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बिना रिसर्च दायर जनहित याचिका को किया जाए खारिज: राज्य सरकार - municipal corporations

राजस्थान हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से नव निर्मित नगर निगमों के गठन को लेकर दायर याचिका की सुनवाई को जवाब पेश किया गया है. जवाब में राज्य सरकार ने कहा है कि, नीतिगत निर्णय लेकर जयपुर नगर निगम को दो भागों में विभाजित कर ग्रेटर और हेरिटेज बनाया है.

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राज्य सरकार ने पेश किया जवाब
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Published : May 26, 2020, 7:56 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से नव सृजित नगर निगमों के गठन को लेकर दायर याचिका में जवाब पेश किया गया है. हाईकोर्ट ने सरकार के जवाब को रिकॉर्ड पर लेते हुए मामले की सुनवाई 29 मई को तय की है. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महान्ति और न्यायाधीश सतीश कुमार शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश प्रिया यादव की ओर से दायर जनहित याचिका पर दिए.

राज्य सरकार और नगर निगम ग्रेटर की ओर से पेश जवाब में कहा गया कि, राज्य सरकार ने नीतिगत निर्णय लेकर जयपुर नगर निगम को दो भागों में विभाजित कर ग्रेटर और हेरिटेज बनाया है. नीतिगत निर्णय होने के कारण अदालत को इसमें दखल देने का अधिकार नहीं है. इसके अलावा याचिकाकर्ता की ओर से बिना रिसर्च किए यह जनहित याचिका दायर की गई है. याचिका में नगर निगमों के गठन पर अतिरिक्त आर्थिक भार की बात कही गई है, लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से बिना आंकड़े जुटाए यह तथ्य पेश किया गया है.

ये पढ़ें: राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व कर्मचारियों को मासिक किश्तों में पेंशन परिलाभ देने का दिया आदेश


राज्य सरकार की ओर से जवाब में यह भी कहा गया कि हाईकोर्ट सतीश कुमार शर्मा के मामले में नवसृजित नगर निगमों के गठन को हरी झंडी दे चुका है. ऐसे में सभी तथ्यों को देखते हुए जनहित याचिका को खारिज किया जाए. वहीं जयपुर ग्रेटर की ओर से पेश जवाब में प्रारंभिक आपत्ति उठाई गई कि मामले में जयपुर नगर निगम को पक्षकार बनाया गया है, लेकिन अब इसका अस्तित्व नहीं है.

ये पढ़ें: संकट में इतिहास के खेवनहार....लॉकडाउन से राव समाज के सामने आर्थिक तंगी

याचिका में कहा गया कि कोरोना महामारी के चलते संक्रमण रोकने के लिए राज्य सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने अपने कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन का बड़ा हिस्सा भी स्थगित किया है. नगर निगम की संख्या बढ़ाने से उनके संसाधन और स्टाफ आदि पर करोड़ों रुपए खर्च होंगे. ऐसे में प्रदेश की वित्तीय स्थिति को देखते हुए नगर निगम के सृजन को लेकर जारी अधिसूचना को सामान्य स्थिति बहाल होने तक स्थगित किया जाए.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से नव सृजित नगर निगमों के गठन को लेकर दायर याचिका में जवाब पेश किया गया है. हाईकोर्ट ने सरकार के जवाब को रिकॉर्ड पर लेते हुए मामले की सुनवाई 29 मई को तय की है. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महान्ति और न्यायाधीश सतीश कुमार शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश प्रिया यादव की ओर से दायर जनहित याचिका पर दिए.

राज्य सरकार और नगर निगम ग्रेटर की ओर से पेश जवाब में कहा गया कि, राज्य सरकार ने नीतिगत निर्णय लेकर जयपुर नगर निगम को दो भागों में विभाजित कर ग्रेटर और हेरिटेज बनाया है. नीतिगत निर्णय होने के कारण अदालत को इसमें दखल देने का अधिकार नहीं है. इसके अलावा याचिकाकर्ता की ओर से बिना रिसर्च किए यह जनहित याचिका दायर की गई है. याचिका में नगर निगमों के गठन पर अतिरिक्त आर्थिक भार की बात कही गई है, लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से बिना आंकड़े जुटाए यह तथ्य पेश किया गया है.

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राज्य सरकार की ओर से जवाब में यह भी कहा गया कि हाईकोर्ट सतीश कुमार शर्मा के मामले में नवसृजित नगर निगमों के गठन को हरी झंडी दे चुका है. ऐसे में सभी तथ्यों को देखते हुए जनहित याचिका को खारिज किया जाए. वहीं जयपुर ग्रेटर की ओर से पेश जवाब में प्रारंभिक आपत्ति उठाई गई कि मामले में जयपुर नगर निगम को पक्षकार बनाया गया है, लेकिन अब इसका अस्तित्व नहीं है.

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याचिका में कहा गया कि कोरोना महामारी के चलते संक्रमण रोकने के लिए राज्य सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने अपने कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन का बड़ा हिस्सा भी स्थगित किया है. नगर निगम की संख्या बढ़ाने से उनके संसाधन और स्टाफ आदि पर करोड़ों रुपए खर्च होंगे. ऐसे में प्रदेश की वित्तीय स्थिति को देखते हुए नगर निगम के सृजन को लेकर जारी अधिसूचना को सामान्य स्थिति बहाल होने तक स्थगित किया जाए.

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