जयपुर. लैला और मजनू के बारे में तो हम सब ने सुना है, लेकिन क्या आप जानते हैं, कि आखिर दोनों की शादी क्यों नहीं हो पाई. वैसे लैला मजनू का इतिहास भारत से जुड़ा है. बताया जाता है कि दोनों ने अपनी जिंदगी के आखिरी लम्हे पाकिस्तान बॉर्डर से महज 2 किमी दूर राजस्थान की जमीन पर ही गुजारे थे. यही नहीं इनकी यहां पर एक मजार भी बनी है. यह मजार बनी है श्रीगंगानगर जिले में. अनूपगढ़ तहसील के गांव बिंजौर में बनी इस मजार पर लवर्स अपने प्यार की मन्नतें मांगने आते हैं.
7वीं सदी से रखते हैं ताल्लुक...
लैला-मजनू की कहानी 7वीं सदी की है. उस समय अरब के रेगिस्तानों में अमीरों का बसेरा हुआ करता था. उन्हीं अमीरों में से अरबपति शाह आमरी के घर कैसा ने जन्म लिया. कैस के होने की खुशी में घरवालों ने जश्न रखा. इस जश्न में एक ज्योतिषी आए. उन्होंने कैस को देखने ही भविष्यवाणी कर दी कि, यह बालक बड़ा होकर प्रेमराग में पड़ने वाला है. या यूं कहें, तो अरबपति शाह अमारी के बेटे कैस की किस्मत में यह प्रेमरोग हाथ की लकीरों में ही लिखा था. ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि आने वाले समय में कैस प्रेम दीवाना होकर दर-दर भटकता फिरेगा.
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इसके बाद क्या था, ज्योतिषियों की भविष्यवाणी को झुठलाने के लिए शाह अमारी ने खूब मन्नतें मांगी, मजारों में खुदा को मनाया, ताकि अपने बेटे को इस प्रेमरोग से बचा सके, लेकिन हुआ वहीं, जो खुदा को मंजूर था. कुदरत ने अपना खेल दिखाया..
दूसरी तरफ अरब देश का एक और शाही खानदान, जहां एक छोटी बच्ची लैला का जन्म हुआ, मानों इसे खुदा ने कैस के लिए ही भेजा हो. लैला को नाजो से किसी राजकुमारी की तरह ही पाला गया था. वह देखने में भी काफी सुंदर थी. लैला के घर में उसके माता-पिता और एक भाई था.
कैस जब अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर रहा था. तब दमिश्क के मदरसे में उसी जगह लैला भी आया करती थी. लैला को देखते ही कैस को उससे मोहब्बत हो गई. लैला और कैस बचपन में ही एक-दूसरे की ओर खिंचते चले गए.
कैस और लैला साथ-साथ में तालिम ले रहे थे. मदरसे के मौलवी ने उन्हें कई दफा टोका कि दोनों तालिम में ध्यान दें, लेकिन कैस की नजर कभी लैला से हटी ही नहीं. कैस की मोहब्बत इस कदर बढ़ती गई कि वह बचपनें में तालिम में भी लैला का ही जिक्र करने लगा. ऐसा करने से उसे कई बार रोका भी गया, लेकिन वह नहीं माना और लैला के प्यार में खोता गया. कैस की मोहब्बत देखकर लैला को भी उससे इश्क हो चला था.
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कहानियों में विदित है कि दोनों के प्यार में इतनी सच्चाई और ताकत थी कि तकलीफ एक को होती तो दर्द दूसरे को होता. जब मार कैस को पड़ती तो दर्द लैला को भी महसूस होता था.
एक बार मौलवी ने जब कैस को अल्लाह लिखने को कहा, तो उसने बजाए अल्लाह लिखने के लैला लिखा, मौलवी के बार-बार कहने पर भी कैस ने उनकी बात नहीं मानी और लैला-लैला लिखता गया. इस बात गुस्साए मौलवी ने उसे स्केल से मारना शुरू कर दिया. जिसकी निशान लैला के हाथों पर भी पड़ने लगे. यह देखकर मौलवी भी अंचभित हो गए और यह बात दोनों के घरवालों को बता दी.
यह बात जब मौलवी ने दोनों के घरवालों को बताई को दोनों को अलग कर दिया गया इसके साथ ही दोनों बचपन में ही बिछुड़ गए और काफी दिनों तक एक-दूसरे से चाहकर भी नहीं मिल पाए. ....
समय बदला, पर मोहब्बत नहीं...
समय का पहिया आगे बढ़ा. लैला और कैस अब बड़े हो चुके थे. एक-दूसरे से न मिलकर दोनों बस यादों में ही खोए थे. लैला बड़ी होकर बला की खूबसूरत हो चुकी थी. कैस भी किसी गबरू मुंडे से कम नहीं था.
और जब मेले में मिले दोनों...
