जयपुर. राजस्थान भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड पर आ चुकी है और आला नेता एकजुटता का संदेश देने में जुटे हैं. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने तो हैदराबाद बीजेपी कार्य समिति में तो 'हम साथ-साथ है' का संदेश भी दिया था, लेकिन क्या वास्तव में प्रदेश भाजपा एकजुट हो गई है यह बड़ा सवाल है. क्योंकि आज भी वसुंधरा समर्थक अधिकतर नेता संगठनात्मक गतिविधियों से दूर ही नजर आ रहे हैं.
वसुंधरा समर्थक नेताओं की प्रदेश भर में भरमार है लेकिन राजधानी जयपुर की बात करें तो यह प्रदेश की राजनीति का मुख्य गढ़ है. यहीं पर संगठनात्मक गतिविधियों की शुरुआत और हर प्रकार की रणनीति बनाई जाती है लेकिन जयपुर में मौजूद राज्य के अधिकतर समर्थक नेता इन दिनों अलग-थलग से नजर आ रहे हैं. इसके कई कारण हैं. पहला कारण वसुंधरा के समर्थक होने के चलते संगठनात्मक रूप से इन नेताओं के पास कोई दायित्व नहीं है. दूसरा यह नेता मौजूदा प्रदेश की टीम में खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण संगठन वर्तमान में पार्टी से जुड़ी गतिविधियों में इन नेताओं को ज्यादा तवज्जो भी नहीं दे रहा. ऐसे में इन नेताओं के लिए अगले विधानसभा चुनाव तक खुद को राजनीतिक रूप से मजबूत रखना एक बड़ी चुनौती बन गया है.
सराफ, शेखवात, वर्मा और शर्मा की दूरी, है कई मजबूरी...
पिछली वसुंधरा सरकार में विधायक कालीचरण सराफ उच्च शिक्षा मंत्री भी रहे और फिर चिकित्सा मंत्री के तौर पर भी उन्होंने कार्य किया. कई बार विधायक रहने के बावजूद अब पार्टी के संगठनात्मक गतिविधियों में सराफ की चहलकदमी नहीं के बराबर रही है. यही स्थिति पिछली सरकार में यूडीएच और फिर उद्योग मंत्री रहे राजपाल सिंह शेखावत की भी है. शेखावत भी वसुंधरा समर्थक नेताओं में शामिल हैं लेकिन प्रदेश भाजपा से जुड़ी संगठनात्मक गतिविधियों में वे कभी कभार ही नजर आते हैं. इन दोनों ही नेताओं को पार्टी की ओर से भी कोई संगठनात्मक जिम्मेदारी नहीं दी गई है. जयपुर से ही आने वाले पूर्व संसदीय सचिव कैलाश वर्मा की स्थिति भी इन दोनों नेताओं से जुदा नहीं है. पार्टी संगठन में वर्मा को कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई और संगठनात्मक गतिविधियों में भी वह नजर कम ही आते हैं. वह भी वसुंधरा गुट के नेताओं में ही गिने जाते हैं.
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पिछली सरकार में राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रहीं और वसुंधरा राजे के समर्थकों में शामिल सुमन शर्मा की चहल कदमी भी पार्टी संगठन से जुड़े कार्यक्रमों में बहुत कम रहती है. प्रदेश नेतृत्व ने भी इस अनुभवी नेत्री को कोई संगठनात्मक जिम्मेदारी नहीं दे रखी है. ये भी कारण हो सकता है कि वे फिलहाल पार्टी से जुड़े कार्यक्रमों व गतिविधियों में नहीं दिखती हैं. हालांकि जयपुर से ही राजे समर्थक अशोक परनामी भी आते हैं लेकिन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते अधिकतर संगठनात्मक कार्यक्रमों में परनामी को बुलाया जाता है. संगठनात्मक रूप से कोई बड़ी जिम्मेदारी फिलहाल उनके पास भी नहीं है. हालांकि ये नेता अपने विधानसभा क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं और आए दिन कुछ न कुछ कार्यक्रम अपने बलबूते करते भी रहते हैं लेकिन पार्टी संगठन से जुड़े कार्यक्रमों में इन्हें उतनी तवज्जो नहीं मिल पा रही जितनी वह चाहते हैं.
पूर्व जिला अध्यक्ष से लेकर मोर्चा अध्यक्ष तक सब पार्टी से दूर
जयपुर से जुड़े वसुंधरा समर्थक विधायक और पूर्व विधायकों के बाद अब बात करते हैं जयपुर शहर से जुड़े पूर्व पार्टी पदाधिकारियों की जिनकी चहल कदमी भी इस समय संगठनात्मक कार्यक्रमों में न के बराबर है. उसका बड़ा कारण पार्टी संगठन में इन्हें कोई जिम्मेदारी न मिलना और नई टीम की ओर से इन पूर्व पदाधिकारियों को साथ में लेकर न चलने की प्रवृत्ति भी है. जयपुर शहर पूर्व अध्यक्ष संजय जैन हों या उनकी टीम से जुड़े जिले के पूर्व पदाधिकारी और मोर्चा के अध्यक्ष, लगभग यह सभी पूर्व पदाधिकारी वर्तमान में भाजपा से जुड़े कार्यक्रमों में कम ही नजर आते हैं. संगठनात्मक रूप से चलने वाले कार्यक्रमों और अभियानों में भी इनकी भागीदारी नहीं के बराबर रहती है. या फिर ये कहें कि इन्हें पार्टी कोई जिम्मेदारी देती नहीं तो यह भी ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाते. पूर्व जयपुर शहर अध्यक्ष संजय जैन भी वसुंधरा राजे समर्थकों में शामिल हैं.
वसुंधरा से आस लेकिन क्या दिख पाएंगे सब साथ
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे वर्तमान में पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं लेकिन प्रदेश में इनके समर्थक नेताओं को संगठन में ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई है. इस बात को ये तमाम नेता खुद भी स्वीकार करते हैं. हालांकि राजनीति में माना जाता है कि समय बड़ा बलवान होता है और यह तमाम नेता भी अपने अच्छे समय का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि वह समय कब आएगा यह कहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन साल 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश भाजपा नेताओं का यह बिखराव पार्टी की मजबूती की दृष्टि से ठीक नहीं माना जा सकता है.