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टीचर्स डे स्पेशल: प्राइवेट शिक्षिका ने सरकारी स्कूल को लिया गोद, बच्चों की बदल गई तकदीर

मनीषा कुछ अलग कर गुजरने के ख्याल से इस सरकारी स्कूल की दशा ही बदल दी. कभी यहां पर पढ़ने वाले बच्चों का अभाव होता था, लेकिन मनीषा के स्कूल को गोद लिए जाने के बाद से यहां पर वो हर सुविधाएं हैं जो किसी प्राइवेट स्कूल में होती हैं.

Teachers' Day Special, टीचर्स डे स्पेशल प्रोग्राम
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Published : Sep 4, 2019, 11:39 PM IST

जयपुर. कहते हैं की बदलाव की शुरुआत एक व्यक्ति से होती है. समाज तभी आगे बढ़ता है आज हम आपको एक ऐसे शिक्षक की कहानी बता रहे हैं जिन्होंने अपने बलबूते सरकारी स्कूल का कायाकल्प ही कर डाला. हालांकि ये शिक्षक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं, लेकिन इन्होंने सरकारी स्कूल की कायाकल्प करने की सोची और कुछ ऐसा कर दिया की इलाके के सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा बन गई.

टीचर्स डे स्पेशल

ये कहानी है मनीषा की जो एक संपन्न परिवार में जन्मी. वैसे तो मनीषा आधुनिक माहौल में पली बढ़ी है लेकिन कुछ अलग कर गुजरने के ख्याल से उन्होंने सरकारी स्कूल की दशा ही बदल दी. स्कूल की हालात देखकर बच्चें स्कूल आने से कतराते थे लेकिन अब स्कूल में बच्चों की संख्या बड़ी है. मनीषा ने चार साल पहले जयपुर के मनोहरपुरा कच्ची बस्ती स्थित सरकारी स्कूल को गोद लिया. स्थानीय लोग बताते है कि कुछ वक्त पहले इस स्कूल में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा था.

ये भी पढ़ें:टीचर्स डे स्पेशल: मिलिए जयपुर की दादी मां से..जो 17 साल से बेसहारा बच्चों को दे रही शिक्षा से सहारा

स्कूल की हालत इतनी खराब थी की यहां पर राह चलते लोग शौचालय के पहुंच जाते थे. पास के गांव के सभी छात्र- छात्राएं स्कूल के ऐसे माहौल में ही पढ़ने को मजबूर थे. मनीषा ने स्कूल के इस हालात को बदलने की ठानी. बिना सरकारी मदद लिए मनीषा ने जन सहयोग से पहले तो स्कूल बाउंड्री वाल का काम कराया ताकि स्कूल कैम्पस असामाजिक तत्वों की गतिविधियां खत्म हो सके.

यहां बच्चे सिखते हैं सेल्फ डिफेंस:
इसके बाद मनीषा ने लॉयन्स क्लब के सहयोग से दो भवन के साथ छात्र-छात्राओं के अलग-अलग टॉयलेट का निर्माण करवाया. इतना ही नहीं मनीषा ने सेल्फ डिफेंस की टीम को अपने साथ जोड़ स्कूली बच्चियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाए. ताकि किसी भी मुश्किल घड़ी का सामना वो आसानी से कर सकें. बच्चों के प्रोत्साहन के लिए कक्षा में अच्छे अंक लाने वाले बच्चों को ईनाम देकर प्रोत्साहित किया ताकि सभी छात्र शिक्षा की ओर अग्रसर हो सके.

स्वच्छ वातावरण बच्चे करते है पढ़ाई:
स्कूल में बच्चों को पढ़ाई के लिए स्वच्छ वातावरण मिल सके इसके लिए मनीषा ने स्कूल कैम्पस में पेड़ लगाए. इतना ही नहीं बच्चों के सेहतमंद रखने के लिए भी मेडिकल कैम्प लगवाए. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के परिवार जन आर्थिक रूप से कमजोर है इसीलिए बच्चों की स्टेशनरी आइटम्स, ड्रेस से लेकर बैग और जूते की व्यवस्था भी मनीषा ने जन सहयोग से करती है. वहीं देश की संस्कृति से रूबरू करवाने के लिए मनीषा समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करवाती है.