एक बार लैला और कैस दोनों एक ही मेले में पहुंचे. कैस की निगाहें लैला को ही ढूंढ रही थी. यहां दोनों ने एक-दूसरे को देखते ही पहचान लिया. लैला का दीदार पाकर कैस उस दिन बहुत खुश हुआ. लैला भी अपने बचपन के प्यार को देखकर उतनी ही खुश थी, मानों किसी पंछी को उसके टूटे हुए पंख मिल गए हो. दोनों पेड़ किनारें जाकर सुकून की तलाश में एक-दूजे में खो गए और इस प्रकार धीरे-धीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ता गया. कैस लैला के लिए शायरी लिखने लगा. लैला और कैस बस एक-दूसरे में खो चुके थे. उन्हें न समाज की परवाह थी, न अपने घरवालों की.
इस बात की खबर जब लैला और कैस के घरवालों को लगी तो उन्होंने प्रेम को गलत ठहराते हुए का दोनों प्यार के परिंदों को अलग करने की ठान ली. लैला के घर वालों को कैस पसंद नहीं था. उन्होंने लैला की शादी कहीं और करवाने की सोच ली और लैला को घर में कैद कर लिया गया.
कैस का नाम हो गया 'मजनूं'...
कैस को जब इस बात का पता लगा तो वह लैला के प्यार में मारा-मारा दर-दर भटकने लगा और लैला-लैला पुकारने लगा. इसके बाद उसके हालात बुरी होती गई. कैस जहां भी जाता उसे लोग मजनूं-मजनूं कहकर पुकारने लगते और पागल समझकर उसे पत्थरों से पीटने लगते. (मजनूं एक अरेबिक शब्द है, जिसका मतलब होता है, पागल. अंग्रेज़ी में जिसे ‘क्रेजी कहते हैं. )
लैला की किसी और से हुई शादी...
लैला और कैस की तमाम कोशिशों के बाद भी लैला के घरवालों ने उसकी शादी बख्त नाम के शख्स से करा देते हैं. लैला की भले ही शादी हो चुकी हो, लेकिन दिल से अभी भी वह मजनूं की ही थी. लैला ने अपने शौहर को अपनाने से इंकार कर दिया और उससे यह बात साफ कह दी वह मजनूं से ही प्रेम करती है. यब बात सुनकर बख्त बौखला उठा और लैला को यात्नाएं देने लगा. इसके बावजूद ला ने अपने शौहर से साफ-साफ इंकार कर दिया कि वह मजनूं के अलावा किसी और की नहीं हो सकती.
लैला की ऐसी हालत देखकर बख्त को भी ताज्जुब होने लगा कि, ऐसा प्यार कोई किसी से कैसे कर सकता है. उसने लैला से कहा कि वह उसे तलाक दे देगा, बस एक बार वह मजनूं से मिलना चाहता है. बख्त मजनूं की खोज में निकल पड़ा. उसने लैला को भी अपने साथ ले लिया.
मजनूं ने जब लैला की ऐसी हालत सुनी तो वह उससे मिलने के लिए अरब के तपते रेगिस्तानों में गिरता-पड़ता गर्म धूल की थपेड़ों में मारा-मारा फिरता हुआ लैला की तलाश में निकल पड़ा. यही कारण है कि जब लोग मजनूं को भगाने के लिए पत्थर मारने लगे थे, तो लैला जख्मी हो रही थी. आखिरकार रेगिस्तान में बख्त को मजनूं जख्मी हालत में मिला. मजनूं को देखकर लैला और तड़प उठी. यहां बख्त ने उससे पूछा कि आखिर उसके पास ऐसा क्या है जो मेरे पास नहीं, इस पर मजनूं ने जवाब दिया लैला का प्यार, उसकी चाहत.
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बख्त की आंखों में मजनूं के खून की प्यास थी. मजनूं की बातें बख्त को बुरी तरह से चुभ गई और उसने तलवार निकालकर मजनूं के सीने में गोभ दी. मजनूं के घायल होने पर लैला भी मूर्छित हो जाती है. जैसा कि कहानियों में विदित है कि दोनों के प्यार में इतनी सच्चाई थी कि चोट एक को लगने पर, उसका असर दूसरे पर भी पड़ता था. इस तरह से दो प्यार करने वाले मरकर भी अमर हो गए. जिन्हें न समाज के बंदिशे जुदा कर पाई और न ही घरवाले. दोनों ने एक-दूसरे के साथ जी तो नहीं पाए, लेकिन मौत ने इन्हें एक कर दिया.
राजस्थान के अनूपगढ़ में है दोनों की मजार...
लैला और मजनूं की जहां मौत हुई. उसी जगह दोनों के अमर प्रेम की यह कहानी दफन होकर रह गई. यहां दोनों की साथ में ही मजार बनाई गई. वह जगह पाकिस्तानी बार्डर से 2 किमी अंदर भारत के राजस्थान के अनूपगढ़ में आता है.
यहां प्यार की मन्नत मांगते आते हैं प्रेमी जोड़े...
इस मजार में हर 15 जून को मेला भरता है. जहां हजारों की संख्या में प्रेमी जोड़े अपने प्यार की सलामती के लिए मन्नत मांगने आते हैं. कहते हैं कि यहां जो भी माथा टेकता है उसे उसका प्यार जरूर मिलता है. इसी आश में हर साल यहां भारी भीड़ जुटती है.