जयपुर. कोरोना महामारी में आम लोगों की ही जिंदगी बदहाल नहीं हुई है, बल्कि राजस्थान के ट्रांसजेंडर्स की भी हालत दयनीय हो गई है. एक तरफ कोरोना को लेकर जारी गाइड लाइन की वजह से इनका रोजी रोटी का का रास्ता बंद हो गया है, तो वहीं दूसरी ओर सरकार की ओर से बने नियम कायदे की वजह से इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में प्रदेश के हजारों ट्रांसजेंडर्स के सामने खाने के लाले पड़ हैं.
कोरोना संक्रमण और लॉक डाउन ने राजस्थान के ट्रांसजेंडर्स समुदाय के लोगों की रोजी रोटी छीन ली है. इस समुदाय की शादी विवाह जैसे मौकों पर ही कुछ कमाई हो जाया करती है, लेकिन कोरोना महामारी और लॉक डाउन की वजह से शादियों की संख्या में भारी गिरावट आई है. हालांकि, जो शादी विवाह के कार्यक्रम भी हो रहे हैं उनमें ज्यादा तड़क भड़क नहीं है, ऐसे में ट्रांसजेंडर्स की आमदनी में भी भारी कमी आई है. उनके लिए रोजी-रोटी का जुगाड़ कर पाना मुश्किल साबित हो रहा है.
ट्रांसजेंडर्स समुदाय के उत्थान के लिए काम कर रही किन्नर अखाड़ा संघ की अध्यक्ष पुष्पा माई बताती हैं कि पहले से ही आम लोगों से अलग-थलग माने जाने वाले ट्रांसजेंडर्स समुदाय के सामने कोरोना एक बड़ी मुसीबत के रूप में सामने आया है. इस समुदाय का मुख्य आय का स्रोत शादी विवाह समारोह या किसी घर में बच्चों के जन्म की खुशी के वक्त में बधाई से होता है, लेकिन कोरोना संक्रमण की वहज से अभी समुदाय घर से बाहर नहीं निकल पा रहा है. ऐसे में प्रदेश के हजारों ट्रांजेंडर्स के सामने अपनी आजीविका चलाना बड़ा मुश्किल हो गया है.
यह भी पढ़ेंः जयपुर जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सभी वर्ग से जुड़े नेताओं ने शुरू की लॉबिंग, OBC वर्ग ने की ये बड़ी मांग
पुष्पा बताती हैं कि सरकार की तरफ से कुछ आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई है, लेकिन उसके लिए बने नियम कायदे आड़े आ रहे हैं, जिसकी वजह से ट्रांसजेंडर समुदाय उसका लाभ नहीं ले पा रहा है. सरकार आर्थिक मदद उनके खाते में कर रही है, लेकिन ट्रांसजेंडर्स की बड़ी संख्या उनकी है जिनके पास में बैंक अकाउंट नहीं है. ऐसे में संस्था की ओर से कोशिश की जा रही है कि इन्हें अलग किसी माध्यम के जरिए उस आर्थिक योजना का लाभ मिल सके. यह सही है कि जो नियम कायदे सरकार की तरफ से बनाए जा रहे हैं उनकी वजह से इस समुदाय को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. पुष्पा माई बताती है कि समुदाय पढ़ा लिखा नहीं है, ऐसे में वो चीजों को ज्यादा नहीं समझ पाता है. इनके मन में डर है कि घर से बाहर निकलेंगे तो संक्रमित हो जाएंगे, इसलिए वह घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं. ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वो इस समुदाय के बारे में सोचे.
पुष्पा माई बताती हैं कि सरकार की तरफ से वैक्सीनेशन का अभियान चलाया जा रहा है, कहने को ट्रांसजेंडर्स को भी वैक्सीन के लिए प्रेरित किया जा रहा है, लेकिन उसमें आधार कार्ड अनिवार्य है, जबकि ज्यादातर ट्रांसजेंडर्स के पास में आधार कार्ड नहीं है, इसलिए उनके वैक्सीनेशन में भी दिक्कतें आ रही हैं. इतना ही नहीं अगर किसी ट्रांसजेंडर्स के पास आधार कार्ड है और वह उसे लेकर वैक्सीनेशन सेंटर पर पहुंच भी जाता है तो वहां पर सिर्फ महिला और पुरुष की ही लाइनें बनी हुई हैं, ट्रांजेंडर्स के लिए ना तो किसी तरह की कोई अलग से व्यवस्था की गई है और ना ही उनके लिए किसी तरह से वहां पर कोई निशान लगाए गए हैं. ऐसे में आम लोगों के बीच उन्हें वैक्सीनेशन नहीं लगाई जा रही है.
यह भी पढ़ेंः सचिन पायलट के सबसे करीबी नेता के बेटे ने Twitter पर किया पोस्ट- पिता पर लगाए ये आरोप
पुष्पा माई का कहना है कि एकल महिला योजना के तहत ट्रांसजेंडर्स को भी खाद्य सुरक्षा योजना में जोड़ा गया है, लेकिन आज भी इस समुदाय का कार्ड तक नहीं बना है. ऐसे में अभी तक एकल महिला सुरक्षा खाद्य योजना के कार्ड बन जाते तो इस समुदाय को रोजी रोटी के लिए दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता. उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर्स समुदाय हमेशा से ही हाशिये पर रहा है, चाहे समाज के बीच अपनी पहचान को तलाश करनी हो या फिर सरकार की योजनाओं का लाभ लेना हो. उनका कहना है कि मौजूदा समय में इस समुदाय को सरकार और सामाजिक संगठनों से मदद की दरकार है. बड़ी संख्या में ट्रांसजेंडर्स समुदाय के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है, हालांकि उसके लिए हम कुछ भामाशाह की मदद से खाने की राशन सामग्री उन तक पहुंचा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि कोरोना के फर्स्ट फेज में तो काफी लोगों ने आगे आकर मदद के हाथ बढ़ाए, लेकिन सेकेंड फेज में तो लोग काफी डरे हुए हैं. पुष्पा माई कहती हैं कि अगर सरकार को इस वर्ग को राहत देनी है तो उसके लिए उन्हें धरातल पर काम करने की जरूरत है. वैक्सीनेशन के लिए जो नियम बने हैं उन्हें सरलीकरण किया जाए, ताकि इस तबके को भी वैक्सीनेशन सहित अन्य योजनाओं का लाभ मिल सके.