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Vishwa sanskrit Diwas आज, 53 साल पुराना है इतिहास...सरकारी अनदेखी से चमक फीकी

राजस्थान संस्कृत शिक्षा की प्रोन्नति के लिए सर्वाधिक उर्वरा भूमि के रूप में विख्यात है (Sanskrit education In Rajasthan). देश की स्वतंत्रता के बाद 1957 में संस्कृत शिक्षा निदेशालय स्थापित किया गया. ये मोहनलाल सुखाड़िया के मुख्यमंत्री काल की बात है, लेकिन आज स्थिति कुछ खास उत्साहजनक नहीं है.

Vishwa sanskrit Diwas
वेंटीलेटर पर संस्कृत विश्वविद्यालय
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Published : Aug 12, 2022, 9:35 AM IST

Updated : Aug 12, 2022, 5:55 PM IST

जयपुर. विश्व संस्कृत दिवस (Vishwa sanskrit Diwas ) हर साल सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है. विश्व संस्कृत दिवस को विश्वसंस्कृतदिनम के नाम से भी जाना जाता है. संस्कृत दिवस का इतिहास 53 वर्ष पुराना है.1968 में एक प्रस्ताव बना कि केंद्र और राज्य सरकारें हर साल ‘संस्कृत दिवस’ मनाएं. तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. वीकेआर वरदराज राव ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण काम किया (Vishwa sanskrit Diwas). इसका नतीजा 1969 में आया, जब संस्कृत दिवस मनाने का सरकारी परिपत्र जारी हुआ. डॉ. राव उच्च कोटि के शिक्षाविद और सांस्कृतिक परंपराओं के गहरे जानकार थे इसलिए उन्होंने संस्कृत दिवस के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन का दिन चुना.

संस्कृत दिवस के लिए रक्षाबंधन का दिन चुनने के पीछे जो रहस्य है, वो शाश्वत परंपरा से जुड़ा है. मनुस्मृति में ‘श्रावण्यां प्रौष्ठपद्यां वा उपाकृत्य यथाविधि’ यानी ये दिन सदियों से गुरुकुलों में वेदों की शाखाएं दोहराने का है. यही दिन पुरोहितों की ओर से तीर्थों में ‘उपाकर्म’ करने का है, जिसे ‘श्रावणी’ कहा जाता है. उपाकर्म यानी शास्त्र पढ़ने की शुरूआत का है. मान्यता है कि गुरुकुलों में श्रावणी पूर्णिमा से शैक्षणिक सत्र शुरू होता था. गुरुकुलों में ये दिन अध्ययन और अध्यापन के हिसाब से सबसे महत्त्व का रहा है. इसी दिन रक्षाबंधन का त्योहार भी मनाया जाता है. यही कारण था कि डॉ. राव ने इस दिन को ‘संस्कृत दिवस’ के रूप में चुना, जिससे इस दिन की पारंपरिक महत्ता जीवित रखी जा सके.

प्राचीन काल में गुरुकुल के आचार्यों और अंतेवासी (शिष्यों) ने आत्मकेंद्रित होकर भिक्षाटन से जीवन चलाकर विशाल साहित्य का लेखन और संरक्षण किया. आयुर्वेद, गणितीय प्रणाली, संगीत, शिल्प शास्त्र, वास्तु शास्त्र, कृषि शास्त्र, अर्थशास्त्र तथा खगोल विज्ञान को समृद्ध करने में अनुपम अनुसंधान किए. संस्कृत की खासियत है कि उसमें बहुरंगी विचारों का समावेश है. उसके दर्शन शास्त्र में आस्तिक और नास्तिक का मेल है. अहिंसा, सत्य, चोरी न करना और सामाजिक समानता जैसे आध्यात्मिक और नैतिक आदर्श स्थापित हैं.

पढ़ें-Sanskrit Day 2022 बनवारी लाल गौड़ होंगे संस्कृत साधना शिखर से सम्मानित...

ये भी पढ़ें-JRRSU Convocation: राज्यपाल बोले-संस्कृत के प्राचीन जीवनोपयोगी ग्रंथों का हिंदी और अन्य भाषाओं में हो अनुवाद

राजस्थान में संस्कृत: राजस्थान संस्कृत शिक्षा की प्रोन्नति के लिए सर्वाधिक उर्वरा भूमि के रूप में विख्यात है. राजस्थान में देश की स्वतंत्रता के बाद 1957 में संस्कृत शिक्षा निदेशालय स्थापित किया गया. ये मोहनलाल सुखाड़िया के मुख्यमंत्री काल की बात है. जगन्नाथ पहाड़िया ने 1980 में राजस्थान संस्कृत अकादमी बनाई. भैरोंसिंह शेखावत की सरकार ने 1998 में राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया. अशोक गहलोत सरकार ने 6 फरवरी 2001 को राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय शुरू किया. वसुंधरा राजे सरकार ने 2008 में राजस्थान मंत्र प्रतिष्ठान की शुरूआत की. आज प्रदेश में जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के साथ ही 33 राजकीय संस्कृत महाविद्यालयों में हजारों छात्र शास्त्रीय विषयों का अध्ययन और उन पर शोध कर रहे हैं.

