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राजस्थानी साहित्यकार करें बाल साहित्य का सृजन, सरकार द्वितीय भाषा का दे दर्जा : पवन पहाड़िया

राजस्थानी भाषा (Rajasthani Language) को को संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किए जाने से सहित्यकारों में रोष है. वरिष्ठ साहित्यकार पवन पहाड़िया ने इसपर दुख जताया. साथ ही सरकार से मांग की कि राजस्थानी में अधिक से अधिक बाल साहित्य का सृजन करने की अपील की है.

Rajasthani Language  second language status to Rajasthani
Rajasthani Language second language status to Rajasthani
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Published : Sep 12, 2021, 5:48 PM IST

Updated : Sep 12, 2021, 5:55 PM IST

जयपुर. एक समृद्ध भाषा होने के बाद भी राजस्थानी को आज भी अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है. अब तक राजस्थानी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में से दूर है. प्रदेश के जनप्रतिनिधि इस पर चुप्पी साधे हुए हैं. हालांकि, अब राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकारों ने सरकार से उदासीनता को दूर करते हुए राजस्थानी भाषा को द्वितीय भाषा का दर्जा देने की मांग उठाई है. साथ ही राजस्थानी के साहित्यकारों से ज्यादा से ज्यादा बाल साहित्य (children's literature) का सृजन करने की अपील की है.

राजस्थानी भाषा आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है. जिसका वास्तविक क्षेत्र वर्तमान राजस्थान प्रांत तक ही सीमित न होकर मध्य प्रदेश के पूर्वी और दक्षिणी भाग में, यहां तक कि पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों में भी है. यही नहीं अमेरिकन लाइब्रेरी तक ने इस भाषा को सम्मान देते हुए 13 समृद्ध भाषाओं की सूची में रखा था. इसके बावजूद राजस्थानी को अब तक भाषा का दर्जा नहीं मिला. ऑनलाइन हुए आखर कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार पवन पहाड़िया (Senior litterateur Pawan Paharia) ने राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलने पर दुख जताते हुए कहा कि इसका कारण जनचेतना की कमी और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता है. सभी सरकारें साहित्य के प्रति उदासीन हैं. उदासीनता को दूर करने से ही राजस्थानी को मान्यता मिलेगी. इससे राजस्थान के जन-जन को लाभ मिलेगा.

यह भी पढ़ें. युवा हमेशा प्रयास करते रहें, कोशिश ही सफल होती है : गोल्ड मेडलिस्ट कृष्णा नागर

उन्होंने इस संबंध में रास्ता सुझाते हुए कहा कि राजस्थानी के साहित्यकार ज्यादा से ज्यादा बाल साहित्य का सृजन करें. बाल साहित्य की ज्यादा से ज्यादा रचनाएं आएगी तो बच्चों को भी राजस्थानी से जोड़ने में मदद मिलेगी और मान्यता की प्रक्रिया में काफी सहायता मिल जाएगी. वहीं सरकार राजस्थानी भाषा को द्वितीय भाषा का दर्जा दे. इससे राजस्थानी भाषा की रक्षा और विकास करने में मदद मिलेगी और युवाओं को ज्यादा अवसर मिल सकेंगे.

बता दें कि मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, शेखावाटी, हाड़ौती और बागड़ी बोलियों से मिलकर बनी राजस्थानी भाषा (Rajasthani dialect) में विविधता भी है. भाषा वैज्ञानिकों का भी मानना है कि राजस्थानी हिंदी से नहीं निकली बल्कि एक स्वतंत्र अस्तित्व वाली भाषा है. इसके बावजूद आज भी राजस्थानी खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.

जयपुर. एक समृद्ध भाषा होने के बाद भी राजस्थानी को आज भी अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है. अब तक राजस्थानी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में से दूर है. प्रदेश के जनप्रतिनिधि इस पर चुप्पी साधे हुए हैं. हालांकि, अब राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकारों ने सरकार से उदासीनता को दूर करते हुए राजस्थानी भाषा को द्वितीय भाषा का दर्जा देने की मांग उठाई है. साथ ही राजस्थानी के साहित्यकारों से ज्यादा से ज्यादा बाल साहित्य (children's literature) का सृजन करने की अपील की है.

राजस्थानी भाषा आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है. जिसका वास्तविक क्षेत्र वर्तमान राजस्थान प्रांत तक ही सीमित न होकर मध्य प्रदेश के पूर्वी और दक्षिणी भाग में, यहां तक कि पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों में भी है. यही नहीं अमेरिकन लाइब्रेरी तक ने इस भाषा को सम्मान देते हुए 13 समृद्ध भाषाओं की सूची में रखा था. इसके बावजूद राजस्थानी को अब तक भाषा का दर्जा नहीं मिला. ऑनलाइन हुए आखर कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार पवन पहाड़िया (Senior litterateur Pawan Paharia) ने राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलने पर दुख जताते हुए कहा कि इसका कारण जनचेतना की कमी और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता है. सभी सरकारें साहित्य के प्रति उदासीन हैं. उदासीनता को दूर करने से ही राजस्थानी को मान्यता मिलेगी. इससे राजस्थान के जन-जन को लाभ मिलेगा.

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उन्होंने इस संबंध में रास्ता सुझाते हुए कहा कि राजस्थानी के साहित्यकार ज्यादा से ज्यादा बाल साहित्य का सृजन करें. बाल साहित्य की ज्यादा से ज्यादा रचनाएं आएगी तो बच्चों को भी राजस्थानी से जोड़ने में मदद मिलेगी और मान्यता की प्रक्रिया में काफी सहायता मिल जाएगी. वहीं सरकार राजस्थानी भाषा को द्वितीय भाषा का दर्जा दे. इससे राजस्थानी भाषा की रक्षा और विकास करने में मदद मिलेगी और युवाओं को ज्यादा अवसर मिल सकेंगे.

बता दें कि मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, शेखावाटी, हाड़ौती और बागड़ी बोलियों से मिलकर बनी राजस्थानी भाषा (Rajasthani dialect) में विविधता भी है. भाषा वैज्ञानिकों का भी मानना है कि राजस्थानी हिंदी से नहीं निकली बल्कि एक स्वतंत्र अस्तित्व वाली भाषा है. इसके बावजूद आज भी राजस्थानी खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.

Last Updated : Sep 12, 2021, 5:55 PM IST
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