जयपुर. कोरोना वायरस ने हर तबके को प्रभावित किया. कोरोना संक्रमण के साए में बीते एक साल में लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आया. इस दौर का सबसे भयानक पहलू यह है कि कोरोना काल में स्कूल बंद रहने से न केवल बच्चों की पढ़ाई पर नकारात्मक असर हुआ है, बल्कि जरूरतमंद परिवारों के कई बच्चे बाल मजदूरी करने तक को मजबूर हो गए. देखें ये खास रिपोर्ट
मजदूरी की मजबूरी...
कोरोना काल में काम धंधे चौपट होने से कई जरूरतमंद परिवारों के सामने दो जून की रोटी का संकट खड़ा हो गया. ऐसे हालात में कई परिवारों के सामने ऐसे हालात बन गए कि उन्होंने अपने बच्चों को बाल मजदूरी में झोंक दिया. कोरोना काल में करीब साल भर स्कूल बंद रहने के दौरान कई जरूरतमंद परिवारों के बच्चे मजदूरी करने को भी मजबूर हुए हैं.
13 मार्च को बंद हुए थे स्कूल, कॉलेज और कोचिंग...
राजस्थान में कोरोना काल के शुरुआत में प्रदेशभर में 13 मार्च 2020 को केंद्र सरकार की गाइड लाइन की पालना में राज्य सरकार ने स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थानों को 30 मार्च 2020 तक बंद रखने का फैसला लिया था. इसके बाद 19 मार्च को 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं निरस्त करने का आदेश जारी किया. इसी क्रम में 4 अप्रैल को विद्यार्थियों को बिना परीक्षा प्रमोट करने का फैसला लिया.
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कोरोना से मंडराया आर्थिक संकट...
कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते संक्रमण के बीच स्कूल लगातार बंद रहे. हालांकि, कोरोना संक्रमण के आंकड़ों में गिरावट आने के बाद इस साल जनवरी में कक्षा 9 से 12 और फरवरी में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए स्कूल खोल दिए गए हैं. लेकिन, करीब 11 महीने तक स्कूल बंद रहने और कोरोना काल में कई परिवारों के सामने आर्थिक संकट गहराने का असर यह हुआ कि कई बच्चे बाल मजदूरी करने लगे.
काम सीखने के बहाने मजदूरी...
वन स्टॉप क्राइसिस मैनेजमेंट सेंटर फॉर चिल्ड्रन 'स्नेह आंगन' के संचालक विजय गोयल ने बताया कि कोरोना संक्रमण के खतरे का साया लगातार एक साल से मंडरा रहा है. कोरोना के खतरे के कारण स्कूल बंद होने और वापस खुलने के बीच करीब 11 महीने का अंतराल रहा, जो काफी लंबा रहा. इस अवधि में खास तौर पर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कई बच्चे निश्चित रूप से बाल श्रम से जुड़े हैं. सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले कई बच्चों के माता-पिता आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं. ऐसे में इतने दिनों तक जब बच्चे घर में रहे, तो माता-पिता ने भी सोचा होगा कि घर बैठने से अच्छा है कि बच्चा कोई काम सीखे या काम करे. उनका कहना है कि कई बच्चे काम करने के लिए बाल मजदूरी करने लगे, तो कई परिवारों के बच्चे काम सीखने के लिहाज से भी मजदूरी पर जाने लगे थे.
3500 बच्चे किए गए चिह्नित...
विजय गोयल ने बताया कि बीते एक साल में विभिन्न संस्थाओं और पुलिस ने प्रदेश भर से 3500 बच्चों को बाल मजदूरी करते हुए चिह्नित कर रेस्क्यू किया. इनमें से अधिकांश मामलों में पुलिस ने नियोक्ताओं के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की. लेकिन, यह तो वह आंकड़ा है जो किसी न किसी रूप में सामने आ गया है. कई जगह अभी भी ऐसी हैं, जहां काम कर रहे बाल मजदूर किन्हीं कारणों से चिह्नित नहीं किए जा सके हैं. उनका मानना है कि यदि गहराई से खंगाला जाए तो करीब 10 हजार बच्चे ऐसे सामने आ सकते हैं, जो किसी न किसी रूप से बाल मजदूरी से जुड़े हैं. उनका कहना है कि राजस्थान में बड़े पैमाने पर बाहरी राज्यों से बच्चों को लाकर बाल मजदूरी करवाने का भी प्रचलन है.
जागरूक करने की जरूरत...
बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता मनीषा सिंह ने बताया कि महामारी के इस दौर में बच्चों की शिक्षा को खासकर जरूरतमंद परिवारों के बच्चों की शिक्षा को आगे बढ़ाना सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. सरकारी स्कूल संसाधनों की कमी से जूझ रही है. कई ऐसे कारण हैं, जिनके चलते इस आर्थिक सुस्ती के दौर में कई जरूरतमंद परिवारों ने अपने बच्चों को काम पर भेजना शुरू कर दिया. इसके चलते बाल श्रमिकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और भिक्षावृत्ति भी बढ़ी है. यह बहुत दुख की और गंभीर बात है. लंबे समय तक स्कूल बंद रहने का बच्चों पर भी नकारात्मक असर दिखाई दिया है, जो चिंतित करने वाला विषय है. इनके पीछे वजह यही है कि बच्चे और उनके परिजन यही सोचते हैं कि कैसे भी रोजी-रोटी का इंतजाम हो जाए. इसके लिए न केवल सरकार को बल्कि सामाजिक संगठनों और समाज के जागरूक लोगों को भी आगे आकर बच्चों के बचपन को बचाने की मुहिम से जुड़ना चाहिए.