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Gangaur Puja 2022: राजस्थान के इस लोकपर्व की विशेष मान्यताएं, विवाहित महिलाओं और लड़कियों के लिए खास है गणगौर

जयपुर में गणगौर का पर्व पूरे धूमधाम (Gangaur Puja 2022) से मनाया जा रहा है. इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. होलिका दहन के अगले दिन से ही गणगौर की शुरूआत हो जाती (16 day long gangaur puja 2022) है. आइए जानते हैं 16 दिन के गणगौर पूजा की कहानी...

Gangaur puja 2022
गणगौर पूजा 2022
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Published : Apr 4, 2022, 8:50 AM IST

Updated : Apr 4, 2022, 9:30 AM IST

जयपुर. राजस्थान संस्कृति और गंगा जमुनी तहजीब की एक ऐसी विरासत है, जो लंबे समय से चली आ रही है. इसी विरासत के चलते राजस्थान पूरी दुनिया मे अपने रंग बिखेरता है. जयपुर मे इन दिनों गणगौर की धूम है. पति की लंबी उम्र के लिए रखे जाने वाले उपवास और 16 दिन के गणगौर पूजन (celebration of gangaur puja in jaipur) की अपनी अलग ही कहानी है. यहां जानिए गणगौर पूजन के पीछे की कहानी...

लोकउत्सव अपने आप में विरासत: राजस्थान का नाम सुनते ही मन अपने आप ही आनंदित हो उठता है. जहां एक तरफ राजस्थान के बहादुर योद्धाओं की कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है तो वहीं यहां के पर्व-त्योहार और संस्कृति भी अपने आप में अलग ही महत्व रखते हैं. राजस्थानी परंपरा के लोकत्सव अपने आप में एक पुरानी विरासत को संजोए हुए है. गणगौर भी राजस्थान का ऐसा ही एक प्रमुख लोक पर्व है. प्रदेश (16 day long gangaur puja 2022) भर में इन दिनों गणगौर उत्सव की धूम दिखाई दे रही है.

राजस्थान के इस लोकपर्व की विशेष मान्यताएं

गांव देहात से शहर के होटलों में गणगौर की धूम: चैत्र कृष्ण ग्यारस से मनाए जाने वाले गणगौर पर्व की धूम गांव-देहात के कांकड़ से होकर शहर, बस्ती, कॉलोनियों और अब तो होटलों और गार्डनों तक पहुंचने लगी है. जिस स्वर और साधना की जुगलबंदी से ग्रामीण परिवेश जीवंत रहता है, यही रंग बिरंगी छटा इन दिनों राजस्थान के शहरों में भी देखने को मिल रही है. सुहागिनों के मेहंदी से रचे हाथ, नए रंग-बिरंगे परिधान, नाक में नथ, माथे पर दमकता टीका और लकदक श्रृंगार के साथ गणगौर बाबुल के आंगन में छम-छम कर डोलती हैं. बहुओं के महावर रचे पैरों की थिरकन, छनकती पायलें और ढोलक की थाप पर ऐसी झंकार छिड़ती है कि माहौल संगीतमय हो जाता है.

शिव और पार्वती की कहानी है गणगौर: सामाजिक कार्यकर्ता विनीत शेखावत बताती हैं कि होली के दूसरे दिन से गणगौर की पूजा शुरू हो जाती है. 'गण' का अर्थ है शिव और 'गौर' का अर्थ गौरी या पार्वती. गणगौर पर्व का संबंध शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना से है. गौर अर्थात पार्वती का एक नाम रणुबाई भी है. रणुबाई का मायका मालवा और ससुराल राजस्थान में था. उनका मन मालवा में इतना रमता कि ससुराल रास ही नहीं आता था, लेकिन विवाह के बाद उन्हें ससुराल जाना पड़ा. होली पर जब वो पहली बार मायके आई तो वो तब तक ससुराल नहीं गई जब तक शिव उन्हें लेने नहीं आए. शिव से दूर पार्वती उनकी उम्र की कामना के लिए मिट्टी की गणगौर बना कर पूजा करती थी. जब शिव 16 दिन बाद पार्वती को लेने आए तो मालवा की महिलाओं ने इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया था. तभी से यह पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है.

