जयपुर. धनखड़ की ताजपोशी कई Set Notions को तोड़ेगी. भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का गरिमामयी अध्याय जोड़ेगी. गर्व का क्षण होगा जब एक किसान का बेटा उपराष्ट्रपति पद पर विराजेगा (Rajasthani Jagdeep Dhankhar). सवाल इनके उप राष्ट्रपति पद के लिए नाम घोषित होने के बाद से ही पूछे जाने लगे. खास एंगल जाट बिरादरी का निकला. 2023 में राजस्थान चुनावों में अपना दम खम दिखाएगा (Mission 2023 and Dhankhar). मामला वोट बैंक का है. दरअसल, राजस्थान में 20 फीसदी जाट हैं जो सरकारों को बनाने और बिगाड़ने में अहम रोल निभाते हैं. धनखड़ इन 20 परसेन्ट वोट्स की तकरीबन 70 से 80 फीसदी गारंटी तो देते ही हैं.
खास हैं धनखड़: धनखड़ ने राजस्थान में कई ऐसे काम किए जिसमें उनका व्यक्तित्व निखर कर सामने आता है. सामाजिक सरोकारों को पूरी तन्मयता से निभाया. वकालत का जौहर तब भी दिखाया जब सती प्रथा आंदोलन में राजपूत समाज की ओर से और जाटों को ओबीसी दर्जा दिलाने को लेकर लड़ाई लड़ी. काफी लम्बा और अहम वक्त राजस्थान में गुजारा है. यहां के शहरों से लेकर ढणियों को भली भांति समझते रहे हैं. धनखड़ कानून, सियासत, सियासी दांवपेंच औऱ हर पार्टी के अंदर अपने संबंधों की महारत के लिए जाने जाते हैं. जगजाहिर है कि धनखड़ आरएसएस के बहुत करीबी हैं और शायद यही वजह है कि उन्हें पहले पश्चिमी बंगाल का राज्यपाल और अब एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया है.
जानकार कहते हैं धनखड़ को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बना कर आलाकमान ने राजस्थान की राजनीति में एक संदेश ये भी दे दिया कि आने वाले विधानसभा चुनाव में जाट समुदाय से अब सीएम का चेहरा नही होगा. इसके साथ ही हरियाणा, यूपी जैसे जाट बहुल राज्यों को भी बीजेपी ने साधने की कोशिश की है.
भैरोसिंह के बाद दूसरे राजस्थानी उपराष्ट्रपति: बता दें कि एनडीए सरकार की ओर से उप राष्ट्रपति के उम्मीदवार बनाए गए जगदीप घनखड़ अगर चुनाव जीतते हैं तो वो राजस्थान के दूसरे ऐसे व्यक्ति होंगे जो उपराष्ट्रपति पद पर आसीन होंगे (Vice President Election 2022). इससे पहले अटल बिहारी सरकार के वक्त राजस्थान में तीन बार मुख्यमंत्री रहे भैरों सिंह शेखावत उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचे थे.भाजपा राजस्थान को शायद ये मैसेज भी देना चाहती है कि उसे यहां की माटी पर विश्वास है. उनके पास ऐसी उपलब्धियां हैं जो फर्श से अर्श पर छा जाने की कहानी बयां करती है.
धनखड़ एक परिचय: झुंझुनू जिले के छोटे से गांव किठाना के किसान परिवार में 18 मई 1951 को जगदीप धनखड़ का जन्म हुआ. कानून के अच्छे जानकार धनखड़ ने अपनी मेहनत के बूते राजनीति में खास मुकाम हासिल किया. 30 जुलाई, 2019 को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल का पदभार ग्रहण किया था. धनखड़ आज भी अपने गांव की जड़ों से जुड़े हुए हैं. शीर्ष पदों पर रहने और अपनी व्यस्तता के बावजूद अपने गांव और समाज के कार्यक्रमों में नियमित भाग लेते हैं. गांव के मंदिर के प्रति गहरी आस्था है. इसकी गवाही गांव वाले देते हैं. अंदाजा उनके दौरे को देखकर भी लगाया जा सकता है. वो हर दो-तीन महीने में समय निकालकर मंदिर में भगवान के दर्शन करने को आते हैं.
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धनखड़ की प्रारंभिक शिक्षा: जगदीप घनखड़ प्रारंभिक शिक्षा कक्षा 1 से 5 तक सरकारी प्राथमिक विद्यालय, किठाना गांव में हुई. कक्षा 6 में उन्होंने 4-5 किलोमीटर की दूरी पर सरकारी मिडिल स्कूल, घरधाना में प्रवेश लिया और गांव के अन्य छात्रों के साथ स्कूल की दूरी पैदल ही नापते रहे. 1962 में, सैनिक स्कूल में सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होने के बाद, चित्तौड़गढ़ प्रवेश परीक्षा ने उस स्कूल में कक्षा 5 में पूर्ण योग्यता छात्रवृत्ति पर प्रवेश लिया.
उच्च शिक्षा: राजस्थान विश्वविद्यालय से संबद्ध प्रतिष्ठित महाराजा कॉलेज, जयपुर में 3 साल के बीएससी (ऑनर्स) भौतिकी पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया और वहां से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. उसके बाद राजस्थान विश्वविद्यालय में एलएलबी पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया और वर्ष 1978-1979 में उत्तीर्ण किया. जगदीप धनखड़ की स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय में अकादमिक पृष्ठभूमि सभी में विशिष्ट रही है.
धनखड़ का करियर: जगदीप घनखड़ ने 10 नवम्बर 1979 से राजस्थान बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में रजिस्ट्रेशन करवाया. वर्ष 1987 में सबसे कम उम्र में राजस्थान उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन, जयपुर के अध्यक्ष चुने गए. वर्ष 1988 में राजस्थान बार काउंसिल के निर्वाचित सदस्य बने. साल 1989 में झुंझुनू संसदीय क्षेत्र से 9वीं लोकसभा के लिए चुने गए. 1990 में एक संसदीय समिति के अध्यक्ष भी बने, इसी साल 1990 में केंद्रीय मंत्री भी बने. वर्ष 1993-1998 में अजमेर जिले के किशनगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से राजस्थान विधान सभा के लिए चुने गए. लोकसभा और राजस्थान विधानसभा दोनों में, वो महत्वपूर्ण समितियों का हिस्सा थे. घनखड़ केंद्रीय मंत्री रहते हुए यूरोपीय संसद में एक संसदीय समूह के एक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा भी रहे.
कांग्रेस से जुड़ा नाता: धनखड़ केंद्रीय मंत्री भी रहे. झुंझुनूं से 1989 से 91 तक वे जनता दल से सांसद रहे. बाद में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया था. अजमेर से कांग्रेस टिकट पर वे लोकसभा चुनाव हार गए थे. फिर धनखड़ 2003 में बीजेपी में शामिल हो गए, अजमेर के किशनगढ़ से विधायक चुने गए.
ममता से अदावत हमेशा सुर्खियों में रही: धनखड़ वर्तमान में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हैं जहां ममता बनर्जी सरकार हैं. दोनों के बीच की अदावत ने हमेशा सुर्खियां बटोरी. राज्यपाल रहते हुए भी जगदीप धनखड़ ने कई बार खुलकर पश्चिम बंगाल सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए. जगदीप धनखड़ के कार्यकाल में ही बंगाल में राजभवन और सरकार के बीच टकराव की स्थिति लगातार बनती रही. हाल ही में बंगाल सरकार ने विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति जो राज्यपाल ही होता है उस अधिकार में भी परिवर्तन कर दिया था जो काफी सुर्खियों में रहा था.