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जयपुरः वन्यजीव विशेषज्ञों ने पैंथर को झुंझुनू के जंगलों में छोड़ने का फैसला बताया गलत

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Published : Dec 16, 2019, 11:29 PM IST

जयपुर के आबादी क्षेत्र से पैंथर को रेस्क्यू कर झुंझुनू में खेतड़ी इलाके के जंगल में छोड़ने के मामले को वन्यजीव विशेषज्ञों ने गलत बताया है. वन विभाग के इस फैसले से वन्यजीव प्रेमियों में भी नाराजगी देखने को मिल रही है.

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वन्यजीव विशेषज्ञों ने पैंथर को झुंझुनू के जंगलों में छोड़ने का फैसला गलत बताया

जयपुर. झालाना के जंगल से आए पैंथर को दूसरी जगह पर छोड़ने के फैसले से वन्यजीव विशेषज्ञ और वन्यजीव प्रेमी खुश नहीं है. इस मामले पर वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि पैंथर को आबादी क्षेत्र से पकड़कर उसी स्थान पर छोड़ा जाना चाहिए था. जहां से वह आया था. नई जगह पर छोड़ने से पैंथर उस जगह के माहौल में जल्दी से सेट नहीं हो पाता है.

वन्यजीव विशेषज्ञों ने पैंथर को झुंझुनू के जंगलों में छोड़ने का फैसला गलत बताया

बता दें कि पिछले गुरुवार को एक पैंथर झालाना के जंगलों से निकलकर जयपुर के आबादी क्षेत्र में घुस आया था. करीब 21 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद शुक्रवार को वन विभाग की टीम ने पैंथर को रेस्क्यू कर स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद खेतड़ी के जंगलों में छोड़ दिया था.

पढ़ेंः जयपुर में 9 से 16 दिसंबर तक मनाया गया ऊर्जा संरक्षण सप्ताह

वन्यजीव विशेषज्ञ हर्षवर्धन ने कहा की झालाना के जंगल में लेपर्ड्स की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. जंगल में प्राकृतिक भोजन की व्यवस्था नहीं होने की वजह से पैंथर जंगलों से बाहर निकलने को मजबूर हो जाते है. साथ ही बताया कि झालाना जंगल में चीतल की कमी है. जिसकी वजह से बंदर, मोर या चूहों को शिकार बनाना पड़ता है. वहीं कई बार भूख मिटाने के लिए पैंथर शहर की ओर रुख कर लेते है.

वन्यजीव विशेषज्ञ का कहना है कि शहरी क्षेत्रों में आकर पैंथर कुत्तों का शिकार करते हैं, हालांकि कुत्ते का शिकार भी आसान नहीं होता है. पैंथर को जंगलों में ही रोकने के लिए जंगल में ही भोजन के लिए पर्याप्त व्यवस्था करने की जरूरत है. साथ ही कहा कि जयपुर में लेपर्ड को केवल टूरिज्म की वजह से ही महत्वता दी गई है. लेपर्ड प्रोजेक्ट में भी कंजर्वेशन के तत्व ज्यादा शामिल नहीं थे. बल्कि टूरिज्म के ही तत्व ज्यादा रखे गए है.

यह बड़ा सवाल है कि लेपर्ड को कहा छोड़ा जाए-

हर्षवर्धन ने कहा कि विशेषज्ञों के अध्ययन के मुताबिक आबादी क्षेत्र से पकड़े गए लेपर्ड को उसी स्थान पर छोड़ा जाना चाहिए था जहां से वह आया था. लेकिन झालाना जंगल में यह संभव नहीं लगता. इससे पहले भी आबादी क्षेत्र में आने वाले दो लेपर्ड्स को पकड़कर झालाना में ही छोड़ा गया था. लेकिन अब की बार लेपर्ड को पकड़कर ऐसे स्थान पर छोड़ा है, जहां पर लेपर्ड तो रहते हैं लेकिन भोजन की व्यवस्था नहीं है.

