जयपुर. झालाना के जंगल से आए पैंथर को दूसरी जगह पर छोड़ने के फैसले से वन्यजीव विशेषज्ञ और वन्यजीव प्रेमी खुश नहीं है. इस मामले पर वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि पैंथर को आबादी क्षेत्र से पकड़कर उसी स्थान पर छोड़ा जाना चाहिए था. जहां से वह आया था. नई जगह पर छोड़ने से पैंथर उस जगह के माहौल में जल्दी से सेट नहीं हो पाता है.
बता दें कि पिछले गुरुवार को एक पैंथर झालाना के जंगलों से निकलकर जयपुर के आबादी क्षेत्र में घुस आया था. करीब 21 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद शुक्रवार को वन विभाग की टीम ने पैंथर को रेस्क्यू कर स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद खेतड़ी के जंगलों में छोड़ दिया था.
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वन्यजीव विशेषज्ञ हर्षवर्धन ने कहा की झालाना के जंगल में लेपर्ड्स की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. जंगल में प्राकृतिक भोजन की व्यवस्था नहीं होने की वजह से पैंथर जंगलों से बाहर निकलने को मजबूर हो जाते है. साथ ही बताया कि झालाना जंगल में चीतल की कमी है. जिसकी वजह से बंदर, मोर या चूहों को शिकार बनाना पड़ता है. वहीं कई बार भूख मिटाने के लिए पैंथर शहर की ओर रुख कर लेते है.
वन्यजीव विशेषज्ञ का कहना है कि शहरी क्षेत्रों में आकर पैंथर कुत्तों का शिकार करते हैं, हालांकि कुत्ते का शिकार भी आसान नहीं होता है. पैंथर को जंगलों में ही रोकने के लिए जंगल में ही भोजन के लिए पर्याप्त व्यवस्था करने की जरूरत है. साथ ही कहा कि जयपुर में लेपर्ड को केवल टूरिज्म की वजह से ही महत्वता दी गई है. लेपर्ड प्रोजेक्ट में भी कंजर्वेशन के तत्व ज्यादा शामिल नहीं थे. बल्कि टूरिज्म के ही तत्व ज्यादा रखे गए है.