पढ़ें-चैत्र नवरात्रि में मां ब्रह्मचारिणी की उपासना, ब्रह्मचर्य पालन की मिलती है प्रेरणा

फूलपाती का पर्व से जुड़ा महत्व: हंसा राठौड़ बताती हैं कि चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाए जाने वाले इस उत्सव से फूलपाती का पर्व भी जुड़ा है. महिलाएं और कुंवारी युवतियां परंपरागत गीत गाती हैं, नदी, तालाब, कुंओं या बाग-बगीचों तक जाती हैं. वहां से कलश या लोटे में जल भरकर और फूल-पत्तियों से उसे सजाकर लेकर आती हैं, जिससे सुख-समृद्धि की कामना जुड़ी है. इसके बाद हरी घांस पत्तियों को हाथ में लेकर गीतों के साथ गणगौर पूजा की जाती है.

हंसा बताती हैं कि राजस्थान की महिलाएं चाहे दुनिया के किसी भी कोने में हों, गणगौर के पर्व को पूरे उत्साह के साथ मनाती हैं. विवाहिता हो या कुंवारी सभी आयु वर्ग की महिलाएं गणगौर की पूजा करती हैं. होली के दूसरे दिन से सोलह दिनों तक लड़कियां प्रतिदिन प्रातः काल ईसर-गणगौर को पूजती हैं. जिस लड़की की शादी हो जाती है वो शादी के प्रथम वर्ष अपने पीहर जाकर गणगौर की पूजा करती है. इसी कारण इसे सुहागपर्व भी कहा जाता है. कहा जाता है कि चैत्र शुक्ला तृतीया को राजा हिमाचल की पुत्री गौरी का विवाह शंकर भगवान के साथ हुआ था. उसी की याद में यह त्योहार मनाया जाता है.

xgangaur puja in rajasthan
गणगौर पूजा के दिन महिलाएं करती हैं 16 श्रृंगार

पढ़ें-16 दिवसीय गणगौर पूजन की शुरूआत, 4 अप्रैल को मनाया जाएगा महोत्सव

राजस्थान में गणगौर का विशेष महत्व: गणगौर पर्व पर विवाह के समस्त नेगाचार और रस्में की जाती है. राजधानी जयपुर में भी गणगौर उत्सव दो दिन तक धूमधाम से मनाया जाता है. सरकारी कार्यालयों में आधे दिन का अवकाश दिया जाता है. ईसर और गणगौर की प्रतिमाओं की शोभायात्रा राजमहल से निकलती है, जिनको देखने बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैनानी उमड़ते हैं. इसके साथ घर-घर, कॉलोनियों और होटलों में भी इस पर्व का आयोजन किया जाता है.

इस साल जयपुर में शिल्पी फाउंडेशन की से गणगौर उत्सव का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में स्पेशल गेस्ट के तौर पर पहुंची मिसेज एशिया इंटरनेशनल डॉ. अनुपम सोनी ने कहा कि गणगौर का हमारे जीवन मे बड़ा महत्व है. इस तरह के प्रोग्राम के जरिए हमारी आने वाली पीढ़ी भी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ती है. अनुपमा ने कहा कि इस उत्सव पर एकत्रित सभी जिस श्रृद्धा और भक्ति के साथ धार्मिक अनुशासन में बंधी गणगौर उत्सव के साथ सांस्कृतिक परंपरा का निर्वाह कर रही हैं, उसे देख कर अन्य धर्मावलंबी भी इस संस्कृति के प्रति श्रृद्धा भाव से ओतप्रोत हो जाते हैं.

विधि-विधान से होता है गणगौर का पूजन: शिल्पी फाउंडेशन की ब्रांड एंबेसडर श्वेता मेहता मोदी ने कहा कि होलिका दहन के दूसरे दिन गणगौर पूजने वाली लड़कियां होली दहन की राख लाकर उसके आठ पिण्ड बनाती हैं. इसके अलावा आठ पिण्ड गोबर के भी बनाती हैं. उन्हें दूब पर रखकर प्रतिदिन पूजा उसकी पूजा की जाती है. दीवार पर एक काजल और एक रोली का टिका लगाती हैं. शीतलाष्टमी तक इन पिण्डों को पूजा जाता है. इसके बाद मिट्टी से ईसर गणगौर की मूर्तियां बनाई जाती हैं.

प्रातः ब्रह्ममुहुर्त में गणगौर पूजते हुए गीत गाया जाता है, गणगौर की कहानी सुनी जाती है. दोपहर को गणगौर का भोग लगाया जाता है और कुंए से पानी लाकर पिलाया जाता है. लड़कियां कुंए से ताजा पानी लेकर गीत-गाती हुई आती हैं. गणगौर विसर्जन के पहले दिन गणगौर का श्रृंगार किया जाता है. युवतियां मेहंदी रचाती हैं. नए कपड़े पहनती हैं, घर में पकवान बनाए जाते हैं. सत्रहवें दिन नदी, तालाब, कुंए, बावड़ी में ईसर गणगौर को विसर्जित कर विदाई देती हुई दुःखी होकर गाती हैं.

