जयपुर. इंसान की खींची गयी लकीरें जो उसे एक दूसरे से अलग-थलग कर रही हैं. कहीं रंग भेद, कहीं धर्म तो कहीं जाति और राजनीतिक हित साधने के लिए पैदा किया गया भेदभाव और आर्थिक ऊंच-नीच, ये सभी इंसान के जीवन के लिए घातक बनते जा रहे हैं. इन सभी भावों को व्यक्त करने के उद्देश्य से जवाहर कला केंद्र (Jawahar Kala Kendra) में शनिवार को 'द जू स्टोरी' नाटक का मंचन किया (The Zoo Story drama staged in JKK) गया. रमेश भाटी नामदेव के निर्देशन में नाटक का मंचन हुआ. नाटक ने दर्शकों की वाहवाही लूटी. जेकेके (JKK) की पाक्षिक नाट्य योजना के तहत कार्यक्रम का आयोजन किया गया.
'जू की तरह है इंसानी जीवन': 'द जू स्टोरी' अमरीकी लेखक एडवर्ड एल्बी ने लिखा है. इसके दो पात्रों जैरी और पीटर की कहानी को रंगकर्मियों ने मंच पर प्रदर्शित किया. दर्शाया गया कि जैरी जो अति वाचाल प्रवृत्ति का है, स्वयं से हो रहे भेदभाव से बुरी तरह कुंठित है. चीड़ियाघर में जानवरों से होने वाले विभेद का उदाहरण देते हुए जैरी इंसानी वर्ग भेद को जाहिर करता है. भेदभाव की जंजीरों में जकड़ा जैरी चाहता है कि इंसान आपस में भेदभाव नहीं करे.
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अकेलेपन से जूझ रहे जैरी को सहयोग का दिखावा करने की दुनिया की आदत रास नहीं आती. अब वह अपनी जीवन लीला समाप्त करना चाहता है. इस पर पीटर उसे सार्वभौमिक नियम समझाने का प्रयास करता है कि सबको सब कुछ नहीं मिलता. पीटर की अंतरमुखी प्रवृत्ति से ऐसा प्रतीत होता है कि वह सभ्य इंसान है. अंतत: उकसाने पर पीटर के भीतर छिपा जानवर बाहर आ जाता है और जैरी की हत्या हो जाती है. नाटक की जान बने जैरी और पीटर का रोल डॉ. हितेंद्र गोयल और मजाहिर सुल्तान जई ने निभाया.