पढ़ेंः इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर हाईकोर्ट ने मांगा केन्द्र सरकार और आरबीआई से जवाब

खेतड़ी में कहां से भोजन मिलेगा-

वन्यजीव विशेषज्ञ ले कहा कि जब झालाना में ही भोजन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है तो खेतड़ी में कहां से भोजन मिलेगा. इस तरह से लेपर्ड को पकड़कर किसी दूसरी जगह पर छोड़ना न्यायोचित नहीं है. लेपर्ड को दूसरी जगह तो छोड़ दिया गया लेकिन अब उसकी पहचान कैसे होगी. ट्रेप कैमरा, कॉलर पद्धति, रेडियो टेलिमेटरी या सेटेलाइट टेलिमेटरी से पता किया जा सकता है कि इस वक्त वह लेपर्ड कहां पर बैठा हुआ है. यह साइंस सबको पता है लेकिन इसका उपयोग क्यों नहीं कर रहे हैं.

झालाना जंगल में लेपर्ड सफारी करने वाले नन्हे वन्यजीव प्रेमी कार्तिक जिंदल ने बताया कि लेपर्ड अपने घर से आया था उसको दूसरे जंगल में छोड़ना गलत है. देश विदेश से आने वाले सैलानी झालाना लेपर्ड सफारी में विजिट करने के लिए पहुंचते हैं. वन्यजीव प्रेमियों में इस बात से काफी नाराजगी देखने को मिल रही है कि पैंथर को उसके घर परिवार से दूर करके खेतड़ी के जंगलों में छोड़ दिया गया है.

जयपुर. झालाना के जंगल से आए पैंथर को दूसरी जगह पर छोड़ने के फैसले से वन्यजीव विशेषज्ञ और वन्यजीव प्रेमी खुश नहीं है. इस मामले पर वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि पैंथर को आबादी क्षेत्र से पकड़कर उसी स्थान पर छोड़ा जाना चाहिए था. जहां से वह आया था. नई जगह पर छोड़ने से पैंथर उस जगह के माहौल में जल्दी से सेट नहीं हो पाता है.

वन्यजीव विशेषज्ञों ने पैंथर को झुंझुनू के जंगलों में छोड़ने का फैसला गलत बताया

बता दें कि पिछले गुरुवार को एक पैंथर झालाना के जंगलों से निकलकर जयपुर के आबादी क्षेत्र में घुस आया था. करीब 21 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद शुक्रवार को वन विभाग की टीम ने पैंथर को रेस्क्यू कर स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद खेतड़ी के जंगलों में छोड़ दिया था.

पढ़ेंः जयपुर में 9 से 16 दिसंबर तक मनाया गया ऊर्जा संरक्षण सप्ताह

वन्यजीव विशेषज्ञ हर्षवर्धन ने कहा की झालाना के जंगल में लेपर्ड्स की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. जंगल में प्राकृतिक भोजन की व्यवस्था नहीं होने की वजह से पैंथर जंगलों से बाहर निकलने को मजबूर हो जाते है. साथ ही बताया कि झालाना जंगल में चीतल की कमी है. जिसकी वजह से बंदर, मोर या चूहों को शिकार बनाना पड़ता है. वहीं कई बार भूख मिटाने के लिए पैंथर शहर की ओर रुख कर लेते है.

वन्यजीव विशेषज्ञ का कहना है कि शहरी क्षेत्रों में आकर पैंथर कुत्तों का शिकार करते हैं, हालांकि कुत्ते का शिकार भी आसान नहीं होता है. पैंथर को जंगलों में ही रोकने के लिए जंगल में ही भोजन के लिए पर्याप्त व्यवस्था करने की जरूरत है. साथ ही कहा कि जयपुर में लेपर्ड को केवल टूरिज्म की वजह से ही महत्वता दी गई है. लेपर्ड प्रोजेक्ट में भी कंजर्वेशन के तत्व ज्यादा शामिल नहीं थे. बल्कि टूरिज्म के ही तत्व ज्यादा रखे गए है.

