जयपुर. 2 साल पहले राजधानी के परकोटे को विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया था लेकिन प्रशासन की ओर से यूनेस्को से मिले तमगे और परकोटे को बचाने के लिए जमीनी स्तर पर कार्य नहीं किया जा रहा. हेरिटेज के बाजारों (Heritage markets) के बरामदों को लेकर भले ही स्मार्ट सिटी लिमिटेड करोड़ों रुपए खर्च कर रही है लेकिन बारिश के दिनों में ये बरामदे व्यापारियों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं. आलम ये है कि राजधानी को स्मार्ट बनाने की कवायद के बीच हालात पहले से भी बदतर हो गए हैं.
अगले साल 2022 में चारदीवारी के संरक्षण का प्लान यूनेस्को में पेश करना है. जिसमें बताना होगा कि 300 साल पुराने शहर को संभालने के लिए क्या काम किए गए और आगे इसे कैसे बचाकर रखा जाएगा. इसका जवाब प्रशासन से देते बनेगा, लगता नहीं है. बारिश के दौर में राजधानी के प्रमुख हेरिटेज बाजारों के बरामदों का प्लास्टर उखड़ रहा है.
वहीं स्मार्ट सिटी ने चूने की परत बिछाकर जीर्णोद्धार किया, वहां भी पानी का रिसाव हो रहा है. यही नहीं जिस चांदपोल बाजार को करोड़ों रुपए खर्च करके स्मार्ट बनाया गया. वहां जरा सी बारिश में सड़कें लबालब हो जाती हैं और पानी दुकानों में जा पहुंचता है.
हेरिटेज बाजारों में मौजूद सालों पुराने पेड़ भी शहरीकरण की भेंट चढ़ रहे हैं. जिनकी समय पर सुध नहीं ली गई तो बापू बाजार जैसे हादसे की पुनरावृत्ति होने की भी आशंका है. आलम ये है कि राजधानी को स्मार्ट बनाने की कवायद के बीच हालात पहले से भी बदतर हो गए हैं.
यह भी पढ़ें. Ground Report :विरासत पर बट्टा लगा रहीं गंदी गलियां, परकोटा क्षेत्र में सफाई व्यवस्था बेपटरी...BVG ने भी खींचे हाथ
कई जगह बरामदों की छत गायब
ईटीवी भारत शहर के प्रमुख हेरिटेज बाजार त्रिपोलिया में पहुंचा. जहां त्रिपोलिया गेट के ठीक सामने बने दुकानों के बरामदे अपनी अनदेखी की कहानी खुद बयां कर रहे थे. तीज और गणगौर की सवारी के दौरान इन्हीं बरामदों की छत पर बैठकर देशी-विदेशी पावणे यहां की संस्कृति का लुत्फ उठाते हैं लेकिन आज के हालात ये हैं कि उन बरामदों की छत ही गायब हो चुकी है. जिन दुकानों पर छत है, वहां जीर्णोद्धार का काम होने के बावजूद भी पानी का इस कदर रिसाव हो रहा है कि व्यापारियों को दुकानों में सामान बचाने के लिए तिरपाल और टब का सहारा लेना पड़ रहा है.
राहगीरों की जान जोखिम में
स्थानीय व्यापारियों की माने तो यहां स्मार्ट सिटी के काम के दौरान पुराना प्लास्टर हटाने के लिए हैमर मशीन का इस्तेमाल किया गया. जिससे बरामदों पर डली हुई पट्टियों का जोड़ खुल गया. जब इस पर चूने का नया दड़ डाला गया तो बारिश का पानी उसमें ऑब्जर्व होने लगा और रिसाव शुरू हो गया. इन बरामदों में राहगीर भी जान जोखिम में लेकर गुजरने को मजबूर हैं.
यह भी पढ़ें. Ground Report : घरों और नालों का गंदा पानी रोके बिना कैसे साफ हो पाएगा तालकटोरा ?
यही नहीं बीती शाम जिस तरह बापू बाजार में 200 साल पुराना बरगद का पेड़ प्रशासन की लापरवाही की वजह से धराशाई हो गया, उसी तरह के कई पेड़ त्रिपोलिया बाजार में भी मौजूद है. जो शहरीकरण की भेंट चढ़ते दिख रहे हैं. यदि इन्हें सही समय पर यहां से शिफ्ट नहीं किया गया तो ये दुर्घटनाओं को सबब बन सकते हैं.
उधर स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने चांदपोल बाजार में स्मार्ट रोड का काम तो किया. लेकिन यहां ड्रेनेज सिस्टम की उपयुक्त व्यवस्था नहीं होने से आज भी घुटनों तक पानी भरने की समस्या बनी रहती है. आलम ये है कि स्थानीय व्यापारियों ने दुकान के आगे एक से डेढ़ फुट ऊंची दीवार भी चुनवा रखी है लेकिन पानी उसे भी क्रॉस करके दुकानों में घुस जाता है. हाल ही में हुई तेज बारिश में ये नजारा कई दुकानों में देखने को भी मिला.
व्यापारी परेशान
स्थानीय व्यापारियों ने बताया कि स्मार्ट रोड से पहले सामान्य रोड में भी ये स्थिति नहीं बनती थी. अब तो आलम ये है कि पहले यहां पानी भर जाता है और उसके बाद कीचड़ जमा हो जाती है. जिससे ग्राहकों को भी आने में समस्या होती है. यहां भी बरामदे लगातार रिसाव कर रहे हैं. जिससे दुकानों का सामान भी खराब हो रहा है.
बहरहाल बारिश के दौर में शहर के बरामदों की गिरती साख ये सोचने पर मजबूर कर रही है कि आखिर यूनेस्को से मिले तमगे को हम कैसे सुरक्षित रख पाएंगे. इस सवाल के बीच हेरिटेज बाजारों का व्यापारी और आम शहरवासी इंतजार कर रहा है कि आखिर प्रशासन की आंखों पर पड़ी लापरवाही की पट्टी कब हटेगी.