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जयपुर: 4 करोड़ की दवा से हो रहा दुर्लभ बीमारी से ग्रसित बच्चे का उपचार, देश में इस तरह का ये दूसरा मामला - JK Lone Hospital

जयपुर के जेके लोन अस्पताल में एक दुर्लभ बीमारी से ग्रसित बच्चे का इलाज शुरू किया गया है. बच्चे को स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी नामक बीमारी है. चिकित्सकों का दावा है कि इस तरह की दुर्लभ बीमारी का यह देश में दूसरा मामला है.

Spinal muscular atrophy,   JK Lone Hospital, rare disease
दुर्लभ बीमारी से ग्रसित बच्चे का हो रहा इलाज
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Published : Aug 31, 2020, 5:18 PM IST

जयपुर. राजधानी के जेके लोन अस्पताल में एक दुर्लभ बीमारी से जुड़ा मामला सामने आया है. अस्पताल के चिकित्सकों का कहना है कि बच्चा स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त है. अस्पताल में बच्चे का उपचार शुरू कर दिया गया है. चिकित्सकों ने यह भी दावा किया है कि इस तरह की दुर्लभ बीमारी का देश में यह दूसरा मामला है और रिस्डिप्लाम (एवरेसडी) नाम की दवा बच्चे को दी जा रही है.

दुर्लभ बीमारी से ग्रसित बच्चे का हो रहा इलाज

इस दवा की कीमत 4 करोड़ रुपये है और इसे आजीवन देने की आवश्यकता होती है. फिलहाल यह दवा बच्चे को अनुकंपा उपयोग कार्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है. यह दवा भारत में दूसरी बार किसी रोगी को दी जा रही है.

चिकित्सकों ने बताया कि रिस्डिप्लाम (एवरेसडी) 2 महीने की उम्र से बड़े बच्चो के लिए मुंह से लेने वाली एक दवा है और सभी प्रकार के स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के बच्चों को दी जा सकती है. यह एक स्मॉल मोलेक्यूल ओरल ड्रग है, जिसे बच्चे को घर पर ही दिया जा सकता है. 7 अगस्त, 2020 को अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) द्वारा रिस्डिप्लाम को मंजूरी दी गई है, जो चार वर्षों के भीतर उपलब्ध स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के लिए तीसरी दवा बनी है.

पढ़ें- Special: कोरोना से मृत व्यक्ति का नहीं किया जाता पोस्टमार्टम, जानें अंतिम संस्कार तक की पूरी प्रक्रिया

इस दवा को रोच कंपनी द्वारा बनाया गया है. इसको बनाने में पीटीसी थेरेपीटिक्स कंपनी ने और एसएमए फाउंडेशन ने सहयोग किया है. बच्चे को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर से विशेष उपचार के लिए जेके लोन हॉस्पिटल जयपुर लाया गया था. इस बच्चे की बीमारी के बारे में बच्चे की मां को सबसे पहले आठ महीने की उम्र पर अंदेशा हुआ, क्योंकि बच्चे के पैरो के हरकत कम थी और ढीला पन था. इसके बाद जब बच्चे ने खड़ा होना और चलना शुरु नहीं किया तो पेरेंट्स ने डॉक्टर को दिखाया और जेनेटिक टेस्टिंग कराई तब इस बीमारी का पता चला.

अनुवांशिक बीमारी

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) एक आनुवांशिक बीमारी है, जो नर्वस सिस्टम और स्वैच्छिक मांसपेशी के काम को प्रभावित करती है. यह बीमारी लगभग हर 11,000 में से एक बच्चे को हो सकती है, और किसी भी जाति या लिंग को प्रभावित कर सकती है. एसएमए शिशुओं में मृत्यु का एक प्रमुख आनुवंशिक कारण है.

पढ़ें- Special : भ्रमण के दौरान जहां देवताओं से बिछड़ गए 'विनायक'...400 साल पहले प्रकट हुई थी प्रतिमा

यह एसएमए 1 जीन जो कि एक मोटर न्यूरॉन जीन है में उत्पन्न विकार कि वजह से होता है. एक स्वस्थ व्यक्ति में यह जीन एक प्रोटीन का उत्पादन करता है जो तंत्रिकाओं के माध्यम से हमारी मांसपेशियों को नियंत्रित करता है. इसके बिना वे तंत्रिका कोशिकाएं ठीक से काम नहीं कर सकती है और अंततः मर जाती है, जिससे दुर्बलता और कभी-कभी मांसपेशियों की घातक कमजोरी हो जाती है.