पढ़ें-Chaitra Navratra 2022: शिला माता मंदिर में 2 साल बाद फिर गूंजे जयकारे, 9 दिनों तक होगी शक्ति की आराधना

गणगौर त्योहार लेकर चली जाती है: गणगौर की विदाई का बाद कई महीनों तक त्योहार नहीं आते. इसलिए कहा गया है-’’तीज त्योहारा बावड़ी ले डूबी गणगौर’’. अर्थात् जो त्योहार तीज (श्रावणमास) से प्रारंभ होते हैं, उन्हें गणगौर ले जाती है. ईसर-गणगौर को शिव पार्वती का रूप मानकर ही बालाएं उनका पूजन करती हैं. गणगौर के बाद बसंत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म ऋृतु की शुरुआत होती है.

लोकोत्सवों को जीवंत रखने की जिम्मेदारी: शिल्पी फाउंडेशन की अध्यक्ष शिल्पी अग्रवाल ने बताया कि राजस्थान को देव भूमि कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा. सम्प्रदाय यहां वैचारिक दृष्टि से फले-फूले हैं. उन सब में परस्पर सहिष्णुता और एक दूसरे के उपास्य देवों के प्रति सहज सम्मान का भाव रहा है. यहां सभी उत्सव बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं. गणगौर का उत्सव भी ऐसा ही लोकोत्सव है. हमें आज आवश्यकता है इस लोकोत्सव को अच्छे वातावरण में मनाएं.

यूथ जनरेशन को भी हम हमारी परम्पराओं और संस्कृति से जोड़ कर रख सकें. इस लिए फाउंडेशन पिछले 7 साल से गणगौर उत्सव इसी तरह से मानता आ रहा है. शिल्पी ने कहा कि आज के व्यस्त जीवन में भी महिलाएं सोलह श्रृंगार से सज-धजकर पर्व को परंपरागत तरीके से उल्लासपूर्वक मनाती हैं. हालांकि परिवर्तन संसार का नियम है, लेकिन राजस्थान में इस पर्व के मनाने के तरीकों में कोई खास बदलाव नहीं आया है. बल्कि गांव ढाणी निकल कर शहरों की तंग गलियों पहुंच गया है. यही वजह है की राजस्थान आज भी अपनी परंपरागत संस्कृति के लिए जाना जाता है.

जयपुर. राजस्थान संस्कृति और गंगा जमुनी तहजीब की एक ऐसी विरासत है, जो लंबे समय से चली आ रही है. इसी विरासत के चलते राजस्थान पूरी दुनिया मे अपने रंग बिखेरता है. जयपुर मे इन दिनों गणगौर की धूम है. पति की लंबी उम्र के लिए रखे जाने वाले उपवास और 16 दिन के गणगौर पूजन (celebration of gangaur puja in jaipur) की अपनी अलग ही कहानी है. यहां जानिए गणगौर पूजन के पीछे की कहानी...

लोकउत्सव अपने आप में विरासत: राजस्थान का नाम सुनते ही मन अपने आप ही आनंदित हो उठता है. जहां एक तरफ राजस्थान के बहादुर योद्धाओं की कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है तो वहीं यहां के पर्व-त्योहार और संस्कृति भी अपने आप में अलग ही महत्व रखते हैं. राजस्थानी परंपरा के लोकत्सव अपने आप में एक पुरानी विरासत को संजोए हुए है. गणगौर भी राजस्थान का ऐसा ही एक प्रमुख लोक पर्व है. प्रदेश (16 day long gangaur puja 2022) भर में इन दिनों गणगौर उत्सव की धूम दिखाई दे रही है.

राजस्थान के इस लोकपर्व की विशेष मान्यताएं

गांव देहात से शहर के होटलों में गणगौर की धूम: चैत्र कृष्ण ग्यारस से मनाए जाने वाले गणगौर पर्व की धूम गांव-देहात के कांकड़ से होकर शहर, बस्ती, कॉलोनियों और अब तो होटलों और गार्डनों तक पहुंचने लगी है. जिस स्वर और साधना की जुगलबंदी से ग्रामीण परिवेश जीवंत रहता है, यही रंग बिरंगी छटा इन दिनों राजस्थान के शहरों में भी देखने को मिल रही है. सुहागिनों के मेहंदी से रचे हाथ, नए रंग-बिरंगे परिधान, नाक में नथ, माथे पर दमकता टीका और लकदक श्रृंगार के साथ गणगौर बाबुल के आंगन में छम-छम कर डोलती हैं. बहुओं के महावर रचे पैरों की थिरकन, छनकती पायलें और ढोलक की थाप पर ऐसी झंकार छिड़ती है कि माहौल संगीतमय हो जाता है.

