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पूर्व उपराष्ट्रपति शेखावत के परिजनों को खाली करना होगा बंगला, एडीजे कोर्ट ने खारिज की अपील - former Vice President Shekhawat

जयपुर के एडीजे कोर्ट-15 ने पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के परिजनों को सिविल लाइंस स्थित बंगला नंबर-14 के आवंटन से जुड़े केस में परिजनों की अपील शनिवार को खारिज कर दी. साथ ही कोर्ट ने परिजनों के उस प्रार्थना पत्र को भी खारिज कर दिया. जिसमें हाईकोर्ट में याचिका दायर करने और बंगला खाली करने के लिए एक महीने का समय देने का आग्रह किया था.

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Published : Nov 16, 2019, 9:00 PM IST

जयपुर. राजधानी के एडीजे कोर्ट-15 ने पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के परिजनों को सिविल लाइंस स्थित बंगला नंबर-14 के आवंटन से जुड़े केस में परिजनों की अपील शनिवार को खारिज कर दी. कोर्ट ने यह आदेश पूर्व उप राष्ट्रपति भैंरोंसिंह शेखावत के गोद लिए नवासे विक्रमादित्य सिंह शेखावत की अपील और प्रार्थना पत्र पर दिया.

अपील में एडीम-द्वितीय जयपुर के 7 अक्टूबर 2019 के उस फैसले को चुनौती दी थी. जिसमें परिजनों को 30 दिन में सिविल लाइंस स्थित बंगला नंबर-14 खाली करने का निर्देश दिया था. एडीएम ने यह आदेश राज्य सरकार के पीडब्ल्यूडी विभाग के 2017 में दायर किए उस प्रार्थना पत्र पर दिया था. जिसमें पूर्व में शेखावत को आवंटित किए गए बंगले को खाली कराए जाने का आग्रह किया गया था.

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परिजनों ने अपील में यह दी थी दलीलें:

विक्रमादित्य सिंह के अधिवक्ता विमल चौधरी ने एडीएम के फैसले को चुनौती देते हुए अपील में कहा कि निचली कोर्ट को प्रार्थना पत्र को सुनवाई करने का अधिकार ही नहीं था और न ही वादी ही प्रार्थना पत्र दायर करने के लिए सक्षम था. यदि बंगला खाली कराना था तो राज्य सरकार को कोर्ट में सिविल दावा दायर करना चाहिए था. उनके परिजन नियमित तौर पर बंगले का किराया जमा करा रहे हैं और मार्च 2020 तक का किराया जमा है. ऐसे में राज्य सरकार को बंगले को खाली कराए जाने का अधिकार नहीं है. एडीएम कोर्ट ने अपीलार्थी को सुनवाई का मौका दिए और बहस सुने बिना ही 7 अक्टूबर का फैसला दिया है जो गलत है. इसलिए एडीएम के फैसले को खारिज किया जाए.

यह है मामला: राज्य सरकार ने बंगला नंबर-14 भैंरोसिंह शेखावत को 1998 में आवंटित किया था. उपराष्ट्रपति बनने पर उन्हें दिल्ली में भी बंगला मिला और उनके पास जयपुर व दिल्ली में दो बंगले हो गए. बाद में उन्होंने दिल्ली वाले बंगले को छोड़ दिया. 2010 में भैंरोसिंह शेखावत की मृत्यु होने पर भारत सरकार की 18 जून 2010 की अनुशंसा के आधार पर उनकी पत्नी को यह बंगला पेंशन एक्ट के तहत दिया गया, लेकिन 2014 में उनकी पत्नी का देहांत हो जाने के बाद भैंरोंसिंह के दत्तक पुत्र विक्रमादित्य सिंह उसमें रहते रहे.

