जयपुर. मां एक ऐसा एहसास है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. मां की ममता और प्यार की अहमियत क्या होती है. यह उन लोगों से जाना जा सकता है जिनके सिर पर मां का साया ना हो. एक बच्चे का भविष्य उसकी मां के हाथों में ही होता है. क्योंकि मां की परवरिश और संस्कारों से ही बच्चे के भविष्य की मजबूत नींव का निर्माण होता है.
मदर्स-डे के उपलक्ष में रविवार को ईटीवी भारत की टीम मानसरोवर स्थित अपना घर संस्थान पहुंची और सैकड़ों बच्चों को मां का प्यार और परवरिश देने वाली अपना घर संसार की डायरेक्टर दक्षा पाराशर से खास बातचीत की. अपना घर संस्थान की डायरेक्टर दक्षा पाराशर ने बताया कि यहां पर शहर के अलग-अलग इलाकों से बाल श्रम के नर्क से मुक्त करवाए गए बच्चों को रेस्क्यू करने के बाद लाया जाता है.
उन्होंने बताया कि जिस उम्र में बच्चों को मां का प्यार और परवरिश मिलनी चाहिए उस उम्र में नन्हे बच्चों को बाल श्रम के नरक में धकेल दिया जाता है. ऐसे बच्चों को ना मां का अर्थ पता होता है और ना ही वह मां की अहमियत जानते हैं. लेकिन जब उन्हें अपना घर संस्थान में लाया जाता है और एक मां की ममता उन्हें मिलती है तो वह भी अपने सारे दर्द भूल कर खिलखिला कर मुस्कुराने लगते हैं.
![Apna Ghar Institute, Mothers Day celebration in apna ghar](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/rj-jpr-02-mothers-day-pkg-7203316_10052020144707_1005f_01197_572.jpg)
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वर्तमान समय में अपना घर संस्थान में 30 से ज्यादा बच्चे मौजूद हैं और उन सभी बच्चों का ध्यान और परवरिश करती हैं उनकी 'मां' यानी दक्षा पाराशर. मां का प्यार क्या होता है यह एहसास होने के बाद बच्चों ने केक काटकर रविवार को मदर्स-डे सेलिब्रेट किया. बच्चों का अथाह प्यार पाकर दक्षा पाराशर भी भावुक हो गईं.
![Apna Ghar Institute, Mothers Day celebration in apna ghar](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/rj-jpr-02-mothers-day-pkg-7203316_10052020144707_1005f_01197_486.jpg)
कॉलेज टाइम से बच्चों के लिए कर रहीं कार्य
दक्षा पाराशर ने बताया कि 1987 में जब वह कॉलेज में पढ़ा करती थीं, तब से ही उनके मन में बच्चों के लिए कुछ अच्छा काम करने का जुनून था. उस वक्त भी जो बच्चे उन्हें फुटपाथ पर घूमते मिलते उन्हें वह कॉपी पेन देकर पढ़ाती और होमवर्क करने को देती. जिसके बाद से यह सिलसिला लगातार चलता रहा और फिर बाल श्रम के नर्क से मुक्त करवाए गए बच्चों की जिम्मेदारी दक्षा पाराशर ने उठाई.
दक्षा बताती हैं कि वह सैकड़ों बच्चों की मां हैं और उन्हें यह वरदान भगवान से प्राप्त हुआ है. उन्हें आत्म संतुष्टि होती है जब उनके पास रह कर गया कोई बच्चा पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी पा लेता है और दूसरे बच्चों के लिए प्रेरणा का एक स्त्रोत बनता है.
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दक्षा पाराशर ने बताया कि उनके पास आने वाले बच्चों को वह पढ़ाई का महत्व समझाती हैं और साथ ही उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं. उनके पास रहकर गए कई बच्चे वर्तमान समय में रेलवे में अच्छे पदों पर नौकरी कर रहे हैं, कुछ इंजीनियर हैं तो कुछ डॉक्टर, तो वहीं कुछ लोग कंपटीशन की तैयारी में लगे हुए हैं.
उन्होंने बताया कि जो बच्चे उनके पास आते हैं उनमें से अधिकतर पढ़ना लिखना नहीं जानते हैं. जिन्हें वह खुद अपने हाथों से पढ़ना लिखना सिखाती हैं और फिर वही बच्चे आगे जाकर काफी इंटेलिजेंट निकलते हैं और अच्छे पदों पर नौकरी करते हैं. पढ़ाई लिखाई के साथ ही बच्चों को अच्छे संस्कार भी दिए जाते हैं और बच्चों को सदैव स्वस्थ रहने के लिए योगा और व्यायाम की शिक्षा भी दी जाती है.