यह बड़ा सवाल है कि लेपर्ड को कहा छोड़ा जाए-

हर्षवर्धन ने कहा कि विशेषज्ञों के अध्ययन के मुताबिक आबादी क्षेत्र से पकड़े गए लेपर्ड को उसी स्थान पर छोड़ा जाना चाहिए था जहां से वह आया था. लेकिन झालाना जंगल में यह संभव नहीं लगता. इससे पहले भी आबादी क्षेत्र में आने वाले दो लेपर्ड्स को पकड़कर झालाना में ही छोड़ा गया था. लेकिन अब की बार लेपर्ड को पकड़कर ऐसे स्थान पर छोड़ा है, जहां पर लेपर्ड तो रहते हैं लेकिन भोजन की व्यवस्था नहीं है.

पढ़ेंः इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर हाईकोर्ट ने मांगा केन्द्र सरकार और आरबीआई से जवाब

खेतड़ी में कहां से भोजन मिलेगा-

वन्यजीव विशेषज्ञ ले कहा कि जब झालाना में ही भोजन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है तो खेतड़ी में कहां से भोजन मिलेगा. इस तरह से लेपर्ड को पकड़कर किसी दूसरी जगह पर छोड़ना न्यायोचित नहीं है. लेपर्ड को दूसरी जगह तो छोड़ दिया गया लेकिन अब उसकी पहचान कैसे होगी. ट्रेप कैमरा, कॉलर पद्धति, रेडियो टेलिमेटरी या सेटेलाइट टेलिमेटरी से पता किया जा सकता है कि इस वक्त वह लेपर्ड कहां पर बैठा हुआ है. यह साइंस सबको पता है लेकिन इसका उपयोग क्यों नहीं कर रहे हैं.

झालाना जंगल में लेपर्ड सफारी करने वाले नन्हे वन्यजीव प्रेमी कार्तिक जिंदल ने बताया कि लेपर्ड अपने घर से आया था उसको दूसरे जंगल में छोड़ना गलत है. देश विदेश से आने वाले सैलानी झालाना लेपर्ड सफारी में विजिट करने के लिए पहुंचते हैं. वन्यजीव प्रेमियों में इस बात से काफी नाराजगी देखने को मिल रही है कि पैंथर को उसके घर परिवार से दूर करके खेतड़ी के जंगलों में छोड़ दिया गया है.

Intro:जयपुर
एंकर- राजधानी जयपुर के आबादी क्षेत्र से पैंथर को रेस्क्यू कर झुंझुनू में खेतड़ी इलाके के जंगल में छोड़ने के मामले को वन्यजीव प्रेमियों और वन्यजीव विशेषज्ञों ने गलत बताया है। वन विभाग के इस फैसले से वन्यजीव प्रेमियों में भी नाराजगी देखने को मिल रही है।


Body:झालाना के जंगल में रहने वाले पैंथर को दूसरी जगह पर छोड़ने की जानकारी वन मंत्री को भी नहीं थी। इस मामले पर वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि पैंथर को आबादी क्षेत्र से पकड़कर उसी स्थान पर छोड़ा जाना चाहिए था जहां से वह आया था। नई जगह पर छोड़ने से पैंथर उस जगह के माहौल में जल्दी से सेट नहीं पाता है। वन्यजीव विशेषज्ञ हर्षवर्धन ने कहा की झालाना के जंगल में लेपर्ड्स की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। जंगल में प्राकृतिक भोजन की व्यवस्था नहीं होने की वजह से जंगलों से बाहर निकलने को मजबूर हो जाते हैं। झालाना जंगल में चीतल की कमी है। जिसकी वजह से बंदर, मोर या चूहों को शिकार बनाना पड़ता है। कई बार भूख मिटाने के लिए शहर की ओर रुख कर लेते हैं। शहरी क्षेत्रों में आकर पैंथर कुत्तों का शिकार करते हैं। हालांकि कुत्ते का शिकार भी आसान नहीं होता है। पैंथर को जंगलो में ही रोकने के लिए जंगल में ही भोजन के लिए पर्याप्त व्यवस्था करने की जरूरत है।
वन्यजीव विशेषज्ञ हर्षवर्धन ने बताया कि भारत के वन्यजीव इतिहास में यह बहुत ही सोचनीय विषय है जयपुर में लेपर्ड को केवल टूरिज्म की वजह से ही महत्वता दी गई है। लेपर्ड प्रोजेक्ट में भी कंजर्वेशन के तत्व ज्यादा शामिल नहीं थे। बल्कि टूरिज्म के ही तत्व ज्यादा रखे गए।
उन्होंने कहा कि जो लेपर्ड आबादी क्षेत्र में घुस गया हो उसको कहां पर छोड़ा जाए यह बड़ा सवाल है। विशेषज्ञों के अध्ययन के मुताबिक आबादी क्षेत्र से पकड़े गए लेपर्ड को उसी स्थान पर छोड़ा जाना चाहिए था जहां से वह आया था। लेकिन झालाना जंगल में यह संभव नहीं लगता इससे पहले भी आबादी क्षेत्र में आने वाले दो लेपर्ड्स को पकड़कर झालाना में ही छोड़ा गया था। लेकिन अब की बार लेपर्ड को पकड़कर ऐसे स्थान पर छोड़ा है जहां पर लेपर्ड तो रहते हैं लेकिन भोजन की व्यवस्था नहीं है। जब झालाना में ही भोजन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है तो खेतड़ी में कहां से भोजन मिलेगा। इस तरह से लेपर्ड को पकड़कर किसी दूसरी जगह पर छोड़ना न्यायोचित नहीं है। लेपर्ड को दूसरी जगह तो छोड़ दिया गया लेकिन अब उसकी पहचान कैसे होगी। ट्रेप कैमरा, कॉलर पद्धति, रेडियो टेलिमेटरी या सेटेलाइट टेलिमेटरी से पता किया जा सकता है कि इस वक्त वह लेपर्ड कहां पर बैठा हुआ है। यह साइंस सबको पता है लेकिन इसका उपयोग क्यों नहीं कर रहे हैं।

झालाना जंगल में लेपर्ड सफारी करने वाले नन्हे वन्यजीव प्रेमी कार्तिक जिंदल ने बताया कि लेपर्ड अपने घर से आया था उसको दूसरे जंगल में छोड़ना गलत है। लेपर्ड को अपने परिवार से दूर करके दूसरी जगह छोड़ दिया गया है। जब हमें अपने परिवार से अलग करके दूसरी जगह पर छोड़ दिया जाए तो हमे कैसा लगेगा। ऐसा ही लेपर्ड को फील हो रहा होगा।

देश विदेश से आने वाले सैलानी झालाना लेपर्ड सफारी में विजिट करने के लिए पहुंचते हैं। वन्यजीव प्रेमियों में इस बात से काफी नाराजगी देखने को मिल रही है। कि पैंथर को उसके घर परिवार से दूर करके खेतड़ी के जंगलों में छोड़ दिया गया।






Conclusion:बता दे कि पिछले गुरुवार को एक पैंथर झालाना के जंगलों से निकलकर जयपुर के आबादी क्षेत्र में घुस आया था। करीब 21 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद शुक्रवार को वन विभाग की टीम ने पैंथर को रेस्क्यू कर स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद खेतड़ी के जंगलों में छोड़ दिया था।

बाईट- हर्षवर्धन, वन्यजीव विशेषज्ञ
बाईट- कार्तिक जिंदल, वन्यजीव प्रेमी



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