जयपुर. राजस्थान पुलिस अब खुद को डिजिटली अपग्रेड कर रही है. इसके तहत प्रदेश के प्रत्येक थाने में गिरफ्तार किए जाने वाले आरोपी के फिंगरप्रिंट, फोटो और उसकी तमाम जानकारी का डेटाबेस तैयार किया जा रहा है. प्रदेश में ऐसा पहली बार हो रहा है जब आरोपियों की सारी जानकारी को डिजिटली सेव किया जा रहा है. इसके जरिए पुलिसकर्मी किसी भी बदमाश की जानकारी महज एक क्लिक से प्राप्त कर सकेंगे.
स्टेट क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से वर्ष 2022 में सभी पुलिस थानों में अपराधियों का डिजिटली डेटाबेस तैयार (Police to Store information of Criminals digitally) करने की योजना लागू की गई. इस योजना की शुरुआत सितंबर माह से की गई है. प्रदेश के कुछ चुनिंदा एसपी कार्यालयों में फिंगरप्रिंट, स्कैनर, कैमरा और अन्य उपकरण मुहैया करवाए गए हैं.
ऐसे तैयार किया जा रहा अपराधियों का डेटाबेस : डीसीपी क्राइम परिस देशमुख ने (Digital database of Criminals in Rajasthan) बताया कि एससीआरबी की ओर से जयपुर पुलिस कमिश्नरेट को दो मशीनें उपलब्ध करवाई गई हैं. इसके जरिए अपराधियों का डिजिटल डेटाबेस तैयार किया जा रहा है. यह दोनों मशीनें कोर्ट के पास स्थित डीसीपी नॉर्थ व डीसीपी वेस्ट कार्यालय में लगाई गई हैं. जयपुर के किसी भी थाने में किसी आरोपी को गिरफ्तार किया जाता है, उसे कोर्ट में पेश करने से पहले डीसीपी नॉर्थ या डीसीपी वेस्ट कार्यालय में लाया जाता है.
यहां उसके दोनों हाथों के फिंगरप्रिंट, आरोपी की फोटो व अन्य जानकारी कंप्यूटर में सेव की जाती है. आरोपी की एक-एक उंगली को स्कैनर के जरिए स्कैन कर उसके डिजिटल फिंगरप्रिंट स्टोर किए जाते हैं. इसके बाद कंप्यूटर में सेव की गई जानकारी को राजस्थान पुलिस के सेंट्रलाइज डेटाबेस सिस्टम में सेव कर दिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में महज 5 से 10 मिनट का समय लगता है.
पहले फिंगरप्रिंट स्टोर करने में लग जाता था एक घंटा : राजस्थान पुलिस अब तक गिरफ्तार किए गए आरोपियों (Digital Equipments set up in Police stations) के फिंगरप्रिंट को अंग्रेजों के समय से चली आ रही पद्धति के आधार पर कागजों में संरक्षित किया करती थी. इसमें गिरफ्तार किए गए आरोपी को फिंगरप्रिंट को ब्यूरो कार्यालय लाया जाता था. यहां एक विशेषज्ञ एक काले स्लैब पर चिपचिपा जेल लगाता था, जिसपर आरोपी की उंगलियों को रखने से पहले एक मोटी काली डाई लगाई जाती थी.
आरोपी की उंगलियों को अच्छी तरह से डाई में भिगोने के बाद विशेषज्ञ एक सफेद चादर (सर्च शीट) पर आरोपी की उंगलियां रखकर फिंगरप्रिंट लेते थे. कई बार सर्च शीट पर फिंगरप्रिंट की छाप सही नहीं आती तो इस पूरी प्रक्रिया को दोहराया जाता था. वहीं समय के साथ-साथ कागज पर लिए गए फिंगरप्रिंट धुंधले या अस्पष्ट होने लग जाते है. फिलहाल जिन आरोपियों का डेटा कागजों में संरक्षित है उन्हें भी स्कैनर के जरिए पुलिस अपने सेंट्रलाइज डेटाबेस में डिजिटली सेव करने की तैयारी कर रही है.
पढ़ें. SPECIAL : अलवर पुलिस को मिलेंगे अत्याधुनिक हथियार और वाहन...अपराध पर नकेल कसने की तैयारी
डिजिटल फिंगरप्रिंट का यह होगा फायदा : डीसीपी क्राइम परिस देशमुख ने (Advantage of Digital Fingerprint database) बताया कि अपराधियों का डिजिटल फिंगरप्रिंट डेटाबेस तैयार करने के बाद पुलिस को काफी फायदा होगा. राजधानी जयपुर में यदि कोई वारदात होती है और घटनास्थल से लिए गए फिंगरप्रिंट में अपराधी किसी दूसरे जिले का आईडेंटिफाई होता है तो उस अपराधी की सारी जानकारी पुलिस के पास पहले से मौजूद होगी. ऐसे में उसके खिलाफ जल्द एक्शन लिया जा सकेगा.
जहां पुलिस को पहले अपराधी को आईडेंटिफाई करने में समय लगता था, वह समय अब कम होगा. पुलिस जल्द अपराधी तक पहुंच सकेगी. महज एक क्लिक में अपराधी की पूरी जानकारी पुलिस के पास उपलब्ध होगी. वहीं आदतन अपराधी जो लगातार चोरी, नकबजनी, लूट, डकैती व अन्य तरह के संगठित अपराधों में शामिल रहते हैं, उनके खिलाफ तुरंत एक्शन लिया जा सकेगा.