कुछ और सरकारी स्कूलों को एक मनीषा का इंतजार:
मनीषा के इस प्रयास ने इस स्कूल के स्वरूप को तो बदल दिया जो कि समाज और अन्य स्कूलों के लिए प्रेरणा बन चुका है. प्रदेश मे हजारों स्कूल आज भी ऐसे है जो सरकार और जिम्मेदार आधिकारियों की अनदेखी के चलते बदहाली की स्थिति में है. इस सभी स्कूलों को एक मनीषा का इंतजार है जो उनकी हालत बदल सके ताकि देश के नौनिहाल वहां जाकर अपना भविष्य संवार सकें.

जयपुर. कहते हैं की बदलाव की शुरुआत एक व्यक्ति से होती है. समाज तभी आगे बढ़ता है आज हम आपको एक ऐसे शिक्षक की कहानी बता रहे हैं जिन्होंने अपने बलबूते सरकारी स्कूल का कायाकल्प ही कर डाला. हालांकि ये शिक्षक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं, लेकिन इन्होंने सरकारी स्कूल की कायाकल्प करने की सोची और कुछ ऐसा कर दिया की इलाके के सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा बन गई.

टीचर्स डे स्पेशल

ये कहानी है मनीषा की जो एक संपन्न परिवार में जन्मी. वैसे तो मनीषा आधुनिक माहौल में पली बढ़ी है लेकिन कुछ अलग कर गुजरने के ख्याल से उन्होंने सरकारी स्कूल की दशा ही बदल दी. स्कूल की हालात देखकर बच्चें स्कूल आने से कतराते थे लेकिन अब स्कूल में बच्चों की संख्या बड़ी है. मनीषा ने चार साल पहले जयपुर के मनोहरपुरा कच्ची बस्ती स्थित सरकारी स्कूल को गोद लिया. स्थानीय लोग बताते है कि कुछ वक्त पहले इस स्कूल में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा था.

ये भी पढ़ें:टीचर्स डे स्पेशल: मिलिए जयपुर की दादी मां से..जो 17 साल से बेसहारा बच्चों को दे रही शिक्षा से सहारा

स्कूल की हालत इतनी खराब थी की यहां पर राह चलते लोग शौचालय के पहुंच जाते थे. पास के गांव के सभी छात्र- छात्राएं स्कूल के ऐसे माहौल में ही पढ़ने को मजबूर थे. मनीषा ने स्कूल के इस हालात को बदलने की ठानी. बिना सरकारी मदद लिए मनीषा ने जन सहयोग से पहले तो स्कूल बाउंड्री वाल का काम कराया ताकि स्कूल कैम्पस असामाजिक तत्वों की गतिविधियां खत्म हो सके.

यहां बच्चे सिखते हैं सेल्फ डिफेंस:
इसके बाद मनीषा ने लॉयन्स क्लब के सहयोग से दो भवन के साथ छात्र-छात्राओं के अलग-अलग टॉयलेट का निर्माण करवाया. इतना ही नहीं मनीषा ने सेल्फ डिफेंस की टीम को अपने साथ जोड़ स्कूली बच्चियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाए. ताकि किसी भी मुश्किल घड़ी का सामना वो आसानी से कर सकें. बच्चों के प्रोत्साहन के लिए कक्षा में अच्छे अंक लाने वाले बच्चों को ईनाम देकर प्रोत्साहित किया ताकि सभी छात्र शिक्षा की ओर अग्रसर हो सके.

स्वच्छ वातावरण बच्चे करते है पढ़ाई:
स्कूल में बच्चों को पढ़ाई के लिए स्वच्छ वातावरण मिल सके इसके लिए मनीषा ने स्कूल कैम्पस में पेड़ लगाए. इतना ही नहीं बच्चों के सेहतमंद रखने के लिए भी मेडिकल कैम्प लगवाए. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के परिवार जन आर्थिक रूप से कमजोर है इसीलिए बच्चों की स्टेशनरी आइटम्स, ड्रेस से लेकर बैग और जूते की व्यवस्था भी मनीषा ने जन सहयोग से करती है. वहीं देश की संस्कृति से रूबरू करवाने के लिए मनीषा समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करवाती है.