ये भी अप्रिय सच है कि आज अधिकतर संस्कृत विश्वविद्यालय वेंटीलेटर पर हैं. इन्हें कहीं सरकारी अनदेखी बर्बाद कर रही है तो कहीं राजनैतिक उठापटक. शिक्षकों के आधे से ज्यादा पद रिक्त हैं. शोध और अनुसंधान रसातल में चला गया है. आज संस्कृत शिक्षा के बारे में एक धूमिल-सी धारणा है. इसकी शास्त्रीय परंपरा जो भी रही हो पर आम आदमी इसे पूजा-पाठ की भाषा से अधिक नहीं मानता. हालांकि 2007 में यूनेस्को की घोषणा के बाद ऋग्वेद मानव सभ्यता का सबसे पुराना दस्तावेज बैठता है. इससे संस्कृत वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक पुरातन भाषा सिद्ध होती है.

जयपुर. विश्व संस्कृत दिवस (Vishwa sanskrit Diwas ) हर साल सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है. विश्व संस्कृत दिवस को विश्वसंस्कृतदिनम के नाम से भी जाना जाता है. संस्कृत दिवस का इतिहास 53 वर्ष पुराना है.1968 में एक प्रस्ताव बना कि केंद्र और राज्य सरकारें हर साल ‘संस्कृत दिवस’ मनाएं. तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. वीकेआर वरदराज राव ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण काम किया (Vishwa sanskrit Diwas). इसका नतीजा 1969 में आया, जब संस्कृत दिवस मनाने का सरकारी परिपत्र जारी हुआ. डॉ. राव उच्च कोटि के शिक्षाविद और सांस्कृतिक परंपराओं के गहरे जानकार थे इसलिए उन्होंने संस्कृत दिवस के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन का दिन चुना.

संस्कृत दिवस के लिए रक्षाबंधन का दिन चुनने के पीछे जो रहस्य है, वो शाश्वत परंपरा से जुड़ा है. मनुस्मृति में ‘श्रावण्यां प्रौष्ठपद्यां वा उपाकृत्य यथाविधि’ यानी ये दिन सदियों से गुरुकुलों में वेदों की शाखाएं दोहराने का है. यही दिन पुरोहितों की ओर से तीर्थों में ‘उपाकर्म’ करने का है, जिसे ‘श्रावणी’ कहा जाता है. उपाकर्म यानी शास्त्र पढ़ने की शुरूआत का है. मान्यता है कि गुरुकुलों में श्रावणी पूर्णिमा से शैक्षणिक सत्र शुरू होता था. गुरुकुलों में ये दिन अध्ययन और अध्यापन के हिसाब से सबसे महत्त्व का रहा है. इसी दिन रक्षाबंधन का त्योहार भी मनाया जाता है. यही कारण था कि डॉ. राव ने इस दिन को ‘संस्कृत दिवस’ के रूप में चुना, जिससे इस दिन की पारंपरिक महत्ता जीवित रखी जा सके.

प्राचीन काल में गुरुकुल के आचार्यों और अंतेवासी (शिष्यों) ने आत्मकेंद्रित होकर भिक्षाटन से जीवन चलाकर विशाल साहित्य का लेखन और संरक्षण किया. आयुर्वेद, गणितीय प्रणाली, संगीत, शिल्प शास्त्र, वास्तु शास्त्र, कृषि शास्त्र, अर्थशास्त्र तथा खगोल विज्ञान को समृद्ध करने में अनुपम अनुसंधान किए. संस्कृत की खासियत है कि उसमें बहुरंगी विचारों का समावेश है. उसके दर्शन शास्त्र में आस्तिक और नास्तिक का मेल है. अहिंसा, सत्य, चोरी न करना और सामाजिक समानता जैसे आध्यात्मिक और नैतिक आदर्श स्थापित हैं.

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राजस्थान में संस्कृत: राजस्थान संस्कृत शिक्षा की प्रोन्नति के लिए सर्वाधिक उर्वरा भूमि के रूप में विख्यात है. राजस्थान में देश की स्वतंत्रता के बाद 1957 में संस्कृत शिक्षा निदेशालय स्थापित किया गया. ये मोहनलाल सुखाड़िया के मुख्यमंत्री काल की बात है. जगन्नाथ पहाड़िया ने 1980 में राजस्थान संस्कृत अकादमी बनाई. भैरोंसिंह शेखावत की सरकार ने 1998 में राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया. अशोक गहलोत सरकार ने 6 फरवरी 2001 को राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय शुरू किया. वसुंधरा राजे सरकार ने 2008 में राजस्थान मंत्र प्रतिष्ठान की शुरूआत की. आज प्रदेश में जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के साथ ही 33 राजकीय संस्कृत महाविद्यालयों में हजारों छात्र शास्त्रीय विषयों का अध्ययन और उन पर शोध कर रहे हैं.

ये भी अप्रिय सच है कि आज अधिकतर संस्कृत विश्वविद्यालय वेंटीलेटर पर हैं. इन्हें कहीं सरकारी अनदेखी बर्बाद कर रही है तो कहीं राजनैतिक उठापटक. शिक्षकों के आधे से ज्यादा पद रिक्त हैं. शोध और अनुसंधान रसातल में चला गया है. आज संस्कृत शिक्षा के बारे में एक धूमिल-सी धारणा है. इसकी शास्त्रीय परंपरा जो भी रही हो पर आम आदमी इसे पूजा-पाठ की भाषा से अधिक नहीं मानता. हालांकि 2007 में यूनेस्को की घोषणा के बाद ऋग्वेद मानव सभ्यता का सबसे पुराना दस्तावेज बैठता है. इससे संस्कृत वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक पुरातन भाषा सिद्ध होती है.

Last Updated : Aug 12, 2022, 5:55 PM IST
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