पढे़ं- ट्रैफिक नियमों का उल्लघंन करने वालों के खिलाफ पुलिस ने दिखाई सख्ती, 2 दिन में 212 वाहन जब्त

इस दौरान राज्य में नई सरकार बनने पर यह बंगला विधानसभा के मुख्य सचेतक डॉ. महेश जोशी को आवंटित हुआ. जिसके बाद पीडब्ल्यूडी विभाग ने बंगला खाली कराने के लिए एडीएम के यहां पर प्रार्थना पत्र दायर किया. इससे पहले बिना अनुमति के सरकारी बंगलों पर काबिज होने के चलते विधायक नरपत सिंह राजवी को गहलोत सरकार ने बंगला खाली करने के निर्देश दिए. साथ ही उन्हें 23 अगस्त से 10 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना भरने का नोटिस भी दिया था, लेकिन वे बंगले में यह कहकर रहते रहे कि किराया भुगतान कर रहे हैं.

जयपुर. राजधानी के एडीजे कोर्ट-15 ने पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के परिजनों को सिविल लाइंस स्थित बंगला नंबर-14 के आवंटन से जुड़े केस में परिजनों की अपील शनिवार को खारिज कर दी. कोर्ट ने यह आदेश पूर्व उप राष्ट्रपति भैंरोंसिंह शेखावत के गोद लिए नवासे विक्रमादित्य सिंह शेखावत की अपील और प्रार्थना पत्र पर दिया.

अपील में एडीम-द्वितीय जयपुर के 7 अक्टूबर 2019 के उस फैसले को चुनौती दी थी. जिसमें परिजनों को 30 दिन में सिविल लाइंस स्थित बंगला नंबर-14 खाली करने का निर्देश दिया था. एडीएम ने यह आदेश राज्य सरकार के पीडब्ल्यूडी विभाग के 2017 में दायर किए उस प्रार्थना पत्र पर दिया था. जिसमें पूर्व में शेखावत को आवंटित किए गए बंगले को खाली कराए जाने का आग्रह किया गया था.

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परिजनों ने अपील में यह दी थी दलीलें:

विक्रमादित्य सिंह के अधिवक्ता विमल चौधरी ने एडीएम के फैसले को चुनौती देते हुए अपील में कहा कि निचली कोर्ट को प्रार्थना पत्र को सुनवाई करने का अधिकार ही नहीं था और न ही वादी ही प्रार्थना पत्र दायर करने के लिए सक्षम था. यदि बंगला खाली कराना था तो राज्य सरकार को कोर्ट में सिविल दावा दायर करना चाहिए था. उनके परिजन नियमित तौर पर बंगले का किराया जमा करा रहे हैं और मार्च 2020 तक का किराया जमा है. ऐसे में राज्य सरकार को बंगले को खाली कराए जाने का अधिकार नहीं है. एडीएम कोर्ट ने अपीलार्थी को सुनवाई का मौका दिए और बहस सुने बिना ही 7 अक्टूबर का फैसला दिया है जो गलत है. इसलिए एडीएम के फैसले को खारिज किया जाए.

यह है मामला: राज्य सरकार ने बंगला नंबर-14 भैंरोसिंह शेखावत को 1998 में आवंटित किया था. उपराष्ट्रपति बनने पर उन्हें दिल्ली में भी बंगला मिला और उनके पास जयपुर व दिल्ली में दो बंगले हो गए. बाद में उन्होंने दिल्ली वाले बंगले को छोड़ दिया. 2010 में भैंरोसिंह शेखावत की मृत्यु होने पर भारत सरकार की 18 जून 2010 की अनुशंसा के आधार पर उनकी पत्नी को यह बंगला पेंशन एक्ट के तहत दिया गया, लेकिन 2014 में उनकी पत्नी का देहांत हो जाने के बाद भैंरोंसिंह के दत्तक पुत्र विक्रमादित्य सिंह उसमें रहते रहे.

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इस दौरान राज्य में नई सरकार बनने पर यह बंगला विधानसभा के मुख्य सचेतक डॉ. महेश जोशी को आवंटित हुआ. जिसके बाद पीडब्ल्यूडी विभाग ने बंगला खाली कराने के लिए एडीएम के यहां पर प्रार्थना पत्र दायर किया. इससे पहले बिना अनुमति के सरकारी बंगलों पर काबिज होने के चलते विधायक नरपत सिंह राजवी को गहलोत सरकार ने बंगला खाली करने के निर्देश दिए. साथ ही उन्हें 23 अगस्त से 10 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना भरने का नोटिस भी दिया था, लेकिन वे बंगले में यह कहकर रहते रहे कि किराया भुगतान कर रहे हैं.

