जयपुर. इस साल का आखिरी चंद्र ग्रहण सोमवार को खत्म हो गया. कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को पड़ने वाला यह चंद्रग्रहण उपच्छाया ग्रहण था, जिसका कोई सूतक काल नहीं था. ऐसे में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस ग्रहण का कोई सूतक काल नहीं होता. वह ज्यादा प्रभावशाली नहीं होता, लेकिन फिर भी चंद्रग्रहण की समयावधि में मंदिरों में इष्टदेव की उपासना के साथ जप-तप हुए.
चंद्रग्रहण ब्रह्मांड की एक खगोलीय घटना है और यह पृथ्वी से मीलों दूर घटित होती है, लेकिन ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि इसके बावजूद चंद्र ग्रहण का मानव जीवन पर असर होता है. भारतीय समयानुसार दोपहर 1.02 बजे एक छाया से ग्रहण का पहला स्पर्श दिखा और फिर दोपहर 3.11 बजे पर परमग्रास चंद्रग्रहण हुआ. वहीं शाम 5.24 बजे पर उपच्छाया से अंतिम स्पर्श रहा. हालांकि राजस्थान में ये खगोलीय घटना दिखाई नहीं दी और इसका प्रभाव भी नहीं हुआ.
पढ़ें- कार्तिक पूर्णिमा महास्नान के साथ पुष्कर मेले का समापन, श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी...
धर्म विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी ग्रहण का सबसे ज्यादा प्रभाव गर्भवती महिलाओं व बच्चों पर देखा जाता है, लेकिन इस ग्रहण का कोई सूतक काल नहीं होने से महिलाओं और लोगों ने मंदिरों में पाठ किए. वहीं जयपुर के मंदिरों में भक्तों ने ग्रहण समयावधि में अखण्ड जप-तप कर भगवान को प्रसन्न किया. अब चन्द्र ग्रहण समाप्त होने के बाद मंदिरों में भगवान की प्रतिमाओं के साथ साथ पूरे परिसर को गंगा जल कर शुद्ध किया गया. ऐसा करने से व्याप्त ग्रहण की नकारात्मक छाया नष्ट हो जाएगी.