शिव और पार्वती की कहानी है गणगौर: सामाजिक कार्यकर्ता विनीत शेखावत बताती हैं कि होली के दूसरे दिन से गणगौर की पूजा शुरू हो जाती है. 'गण' का अर्थ है शिव और 'गौर' का अर्थ गौरी या पार्वती. गणगौर पर्व का संबंध शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना से है. गौर अर्थात पार्वती का एक नाम रणुबाई भी है. रणुबाई का मायका मालवा और ससुराल राजस्थान में था. उनका मन मालवा में इतना रमता कि ससुराल रास ही नहीं आता था, लेकिन विवाह के बाद उन्हें ससुराल जाना पड़ा. होली पर जब वो पहली बार मायके आई तो वो तब तक ससुराल नहीं गई जब तक शिव उन्हें लेने नहीं आए. शिव से दूर पार्वती उनकी उम्र की कामना के लिए मिट्टी की गणगौर बना कर पूजा करती थी. जब शिव 16 दिन बाद पार्वती को लेने आए तो मालवा की महिलाओं ने इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया था. तभी से यह पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है.

पढ़ें-चैत्र नवरात्रि में मां ब्रह्मचारिणी की उपासना, ब्रह्मचर्य पालन की मिलती है प्रेरणा

फूलपाती का पर्व से जुड़ा महत्व: हंसा राठौड़ बताती हैं कि चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाए जाने वाले इस उत्सव से फूलपाती का पर्व भी जुड़ा है. महिलाएं और कुंवारी युवतियां परंपरागत गीत गाती हैं, नदी, तालाब, कुंओं या बाग-बगीचों तक जाती हैं. वहां से कलश या लोटे में जल भरकर और फूल-पत्तियों से उसे सजाकर लेकर आती हैं, जिससे सुख-समृद्धि की कामना जुड़ी है. इसके बाद हरी घांस पत्तियों को हाथ में लेकर गीतों के साथ गणगौर पूजा की जाती है.

हंसा बताती हैं कि राजस्थान की महिलाएं चाहे दुनिया के किसी भी कोने में हों, गणगौर के पर्व को पूरे उत्साह के साथ मनाती हैं. विवाहिता हो या कुंवारी सभी आयु वर्ग की महिलाएं गणगौर की पूजा करती हैं. होली के दूसरे दिन से सोलह दिनों तक लड़कियां प्रतिदिन प्रातः काल ईसर-गणगौर को पूजती हैं. जिस लड़की की शादी हो जाती है वो शादी के प्रथम वर्ष अपने पीहर जाकर गणगौर की पूजा करती है. इसी कारण इसे सुहागपर्व भी कहा जाता है. कहा जाता है कि चैत्र शुक्ला तृतीया को राजा हिमाचल की पुत्री गौरी का विवाह शंकर भगवान के साथ हुआ था. उसी की याद में यह त्योहार मनाया जाता है.

xgangaur puja in rajasthan
गणगौर पूजा के दिन महिलाएं करती हैं 16 श्रृंगार

पढ़ें-16 दिवसीय गणगौर पूजन की शुरूआत, 4 अप्रैल को मनाया जाएगा महोत्सव

राजस्थान में गणगौर का विशेष महत्व: गणगौर पर्व पर विवाह के समस्त नेगाचार और रस्में की जाती है. राजधानी जयपुर में भी गणगौर उत्सव दो दिन तक धूमधाम से मनाया जाता है. सरकारी कार्यालयों में आधे दिन का अवकाश दिया जाता है. ईसर और गणगौर की प्रतिमाओं की शोभायात्रा राजमहल से निकलती है, जिनको देखने बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैनानी उमड़ते हैं. इसके साथ घर-घर, कॉलोनियों और होटलों में भी इस पर्व का आयोजन किया जाता है.