कुछ लोगों में प्रारंभिक लक्षण जन्म से पहले ही शुरू हो जाते हैं. जबकि कुछ में यह लक्षण वयस्क होने तक स्पष्ट नहीं होते हैं. हाथ, पैर और श्वसन तंत्र की मांसपेशियां आम तौर पर पहले प्रभावित होती हैं. इसकी वजह से रोगी में निगलने की समस्या, स्कोलियोसिस इत्यादि उत्पन्न हो सकती है. एसएमए वाले व्यक्तियों को सांस लेने और निगलने जैसे कार्यों में कठिनाई होने लगती है. ज्यादातर मरीज रेस्पिरेटरी फेलियर की वजह से समय से पहले मर जाते हैं. इसका डायग्नोसिस लक्षणों के साथ-साथ जेनेटिक टेस्टिंग करके कंफर्म किया जा सकता है.

जयपुर. राजधानी के जेके लोन अस्पताल में एक दुर्लभ बीमारी से जुड़ा मामला सामने आया है. अस्पताल के चिकित्सकों का कहना है कि बच्चा स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त है. अस्पताल में बच्चे का उपचार शुरू कर दिया गया है. चिकित्सकों ने यह भी दावा किया है कि इस तरह की दुर्लभ बीमारी का देश में यह दूसरा मामला है और रिस्डिप्लाम (एवरेसडी) नाम की दवा बच्चे को दी जा रही है.

दुर्लभ बीमारी से ग्रसित बच्चे का हो रहा इलाज

इस दवा की कीमत 4 करोड़ रुपये है और इसे आजीवन देने की आवश्यकता होती है. फिलहाल यह दवा बच्चे को अनुकंपा उपयोग कार्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है. यह दवा भारत में दूसरी बार किसी रोगी को दी जा रही है.

चिकित्सकों ने बताया कि रिस्डिप्लाम (एवरेसडी) 2 महीने की उम्र से बड़े बच्चो के लिए मुंह से लेने वाली एक दवा है और सभी प्रकार के स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के बच्चों को दी जा सकती है. यह एक स्मॉल मोलेक्यूल ओरल ड्रग है, जिसे बच्चे को घर पर ही दिया जा सकता है. 7 अगस्त, 2020 को अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) द्वारा रिस्डिप्लाम को मंजूरी दी गई है, जो चार वर्षों के भीतर उपलब्ध स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के लिए तीसरी दवा बनी है.

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इस दवा को रोच कंपनी द्वारा बनाया गया है. इसको बनाने में पीटीसी थेरेपीटिक्स कंपनी ने और एसएमए फाउंडेशन ने सहयोग किया है. बच्चे को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर से विशेष उपचार के लिए जेके लोन हॉस्पिटल जयपुर लाया गया था. इस बच्चे की बीमारी के बारे में बच्चे की मां को सबसे पहले आठ महीने की उम्र पर अंदेशा हुआ, क्योंकि बच्चे के पैरो के हरकत कम थी और ढीला पन था. इसके बाद जब बच्चे ने खड़ा होना और चलना शुरु नहीं किया तो पेरेंट्स ने डॉक्टर को दिखाया और जेनेटिक टेस्टिंग कराई तब इस बीमारी का पता चला.

अनुवांशिक बीमारी

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) एक आनुवांशिक बीमारी है, जो नर्वस सिस्टम और स्वैच्छिक मांसपेशी के काम को प्रभावित करती है. यह बीमारी लगभग हर 11,000 में से एक बच्चे को हो सकती है, और किसी भी जाति या लिंग को प्रभावित कर सकती है. एसएमए शिशुओं में मृत्यु का एक प्रमुख आनुवंशिक कारण है.

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यह एसएमए 1 जीन जो कि एक मोटर न्यूरॉन जीन है में उत्पन्न विकार कि वजह से होता है. एक स्वस्थ व्यक्ति में यह जीन एक प्रोटीन का उत्पादन करता है जो तंत्रिकाओं के माध्यम से हमारी मांसपेशियों को नियंत्रित करता है. इसके बिना वे तंत्रिका कोशिकाएं ठीक से काम नहीं कर सकती है और अंततः मर जाती है, जिससे दुर्बलता और कभी-कभी मांसपेशियों की घातक कमजोरी हो जाती है.

कुछ लोगों में प्रारंभिक लक्षण जन्म से पहले ही शुरू हो जाते हैं. जबकि कुछ में यह लक्षण वयस्क होने तक स्पष्ट नहीं होते हैं. हाथ, पैर और श्वसन तंत्र की मांसपेशियां आम तौर पर पहले प्रभावित होती हैं. इसकी वजह से रोगी में निगलने की समस्या, स्कोलियोसिस इत्यादि उत्पन्न हो सकती है. एसएमए वाले व्यक्तियों को सांस लेने और निगलने जैसे कार्यों में कठिनाई होने लगती है. ज्यादातर मरीज रेस्पिरेटरी फेलियर की वजह से समय से पहले मर जाते हैं. इसका डायग्नोसिस लक्षणों के साथ-साथ जेनेटिक टेस्टिंग करके कंफर्म किया जा सकता है.

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