कुछ और सरकारी स्कूलों को एक मनीषा का इंतजार:
मनीषा के इस प्रयास ने इस स्कूल के स्वरूप को तो बदल दिया जो कि समाज और अन्य स्कूलों के लिए प्रेरणा बन चुका है. प्रदेश मे हजारों स्कूल आज भी ऐसे है जो सरकार और जिम्मेदार आधिकारियों की अनदेखी के चलते बदहाली की स्थिति में है. इस सभी स्कूलों को एक मनीषा का इंतजार है जो उनकी हालत बदल सके ताकि देश के नौनिहाल वहां जाकर अपना भविष्य संवार सकें.

Intro:नोट- इसका वॉइस ओवर डेस्क से करवाए।


जयपुर- कहते हैं कि बदलाव की शुरुआत एक व्यक्ति से होती है. समाज तभी आगे बढ़ता है जब बदलाव आता है. आज हम आपको एक ऐसे शिक्षक की कहानी बता रहे हैं जिन्होंने अपने बलबूते सरकारी स्कूल का कायाकल्प ही कर दिया। हालांकि ये शिक्षक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं, लेकिन इन्होंने सरकारी स्कूल की कायाकल्प करने की सोची और कुछ ऐसा कर दिया कि वे इलाके के सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा बन गई।

ये कहानी है मनीषा सिंह की जो एक संपन्न परिवार में जन्मी। वैसे तो मनीषा आधुनिक माहौल में पली बढ़ी है लेकिन कुछ अलग कर गुजरने के ख्याल से उन्होने कुछ ऐसा कर सरकारी स्कूल की दशा ही बदल दी। स्कूल की हालात देखकर बच्चें स्कूल आने से कतराते थे आज स्कूल की दशा बदलने से स्कूल में बच्चों की संख्या भी बड़ी है। मनीषा ने चार साल पहले जयपुर के मनोहरपुरा कच्ची बस्ती स्थित सरकारी स्कूल को गोद लिया। आज से कुछ वक्त पहले इस स्कूल में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा था।

स्कूल की हालत इतनी खराब थी की वह राह चलते लोगों के शौचालय के काम आता था। पास के गांव के सभी छात्र- छात्राएं स्कूल के ऐसे माहौल में ही पढ़ने को मजबूर थे। लेकिन मनीषा ने स्कूल के इस हालात को बदलने की ठानी। बिना सरकारी मदद लिए मनीषा ने जन सहयोग से पहले तो स्कूल बाउंड्री वाल का काम कराया ताकि स्कूल कैम्पस में बाहरी ओर असामाजिक तत्वों की गतिविधियां खत्म हो सके।

इसके बाद लॉयन्स क्लब के सहयोग से दो भवन के साथ छात्र-छात्राओं के अलग-अलग टॉयलेट का निर्माण करवाया। इतना ही नहीं मनीषा ने सेल्फ डिफेंस की टीम को अपने साथ जोड़ स्कूली बच्चियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाय ताकि किसी भी मुश्किल घड़ी का सामना वो आसानी से कर सकें। बच्चो के प्रोत्साहन के लिए कक्षा में अच्छे अंक लाने वाले बच्चों को ईनाम देकर प्रोत्साहित किया ताकि सभी छात्र शिक्षा की ओर अग्रसर हो।

स्कूल में बच्चों को पढ़ाई के लिए स्वच्छ वातावरण मिल सके इसके लिए मनीषा ने स्कूल कैम्पस में पेड़ लगाय। इतना ही नहीं बच्चों के सेहतमंद रखने के लिए भी मेडिकल कैम्प लगवाए। स्कूल में पढ़ने आने वाले बच्चों के परिवार जन आर्थिक रूप से कमजोर है इसीलिए बच्चों की स्टेशनरी आइटम्स, ड्रेस से लेकर बैग और जूते की व्यवस्था भी मनीषा जन सहयोग से करती है। वही देश की संस्कृति से रूबरू करवाने के लिए मनीषा समय समय सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करवाती है। इसके साथ ही मनीषा उन्हें खुद पढ़ाती भी है।

Body:मनीषा के इस प्रयास ने एक स्कूल के स्वरूप को तो बदल दिया साथ ही मनीषा एक उदहारण बनकर समाज को प्रेरित भी कर रही है। लेकिन आज भी प्रदेश मे हजारों स्कूले ऐसे है जो सरकार की अनदेखी के चलते बदहाली की स्थिति में है। उनको भी एक मनीषा का इंतजार है जो उनकी हालत बदल सके ताकि देश को नौनिहाल वहा जाकर अपना भविष्य बना सकें।

बाईट- मनीषा सिंहConclusion:
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