इस साल जयपुर में शिल्पी फाउंडेशन की से गणगौर उत्सव का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में स्पेशल गेस्ट के तौर पर पहुंची मिसेज एशिया इंटरनेशनल डॉ. अनुपम सोनी ने कहा कि गणगौर का हमारे जीवन मे बड़ा महत्व है. इस तरह के प्रोग्राम के जरिए हमारी आने वाली पीढ़ी भी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ती है. अनुपमा ने कहा कि इस उत्सव पर एकत्रित सभी जिस श्रृद्धा और भक्ति के साथ धार्मिक अनुशासन में बंधी गणगौर उत्सव के साथ सांस्कृतिक परंपरा का निर्वाह कर रही हैं, उसे देख कर अन्य धर्मावलंबी भी इस संस्कृति के प्रति श्रृद्धा भाव से ओतप्रोत हो जाते हैं.

विधि-विधान से होता है गणगौर का पूजन: शिल्पी फाउंडेशन की ब्रांड एंबेसडर श्वेता मेहता मोदी ने कहा कि होलिका दहन के दूसरे दिन गणगौर पूजने वाली लड़कियां होली दहन की राख लाकर उसके आठ पिण्ड बनाती हैं. इसके अलावा आठ पिण्ड गोबर के भी बनाती हैं. उन्हें दूब पर रखकर प्रतिदिन पूजा उसकी पूजा की जाती है. दीवार पर एक काजल और एक रोली का टिका लगाती हैं. शीतलाष्टमी तक इन पिण्डों को पूजा जाता है. इसके बाद मिट्टी से ईसर गणगौर की मूर्तियां बनाई जाती हैं.

प्रातः ब्रह्ममुहुर्त में गणगौर पूजते हुए गीत गाया जाता है, गणगौर की कहानी सुनी जाती है. दोपहर को गणगौर का भोग लगाया जाता है और कुंए से पानी लाकर पिलाया जाता है. लड़कियां कुंए से ताजा पानी लेकर गीत-गाती हुई आती हैं. गणगौर विसर्जन के पहले दिन गणगौर का श्रृंगार किया जाता है. युवतियां मेहंदी रचाती हैं. नए कपड़े पहनती हैं, घर में पकवान बनाए जाते हैं. सत्रहवें दिन नदी, तालाब, कुंए, बावड़ी में ईसर गणगौर को विसर्जित कर विदाई देती हुई दुःखी होकर गाती हैं.

पढ़ें-Chaitra Navratra 2022: शिला माता मंदिर में 2 साल बाद फिर गूंजे जयकारे, 9 दिनों तक होगी शक्ति की आराधना

गणगौर त्योहार लेकर चली जाती है: गणगौर की विदाई का बाद कई महीनों तक त्योहार नहीं आते. इसलिए कहा गया है-’’तीज त्योहारा बावड़ी ले डूबी गणगौर’’. अर्थात् जो त्योहार तीज (श्रावणमास) से प्रारंभ होते हैं, उन्हें गणगौर ले जाती है. ईसर-गणगौर को शिव पार्वती का रूप मानकर ही बालाएं उनका पूजन करती हैं. गणगौर के बाद बसंत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म ऋृतु की शुरुआत होती है.

लोकोत्सवों को जीवंत रखने की जिम्मेदारी: शिल्पी फाउंडेशन की अध्यक्ष शिल्पी अग्रवाल ने बताया कि राजस्थान को देव भूमि कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा. सम्प्रदाय यहां वैचारिक दृष्टि से फले-फूले हैं. उन सब में परस्पर सहिष्णुता और एक दूसरे के उपास्य देवों के प्रति सहज सम्मान का भाव रहा है. यहां सभी उत्सव बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं. गणगौर का उत्सव भी ऐसा ही लोकोत्सव है. हमें आज आवश्यकता है इस लोकोत्सव को अच्छे वातावरण में मनाएं.

यूथ जनरेशन को भी हम हमारी परम्पराओं और संस्कृति से जोड़ कर रख सकें. इस लिए फाउंडेशन पिछले 7 साल से गणगौर उत्सव इसी तरह से मानता आ रहा है. शिल्पी ने कहा कि आज के व्यस्त जीवन में भी महिलाएं सोलह श्रृंगार से सज-धजकर पर्व को परंपरागत तरीके से उल्लासपूर्वक मनाती हैं. हालांकि परिवर्तन संसार का नियम है, लेकिन राजस्थान में इस पर्व के मनाने के तरीकों में कोई खास बदलाव नहीं आया है. बल्कि गांव ढाणी निकल कर शहरों की तंग गलियों पहुंच गया है. यही वजह है की राजस्थान आज भी अपनी परंपरागत संस्कृति के लिए जाना जाता है.

Last Updated : Apr 4, 2022, 9:30 AM IST
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