसमान छूने के थे. राजधानी के टॉप कॉलेज में शुमार कनोडिया कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद भी कोई रोजगार नहीं मिल पाने के कारण आज वह भीख मांग कर गुजारा करने के लिए मजबूर है. कोरोना काल में पति का भी काम-धंधा चौपट हो गया. बच्चों और परिवार को पेट पालने के लिए कभी फुटपाथ पर खिलौने बेचती है तो कभी छोटा-मोटा कोई काम कर लेती है और जब कुछ नहीं होता तो गुजारे के लिए सड़कों पर भीख भी मांग लेती है. कहती हैं कोई प्राइवेट नौकरी भी नहीं देता वरना किसी के आगे हाथ फैलाना अच्छा थोड़े लगता है.
दूसरा मामला भरत का है जो मूलतः मध्यप्रदेश का रहने वाला है. कई सालों से जयपुर में वह पेंटिंग का काम कर अपना और परिवार का पेट पालता है. लेकिन पिछले डेढ़ साल से कोरोना की मार ने उसका काम-धंधा छीन लिया है. ऐसे में कभी-कभी भीख मांग कर भी काम चलाना पड़ता है. भरत कहता है वह जनता है कि भीख मांगना सही नहीं है लेकिन मजबूरी के कारण लाचार है. काम मिले तो कौन भीख मांगना चाहेगा.
तीसरी कहानी सुनील शर्मा की है. सुनील ने NDA में सेलेक्शन के के बाद भी नौकरी जॉइन नहीं की. रेलवे में TC और बॉम्बे में मल्टीनेशनल कम्पनी की जॉब भी छोड़ी, एनसीसी कैडट रहते हुए राष्ट्रपति से सम्मानित हुए, लेकिन अब मांग कर खाने-पीने को मजबूर हैं. सुनील शर्मा कहते हैं कि वे भिखारी नहीं हैं. बताते हैं कि मां-बाप की मौत के बाद घर छोड़ दिया. कोई नौकरी नहीं मिली तो मजदूरी करने लग गए, लेकिन एक एक्सीडेंट के बाद पैर में गहरा जख्म हो गया जिस कारण फिलहाल मजदूरी भी नहीं कर पा रहे हैं. लोगों की मदद से इंदिरा रसोई से भोजन कर किसी तरह पेट पाल रहे हैं.
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करीब 30 हजार से ज्यादा लोग भिक्षावृत्ति से जुड़े
ये कोई किताबी कहानियां नहीं हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में करीब 30 हजार से ज्यादा लोग भिक्षावृत्ति से जुड़े हुए हैं. अकेले जयपुर में इनकी संख्या पांच हजार से ज्यादा है. गली के चौराहों, मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों के बाहर भीख मांगने वालों की कतार लग रही है. कभी सड़कों को बच्चों तो कभी युवाओं को गाड़ियों के शीशे साफ करते देखा जा सकता है. वहीं कभी दिव्यांगता के कारण सड़क किनारे लोग भीख मांगते देखे जा सकते हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि विकास के दावे करने वाली सरकार आखिर क्या कर रही है. ऐसा नहीं कि सरकार की तरफ से कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं लेकिन यह मजबूरों तक पहुंच नहीं पा रहे हैं. प्रदेश को भिक्षावृत्ति से मुक्त करने के लिए सर्वे भी किया जा रहा है. सर्वे में भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों को रोजगार से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं.
भिखारी उन्मूलन और पुनर्वास के लिए पुलिस कर रही सर्वे
राजस्थान में भिखारी उन्मूलन और पुनर्वास कानून को लेकर जयपुर पुलिस की ओर से सर्वे कर रहीं सीआई ममता शार्दुल बताती हैं कि शहर में भिक्षावृत्ति में लगे करीब एक हजार से ज्यादा लोगों का एक सर्वे किया जा चुका है. इसमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग पाए गए हैं जो कुछ काम करना चाहते हैं. ऐसे भिक्षुकों को 3 माह का प्रशिक्षण दिया जाएगा. साथ ही इन्हें उस प्रशिक्षण अवधि में प्रतिदिन 225 रुपये जीवन निर्वाह भत्ता भी मुहैया करवाया जा रहा है.
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योजनाओं का नहीं मिल पा रहा लाभ
प्रदेश में सामाजिक न्याय विभाग ने गरीबों, दिव्यांगों, वृद्धों, विधवाओं और अनाथ बच्चों के लिए तमाम योजनाएं चला रखी हैं लेकिन जानकारी के अभाव में वे इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं. इसके लिए काफी हद तक सरकार भी जिम्मेदार है. योजनाओं का ठीक ढंग से क्रियान्वयन न होना और सरकारी उदासीनता के कारण भी कई बार जरूरतमंदों को सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. ऐसे में सरकार को आगे बढ़कर इस दिशा में कार्य करने की जरूरत है ताकि प्रसन्न बावरी और भरत जैसे पढ़े-लिखे और कार्य में प्रशिक्षित लोग समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें.