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Special : नियमित होने के इंतजार में हजारों मदरसा पैराटीचर्स, गहलोत सरकार के खिलाफ आक्रोश

प्रदेश के मदरसों में बच्चों का भविष्य संवारने वाले मदरसा पैराटीचर्स 2008 से नियमित होने का इंतजार कर रहे हैं. विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने भी अपने जन घोषणा पत्र में मदरसा पैराटीचरों को नियमित करने की घोषणा की थी, लेकिन ढाई साल बीतने के बावजूद अभी तक उन्हें नियमित नहीं किया गया है. इसके कारण अल्पसंख्यक समुदाय में गहलोत सरकार को लेकर आक्रोश व्याप्त है.

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नियमित होने के इंतजार में हजारों मदरसा पैराटीचर्स
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Published : Mar 16, 2021, 2:45 PM IST

जयपुर. प्रदेश के मदरसा पैराटीचर्स लंबे समय से नियमित होने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. ये कई बार धरना प्रदर्शन कर चुके हैं और मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं. इसके बावजूद इनकी मांग नहीं मानी जा रही. 2013 में 6,000 मदरसा शिक्षा सहायकों की भर्ती भी की गई थी, जिसका अभी तक परिणाम जारी नहीं किया गया है. देखिये जयपुर से ये खास रिपोर्ट...

नियमित होने के इंतजार में हजारों मदरसा पैराटीचर्स...

पूरे प्रदेश की बात की जाए तो प्रदेश में 3,500 मदरसे हैं. जिसमें 1 लाख 80 हजार बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. इन बच्चों का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी 5,694 मदरसा पैराटीचर्स पर है. मदरसा पैराटीचर्स का कहना है कि उन्हें बहुत कम मानदेय दिया जा रहा है. जिससे घर खर्च भी चलाना मुश्किल है. सैकड़ों ऐसे मदरसा पैराटीचर्स हैं जो अपने गृह जिले से बाहर अन्य जिलों में रहकर नौकरी कर रहे हैं. जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान तो हो ही रहा है, साथ ही कई तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है. सबसे अधिक परेशानी महिला मदरसा पैराटीचर्स की है. महिला मदरसा पैराटीचर्स कई बार समायोजन की मांग भी उठा चुकी हैं, लेकिन अभी तक सभी मदरसा पैराटीचर्स का समायोजन नहीं हो पाया है. मदरसा पैराटीचर्स को 8,742 से लेकर 10,896 रुपये तक का मानदेय दिया जा रहा है.

madarsa parateachers demand
नियमित होने के इंतजार में मदरसा पैराटीचर्स...

वादाखिलाफी का आरोप...

राजस्थान उर्दू शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमीन कायमखानी कहते हैं कि गहलोत सरकार ने मदरसा पैराटीचरों के साथ वादाखिलाफी की है. जन घोषणा पत्र में किए गए वादे के मुताबिक पैराटीचरों को नियमित नहीं किया है. जिससे अल्पसंख्यक समुदाय में आक्रोश व्याप्त है. शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के विधानसभा में दिए गए बयान के बाद अल्पसंख्यक समुदाय खासा नाराज नजर आ रहा है. डोटासरा ने विधानसभा में कहा था कि फिलहाल मदरसा पैराटीचर्स और पंचायत सहायकों को नियमित करने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है. डोटासरा के इस बयान के बाद उनके खिलाफ कई जगहों पर विरोध-प्रदर्शन भी किए गए थे. कायमखानी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि मदरसा पैराटीचर्स को न्यूनतम मजदूरी से भी कम मानदेय दिया जा रहा है. बता दें कि शिक्षा विभाग की अनुदान मांगों पर विधानसभा में 15 मार्च को चर्चा भी हुई और अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद ने सदन में जवाब दिया.

पढ़ें : राजस्थान विधानसभा: पोकरण विधायक ने प्रश्नकाल में मदरसों में बेहतर शिक्षा का उठाया मुद्दा

डोटासरा के बयान पर नाराजगी...

