जयपुर. सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की पर्याप्तता के कारण जयपुर को ओडीएफ++ का खिताब मिला, लेकिन कई जगहों पर विपरीत हालात भी हैं. शहर में सीवरेज मैनेजमेंट को लेकर पुख्ता नीति तैयार नहीं है. यही वजह है कि आज भी कई जगह सीवरेज मेनहोल उफन पड़ते हैं. शहर में जो भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं, समय के साथ और जनसंख्या की दृष्टि से अब आउटडेटेड हो गए हैं. ऐसे में अब बड़े सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की कवायद शुरू की जा रही हैं.
गुलाबी नगरी के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स को आगामी 20 सालों को देखते हुए अपग्रेड किया जा रहा है. राज्य सरकार की बजट घोषणा के अनुसार डेहलावास में 90 एमएलडी का नया प्लांट बनाया जा रहा है. इसमें एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इसके अलावा वर्तमान में राजधानी में कुल 18 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट संचालित हैं. इनमें से चार नगर निगम प्रशासन जबकि 14 जयपुर विकास प्राधिकरण की निगरानी में संचालित हैं.
नगर निगम प्रशासन की निगरानी में संचालित सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट...
जयपुर विकास प्राधिकरण की निगरानी में संचालित सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट...
ग्रेटर नगर निगम के स्वच्छ सर्वेक्षण नोडल अधिकारी हर्षित वर्मा की मानें तो शहर में जनरेट होने वाले करीब 225 एमएलडी अपशिष्ट की डेली प्रोसेसिंग, जयपुर शहर में बने विभिन्न एसटीपी प्लांट के जरिए की जा रही है. नगर निगम के क्षेत्राधिकार में आने वाले 4 एसटीपी है, जिसकी कैपेसिटी लगभग 185 एमएलडी है और 14 एसटीपी जेडीए के क्षेत्राधिकार में हैं जिनकी कैपेसिटी लगभग 230 एमएलडी है. इसके अलावा डेहलावास में एक यूनिट फिलहाल अपग्रेड की जा रही है. जबकि 229.5 करोड़ की लागत से 90 एमएलडी का नया एसटीपी भी बनाया जा रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए हाल ही में जयपुर को ओडीएफ++ का दर्जा भी दोबारा प्राप्त हुआ है.
जयपुर भले ही स्मार्ट सिटी बनता जा रहा है, भले ही यहां एसटीपी प्लांट्स को अपग्रेड किया जा रहा है, लेकिन यहां के शहरी सीवरेज सिस्टम को भी स्मार्ट बनाने की दरकार है. जनसंख्या बढ़ने के कारण परकोटे का सीवरेज सिस्टम तो पूरी तरह अपडेट होना चाहिए, ताकि सीवरेज मेनहोल शहर की आम जनता के लिए परेशानी का सबब ना बने.