जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एसीबी कोर्ट के प्रसंज्ञान आदेश और कार्रवाई को रद्द कर दिया है. न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा ने यह आदेश लालचंद असवाल की आपराधिक याचिका को मंजूर करते हुए दिए. कोर्ट ने गत 31 जनवरी को फैसला सुरक्षित किया था.
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उससे ना तो कोई रिकवरी हुई थी और ना ही डिमांड के कोई सबूत हैं. जिस एक्सईएन पुरुषोत्तम जेसवानी को 46 फाइलों और 15 लाख रुपयों के साथ गिरफ्तार किया था, उसने पहले तो राशि स्वयं की बताई थी और एसीबी चौकी ले जाए जाने के बाद राशि असवाल को देने के लिए बात कह दी थी. इससे साफ है कि उसके बयानों में एकरूपता नहीं है. जेसवानी से बरामद 46 फाईलें जिन ठेकेदारों की बताई थी, उन्हें एसीबी ने ना तो गवाह बनाया और ना ही आरोपी.
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वहीं एसीबी के अनुसार जेसवानी से बरामद 15 लाख रुपए उन्हीं ठेकेदारों से लिए गए थे, जिनकी फाइलें जेसवानी क्लियर कराने के लिये असवाल के पास ले जा रहा था. इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि असवाल को देने के लिए जेसवानी ने ठेकेदारों से राशि वसूली थी या नहीं.
साथ ही एसीबी यह साबित नहीं कर पाई कि आखिर जेसवानी से बरामद 15 लाख रुपए आए कहां से थे. इसलिए ही एसीबी की ओर से दायर पहली चार्जशीट में असवाल का नाम नहीं था. वहीं राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि असवाल नगर निगम के सीईओ थे और इसलिए इस बात की पूरी संभावना है, कि जेसवानी से बरामद राशि उन्ही के लिए वसूली गई थी.
ये था पूरा मामला
मामले के अनुसार 10 अगस्त 2014 को एसीबी ने जयपुर नगर निगम के एक्सईएन पुरुषोत्तम जेसवानी को निगम के तत्कालीन सीईओ लालचंद असवाल के घर के बाहर से 15 लाख रुपए और निगम के ठेकेदारों के काम से संबंधित 46 फाईलों के साथ गिरफ्तार किया था. एसीबी ने 11 अगस्त 2014 को जेसवानी और असवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. लंबे अनुसंधान के बाद एसीबी ने असवाल को रिटायरमेंट से तीन दिन पहले 26 सितंबर 2014 को गिरफ्तार किया था.