जयपुर. राजधानी के जेएलएन रोड के फुटपाथ पर लगे सुंदर रंग-बिरंगे ये छाते बारिश के दिनों में लोगों की जरूरत में शुमार हो जाते हैं. 50 से लेकर 250 तक बिकने वाला छाता राहगीर के लिए तो बारिश से बचाव का साधन बनता है और इसे बेचने वालों के लिए दो वक्त की रोटी का. ये लोग भले ही छाते रंग-बिरंगे बेचते हो, लेकिन इनकी जिंदगी बैरंग है. इनके सिर पर ना तो छत है और ना ही ओट के लिए दीवार. है तो बस भूख जिसे मिटाने के लिए ये दिन-रात फुटपाथ पर छातों को बेचने के लिए बैठे रहते हैं. तमन्ना इनकी भी है कि किसी घर में रहे, लेकिन आखिर में तिरपाल ही इनकी छत और सहारा बनता है. ये तिरपाल ही इनका आशियाना होता है. इसी के नीचे इनका चूल्हा जलता है.
छाता बनाकर बेचने वाले रमेश ने बताया कि सीजन के अनुसार काम कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर लेते हैं. इन दिनों बारिश का सीजन होने के चलते छाता बनाकर बेच रहे हैं. परिवार में 7 लोग हैं और सभी एक तिरपाल के नीचे जिंदगी गुजर बसर करते हैं. बहुत तमन्ना है कि सिर पर भी छत हो, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं. वहीं 14 साल के सचिन ने बताया कि पैदा होने से लेकर अब तक छत के रूप में सिर्फ तिरपाल को ही देखा है. सचिन का मां प्रिया ने बताया कि छाता बेच करके जो कमाई होती है, उसी से रोटी पानी का गुजारा चलता है. घर बार है नहीं बारिश में तिरपाल ही सहारा बनता है.
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बीते दिनों सरकार बचाने के लिए हर दिन होटल में तकरीबन 12 लाख रुपए खर्च कर दिए गए. ये सिलसिला करीब 34 दिन तक जारी रहा. जिसमें 4 करोड़ से ज्यादा का खर्च हुआ. शायद इस राशि में रमेश, सचिन और प्रिया जैसे ना जाने कितने गरीब लोगों को सिर पर छत मिल सकती थी. लेकिन प्रदेश के माननीय इन्हें छत देने के लिए खर्च करने को तैयार नहीं.