डोटासरा के बयान को लेकर अमीन कायमखानी ने कहा कि उनका बयान बेहद निंदनीय है. प्रदेश में उर्दू तालीम पूरी तरह से दम तोड़ रही है और सरकारी स्कूलों में हजारों बच्चे अपनी मातृ भाषा की तालीम से महरूम हो रहे हैं. शिक्षा विभाग 2004 के आदेश की पूरी तरह से पालना भी नहीं हो रही है. शिक्षा मंत्री ने सरकारी उर्दू स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक दी जा रही उर्दू तालीम को बंद कर दिया है. सरकारी उर्दू स्कूलों में बच्चों को पढ़ने के लिए किताबें भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही, जिससे बच्चों का भविष्य अंधकार में नजर आ रहा है. इसीलिए शिक्षा मंत्री और गहलोत सरकार को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय में आक्रोश व्याप्त है. अमीन कायमखानी ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के शिक्षा से जुड़े बोर्डों में भी पद खाली पड़े हैं और राजनीतिक नियुक्तियां भी नहीं की जा रही. उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में होने वाले उपचुनाव में अल्पसंख्यक समुदाय कांग्रेस के खिलाफ वोट करेगा.

protest for demand
गहलोत सरकार के खिलाफ आक्रोश...

गहलोत सरकार को चेतावनी...

मदरसा शिक्षा सहयोगी संघ के प्रदेश अध्यक्ष सैयद मसूद अख्तर ने कहा कि प्रदेश में 14 फीसदी अल्पसंख्यक समुदाय है, जिनमें से 99 फीसदी लोग कांग्रेस को ही वोट देते हैं. जब कांग्रेस सरकार की ओर से अल्पसंख्यक समुदाय को देने की बात आती है तो कांग्रेस सरकार ठेंगा दिखा देती है. उन्होंने कहा कि 70 साल के इतिहास में यह पहला ऐसा बजट है, जिसमें ना तो मदरसा और ना ही उर्दू तालीम का कोई जिक्र किया गया. अल्पसंख्यक समुदाय का एक बड़ा योगदान कांग्रेस की सरकार बनाने में रहता है. इसके बावजूद भी अल्पसंख्यक समुदाय ठगा सा महसूस कर रहा है. मसूद अख्तर ने कहा कि विधानसभा में अल्पसंख्यक समुदाय के 9 विधायक हैं, लेकिन वे समुदाय की आवाज सदन में नहीं उठाते हैं. मसूद अख्तर ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि समय रहते अल्पसंख्यक समुदाय के लिए गहलोत सरकार ने कुछ नहीं किया तो आने वाले उपचुनाव में उसे मुंह की खानी पड़ेगी.

जयपुर. प्रदेश के मदरसा पैराटीचर्स लंबे समय से नियमित होने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. ये कई बार धरना प्रदर्शन कर चुके हैं और मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं. इसके बावजूद इनकी मांग नहीं मानी जा रही. 2013 में 6,000 मदरसा शिक्षा सहायकों की भर्ती भी की गई थी, जिसका अभी तक परिणाम जारी नहीं किया गया है. देखिये जयपुर से ये खास रिपोर्ट...

नियमित होने के इंतजार में हजारों मदरसा पैराटीचर्स...

पूरे प्रदेश की बात की जाए तो प्रदेश में 3,500 मदरसे हैं. जिसमें 1 लाख 80 हजार बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. इन बच्चों का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी 5,694 मदरसा पैराटीचर्स पर है. मदरसा पैराटीचर्स का कहना है कि उन्हें बहुत कम मानदेय दिया जा रहा है. जिससे घर खर्च भी चलाना मुश्किल है. सैकड़ों ऐसे मदरसा पैराटीचर्स हैं जो अपने गृह जिले से बाहर अन्य जिलों में रहकर नौकरी कर रहे हैं. जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान तो हो ही रहा है, साथ ही कई तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है. सबसे अधिक परेशानी महिला मदरसा पैराटीचर्स की है. महिला मदरसा पैराटीचर्स कई बार समायोजन की मांग भी उठा चुकी हैं, लेकिन अभी तक सभी मदरसा पैराटीचर्स का समायोजन नहीं हो पाया है. मदरसा पैराटीचर्स को 8,742 से लेकर 10,896 रुपये तक का मानदेय दिया जा रहा है.

madarsa parateachers demand
नियमित होने के इंतजार में मदरसा पैराटीचर्स...

वादाखिलाफी का आरोप...

राजस्थान उर्दू शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमीन कायमखानी कहते हैं कि गहलोत सरकार ने मदरसा पैराटीचरों के साथ वादाखिलाफी की है. जन घोषणा पत्र में किए गए वादे के मुताबिक पैराटीचरों को नियमित नहीं किया है. जिससे अल्पसंख्यक समुदाय में आक्रोश व्याप्त है. शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के विधानसभा में दिए गए बयान के बाद अल्पसंख्यक समुदाय खासा नाराज नजर आ रहा है. डोटासरा ने विधानसभा में कहा था कि फिलहाल मदरसा पैराटीचर्स और पंचायत सहायकों को नियमित करने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है. डोटासरा के इस बयान के बाद उनके खिलाफ कई जगहों पर विरोध-प्रदर्शन भी किए गए थे. कायमखानी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि मदरसा पैराटीचर्स को न्यूनतम मजदूरी से भी कम मानदेय दिया जा रहा है. बता दें कि शिक्षा विभाग की अनुदान मांगों पर विधानसभा में 15 मार्च को चर्चा भी हुई और अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद ने सदन में जवाब दिया.

पढ़ें : राजस्थान विधानसभा: पोकरण विधायक ने प्रश्नकाल में मदरसों में बेहतर शिक्षा का उठाया मुद्दा

डोटासरा के बयान पर नाराजगी...

डोटासरा के बयान को लेकर अमीन कायमखानी ने कहा कि उनका बयान बेहद निंदनीय है. प्रदेश में उर्दू तालीम पूरी तरह से दम तोड़ रही है और सरकारी स्कूलों में हजारों बच्चे अपनी मातृ भाषा की तालीम से महरूम हो रहे हैं. शिक्षा विभाग 2004 के आदेश की पूरी तरह से पालना भी नहीं हो रही है. शिक्षा मंत्री ने सरकारी उर्दू स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक दी जा रही उर्दू तालीम को बंद कर दिया है. सरकारी उर्दू स्कूलों में बच्चों को पढ़ने के लिए किताबें भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही, जिससे बच्चों का भविष्य अंधकार में नजर आ रहा है. इसीलिए शिक्षा मंत्री और गहलोत सरकार को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय में आक्रोश व्याप्त है. अमीन कायमखानी ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के शिक्षा से जुड़े बोर्डों में भी पद खाली पड़े हैं और राजनीतिक नियुक्तियां भी नहीं की जा रही. उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में होने वाले उपचुनाव में अल्पसंख्यक समुदाय कांग्रेस के खिलाफ वोट करेगा.

protest for demand
गहलोत सरकार के खिलाफ आक्रोश...

गहलोत सरकार को चेतावनी...

मदरसा शिक्षा सहयोगी संघ के प्रदेश अध्यक्ष सैयद मसूद अख्तर ने कहा कि प्रदेश में 14 फीसदी अल्पसंख्यक समुदाय है, जिनमें से 99 फीसदी लोग कांग्रेस को ही वोट देते हैं. जब कांग्रेस सरकार की ओर से अल्पसंख्यक समुदाय को देने की बात आती है तो कांग्रेस सरकार ठेंगा दिखा देती है. उन्होंने कहा कि 70 साल के इतिहास में यह पहला ऐसा बजट है, जिसमें ना तो मदरसा और ना ही उर्दू तालीम का कोई जिक्र किया गया. अल्पसंख्यक समुदाय का एक बड़ा योगदान कांग्रेस की सरकार बनाने में रहता है. इसके बावजूद भी अल्पसंख्यक समुदाय ठगा सा महसूस कर रहा है. मसूद अख्तर ने कहा कि विधानसभा में अल्पसंख्यक समुदाय के 9 विधायक हैं, लेकिन वे समुदाय की आवाज सदन में नहीं उठाते हैं. मसूद अख्तर ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि समय रहते अल्पसंख्यक समुदाय के लिए गहलोत सरकार ने कुछ नहीं किया तो आने वाले उपचुनाव में उसे मुंह की खानी पड़ेगी.

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