Intro:जयपुर। एडीजे कोर्ट-15 ने पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के परिजनों को सिविल लाइंस स्थित बंगला नंबर-14 के आवंटन से जुड़े केस में परिजनों की अपील शनिवार को खारिज कर दी। साथ ही कोर्ट ने परिजनों के उस प्रार्थना पत्र को भी खारिज कर दिया जिसमें हाईकोर्ट में याचिका दायर करने व बंगला खाली करने के लिए एक महीने का समय देने का आग्रह किया था। कोर्ट ने यह आदेश पूर्व उप राष्ट्रपति भैंरोंसिंह शेखावत के गोद लिए नवासे विक्रमादित्य सिंह शेखावत की अपील व प्रार्थना पत्र पर दिया। अपील में एडीम-द्वितीय जयपुर के 7 अक्टूबर 2019 के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें परिजनों को 30 दिन में सिविल लाइंस स्थित बंगला नंबर-14 खाली करने का निर्देश दिया था। एडीएम ने यह आदेश राज्य सरकार के पीडब्ल्यूडी विभाग के 2017 में दायर किए उस प्रार्थना पत्र पर दिया था जिसमें पूर्व में शेखावत को आवंटित किए गए बंगले को खाली कराए जाने का आग्रह किया गया था।Body:परिजनों ने अपील में यह दी थी दलीलें: विक्रमादित्य सिंह के अधिवक्ता विमल चौधरी ने एडीएम के फैसले को चुनौती देते हुए अपील में कहा कि निचली कोर्ट को प्रार्थना पत्र को सुनवाई करने का अधिकार ही नहीं था और न ही वादी ही प्रार्थना पत्र दायर करने के लिए सक्षम था। यदि बंगला खाली कराना था तो राज्य सरकार को कोर्ट में सिविल दावा दायर करना चाहिए था। उनके परिजन नियमित तौर पर बंगले का किराया जमा करा रहे हैं और मार्च 2020 तक का किराया जमा है। एेसे में राज्य सरकार को बंगले को खाली कराए जाने का अधिकार नहीं है। एडीएम कोर्ट ने अपीलार्थी को सुनवाई का मौका दिए और बहस सुने बिना ही 7 अक्टूबर का फैसला दिया है जो गलत है। इसलिए एडीएम के फैसले को खारिज किया जाए।
यह है मामला: राज्य सरकार ने बंगला नंबर-14 भैंरोसिंह शेखावत को 1998 में आवंटित किया था। उपराष्ट्रपति बनने पर उन्हें दिल्ली में भी बंगला मिला और उनके पास जयपुर व दिल्ली में दो बंगले हो गए। बाद में उन्होंने दिल्ली वाले बंगले को छोड़ दिया। 2010 में भैंरोसिंह शेखावत की मृत्यु होने पर भारत सरकार की 18 जून 2010 की अनुशंसा के आधार पर उनकी पत्नी को यह बंगला पेंशन एक्ट के तहत दिया गया। लेकिन 2014 में उनकी पत्नी का देहांत हो जाने के बाद भैंरोंसिंह के दत्तक पुत्र विक्रमादित्य सिंह उसमें रहते रहे। इस दौरान राज्य में नई सरकार बनने पर यह बंगला विधानसभा के मुख्य सचेतक डॉ. महेश जोशी को आवंटित हुआ। जिसके बाद पीडब्ल्यूडी विभाग ने बंगला खाली कराने के लिए एडीएम के यहां पर प्रार्थना पत्र दायर किया। इससे पहले बिना अनुमति के सरकारी बंगलों पर काबिज हाेने के चलते विधायक नरपत सिंह राजवी काे गहलोत सरकार ने बंगला खाली करने के निर्देश दिए। साथ ही उन्हें 23 अगस्त से 10 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना भरने का नोटिस भी दिया था। लेकिन वे बंगले में यह कहकर रहते रहे कि किराया भुगतान कर रहे हैं।Conclusion:
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