जयपुर. राजस्थान में लोकेशन है, संस्कृति है, कलाकार हैं फिर भी राजस्थानी फिल्म उद्द्योग धीरे धीरे खत्म होने की कगार पर है. प्रदेश में लंबे समय से कोई बड़ी राजस्थानी फिल्म नहीं बनी जिसने सिनेमा जगत में पहचान बनाई हो. एक वक्त था तब बाईचाली सासरिए , नानीबाई को मायरो, भोमली जैसी फिल्मों ने इंडस्ट्री में अपना लोहा मनवाया था. लेकिन अब यही राजस्थानी फिल्म जगत सिमटता जा रहा है. ऐसे में अब प्रदेश के कलाकार गहलोत सरकार के 2022-23 के बजट (Rajasthani Cinema And Budget 2022) की ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं.
इच्छाशक्ति हो तो सब मुमकिन: राजस्थानी फिल्म से जुड़े लोगों की डिमांड है कि सरकार बजट में राजस्थानी उद्योग (Rajasthani Film Industry And State Government) को बढ़ावा देने के लिए विशेष राहत पैकेज की घोषणा करे. मांग है कि पैकेज के तहत एक फिल्म सिटी की भी नींव रखी जाए. मॉडल और एक्ट्रेस श्वेता मेहता मोदी को इसी बात की उम्मीद है. कहती हैं कि इस बजट में फ़िल्म सिटी की सौगात मिल जाये तो कलाकरों को एक बड़ा प्लेट फार्म मिल सकता है.
राजस्थान में न कला-संस्कृति की कमी है , ना लोकेशन की और न ही कलाकारों की. बस जरूरत है सरकार की इच्छाशक्ति की ताकि अपना अस्तित्व खोज रहे इस राजस्थानी फिल्म जगत को एक बार फिर पहचान मिले सके.
हमें एक अच्छे प्लेटफॉर्म की जरूरत: एक्ट्रेस लीना शर्मा मानती हैं (Rajasthani Cinema Expectation from Rajasthan Budget 2022) कि राजस्थानी कलाकारों को एक प्लेटफॉर्म की शिद्दत से तलाश है. राजस्थानी अदाकारों को एक मंच नही मिल पा रहा है , जिसकी उसे बहुत ज्यादा जरूरत है . लीना कहती हैं कि राजस्थान के कलाकारों कोई टेलेंट की कमी नहीं है यहां पर जो टैलेंट है , उसको बॉलीवुड के लोग भी मानते हैं. उन्हें जब भी आर्टिस्ट्स की जरूरत होती है तो राजस्थानी कलाकारों को लेते हैं. वो तो हमें पहचानते हैं लेकिन हमारी गवर्नमेंट की तरफ से क्या? सरकार तो इस दिशा में कोई काम ही नही कर रही है.
हमारे पास संस्कृति, भाषा है- क्या नही है हमारे पास. राजस्थानी फिल्म इंडस्ट्रीज को प्रमोट करने के लिए सरकार को चाहिए कि फ़िल्म सिटी बने ताकि हम राजस्थान संस्कृति को प्रमोट कर सके. हम देखते हैं कि अन्य स्टेट साउथ, यूपी में सरकार इतना स्थानीय फ़िल्म इंडस्ट्रीज को प्रमोट करते हैं. आज वहां के कलाकार दूसरे राज्य पर निर्भर नहीं हैं. वहां की इंडस्ट्री ने बॉम्बे को पीछे छोड़ दिया , लेकिन राजस्थान में ऐसा नहीं है. सरकार को चाहिए कि वह इस बजट में कुछ ऐसी घोषणा करे जिससे यहां के कलाकारों को काम मिल सके.
लीना कहती हैं कि सरकार को इस बजट में सब्सिडी बढ़ा कर 25 से 30 परसेन्ट करे या लोकेशन को राजस्थानी फिल्मों के लिए फ्री करे. जैसे अन्य राज्यों में हैं.
'घोषणाएं होती हैं, सरकार बदल जाती हैं और सब बेकार': फ़िल्म मेकर विजय कहते कि सरकार जिस तरह की घोषणा करती है उसको इंप्लीमेंट नहीं कर पाती है. जब भी सरकार घोषणा करती है दूसरी सरकार बदल देती है. कलाकार सरकार के सामने अपनी समस्या लेकर जाता है तो कमेटियां बना दी जाती हैं. लेकिन कमेटियां समस्या को समाधान कर उसको धरातल पर काम नहीं करती हैं. उन्होंने कहा कि 2016 में जब हम अलग प्रोजेक्ट को लेकर आए तो यहां पर सरकार का कोई सपोर्ट नहीं मिला.
बॉलीवुड की स्टार कास्ट के साथ में हमने हमें अच्छी तरीके से फिल्म तैयार की , लेकिन उसको अब तक उसको सब्सिडी नही दी गई . मतलब सरकार को इसमें गंभीरता से काम करने की जरूरत है यहां के कलाकरों को यहां पर काम नही मिलता इस लिए उन्हें बाहर जाना पड़ता है .
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ऐसा करें तो होगा भला: राजस्थानी फिल्म मेकर नरेंद्र सिंह मीणा ने कहा कि राजस्थान के सिनेमा के लिए मुंबई के कलाकारों ने काम किया. गोविंदा ने काम किया , लेकिन आज उसी इंडस्ट्री को हाशिए पर रखा जा रहा है . इसे उबारने की जिम्मेदारी सरकार की है. काम करने की जरूरत है. सरकार को लोकेशन के खर्चे को फ्री करना चाहिए, यहां के सिनेमाघरों में राजस्थानी भाषा की फिल्मों को अनिवार्य करना चाहिए.
फिल्मसिटी से कई लोगों को मिलेगा लाभ: इसके साथ राजस्थान में फिल्म सिटी की सबसे ज्यादा जरूरत है , अगर राजस्थान में फ़िल्मसिटी बनती है तो लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इसका लाभ मिलेगा.जब तक राजस्थानी फिल्मों को अधिक से अधिक पर्दों पर नहीं दिखाया जाएगा , तब तक राजस्थानी कलाकारों को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा. मीणा गुजरे वक्त को याद करते हैं. कहते हैं- राजस्थानी सिनेमा पहले अपनी एक अलग पहचान रखता था, लेकिन वक्त के साथ-साथ अब वह अपनी पहचान खोता जा रहा है. इसके पीछे का कारण सिर्फ एक है कि हम हिंदी फिल्मों की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं.