जयपुर. बच्चों को लॉकअप में बंद करने के मामले में राज्य मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लेते हुए पुलिसकर्मियों को दोषी पाया है. इसके साथ ही आयोग ने दोषी पुलिकर्मियों पर 50-50 हजार रुपए का हर्जाना भी लगाया है. ये मुआवजा उन बच्चों को देने होंगे जो लॉकअप में बंद किए गए थे.
मामले में चन्द्रप्रकाश उप निरीक्षक, रामकल्याण सहायक उप निरीक्षक और त्रिलोकचन्द मुख्य आरक्षी, थाना भवानीमण्डी दोषी पाये गए. जिन्हें तत्काल प्रभाव से लाइन हाजिर किया गया था.
पुलिस उप अधीक्षक वृत भवानीमण्डी जिला झालावाड़ की जांच रिपोर्ट भी आयोग के समक्ष पेश की गई. जांच रिपोर्ट और बयानों के आधार पर यह तथ्य सामने आया कि तीनों बालकों को थाना भवानीमण्डी पर लाना ही अनुचित था, इन्हें बाल कल्याण समिति को सुपुर्द करना चाहिये था.
सहायक उप निरीक्षक रामकल्याण ने अल्प समय के लिये हवालात में बंद करना अपने बयानों में बताया है, जो सहायक उप निरीक्षक की गलती रही है. रोजनामचा आम तहरीर हेड कांस्टेबल त्रिलोकचंद के नाम थी. हेड कांस्टेबल को भी चाहिये था कि बालक नाबालिग थे, उन्हें थाने में भी नहीं रोकना था, ना ही हवालात में बंद करना था. हेड कांस्टेबल की भी संयुक्त गलती है.
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राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस गोपाल कृष्ण व्यास ने अपने आदेश में कहा कि सभी तथ्यों से यह जाहिर होता है कि जो घटना हुई, वह सत्य थी. इसके लिए पुलिसकर्मियों को अनुशासनात्मक कार्यवाही से दण्डित किया जा चुका है. अपने आदेश में आयोग ने कहा कि बाल मन एक गीली मिट्टी के समान होता है, जिस पर कोई भी निशान जीवन भर के लिये अंकित हो जाता है.
जांच में सामने आया कि तीन बच्चों को बिना अपराध के लॉकअप में डाल दिया गया. इस कृत्य के लिये पुलिसकर्मियों को तो सजा मिल गयी है, लेकिन जिन तीन बालकों के मानस पटल पर लॉकअप में रहने का बुरा प्रभाव पड़ा है वह विचारणीय है.
आयोग ने कहा कि इन परिस्थितियों में तीनों बालक क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के अधिकारी हैं. आयोग ने आदेश दिया है कि तीनों बालकों में से प्रत्येक को 50-50 हजार रुपये की क्षतिपूर्ति दो माह में दी जाए और यह राशि उन्ही पुलिसकर्मियों से वसूल की जाए, जिन्हें अनुशासनात्मक कार्यवाही में दण्डित किया गया है.