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राजनीति 'राजे' के इर्द-गिर्दः सियासी ठंड हो या लू के थपेड़े...मरुधरा में वसुंधरा ही वसुंधरा!

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Published : Jun 23, 2021, 7:27 PM IST

राजस्थान बीजेपी की राजनीति मरुधरा में वसुंधरा के इर्द-गिर्द ही रही है. पिछले डेढ़ दशक से वसुंधरा के चेहरे पर ही बीजेपी अपना दांव खेलती रही है, लेकिन पिछले कुछ समय से वसुंधरा समर्थकों की बयानबाजी की वजह से बीजेपी और वसुंधरा, दोनों ही मीडिया की सुर्खियों में बने हैं. बात चाहे प्रदेशाध्यक्ष बनवाने की हो या विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चुनने की, हर जगह वसुंंधरा का हस्तक्षेप ये बताता है कि प्रदेश बीजेपी की सियासत वसुंधरा के आस-पास ही रही है.

राजस्थान बीजेपी में गुटबाजी, Rajasthan Politics
राजस्थान बीजेपी में गुटबाजी

जयपुर. राजस्थान बीजेपी की सियासत पिछले करीब डेढ़ दशक से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. फिर चाहे सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने का मामला हो या फिर गुटबाजी और बयानबाजी से पार्टी को हो रहे नुकसान का मसला. अब एक बार फिर राजे समर्थकों की बयानबाजी सुर्खियों में है, लेकिन वसुंधरा राजे पूरी पिक्चर से बाहर हैं. इस बीच एक नजर उन पुरानी घटनाओं पर भी डाल लेते हैं, जिसके चलते पिछले कुछ वर्षों में वसुंधरा राजे और बीजेपी सुर्खियों में रहे हैं.

नेता प्रतिपक्ष पद की लड़ाई में दिल्ली तक विधायकों की परेड

साल 2009 में जब प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस काबिज थी. विधानसभा चुनाव में हार के चलते वरिष्ठ पदों पर तैनात नेताओं से इस्तीफे मांग लिए गए थे, लेकिन इस बीच यह तय नहीं हो पा रहा था कि नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए. वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों का खेमा वसुंधरा राजे को नेता प्रतिपक्ष बनाए रखना चाहते थे. पार्टी का दबाव ज्यादा था तो राजे समर्थकों ने पार्टी आलाकमान पर दबाव भी बनाया. आलम ये रहा कि दिल्ली तक वसुंधरा समर्थकों की परेड तक करवा दी गई. तब विपक्ष के उप नेता के रूप में घनश्याम तिवाड़ी ने ही सदन के अंदर पार्टी की बागडोर संभाले रखी. तब प्रदेश भाजपा की गुटबाजी वसुंधरा राजे समर्थकों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही और यह पूरा घटनाक्रम मीडिया में सुर्खियों भी बना.

मरुधरा में वसुंधरा ही वसुंधरा!

कटारिया की मेवाड़ यात्रा के विरोध में वसुंधरा ने इस्तीफा की दी थी धमकी

नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया से भी कुछ साल पहले तक वसुंधरा राजे के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे. हम बात कर रहे हैं साल 2012 की शुरुआत की, जब तत्कालिक प्रदेश भाजपा कोर कमेटी के भीतर जब गुलाबचंद कटारिया की ओर से मेवाड़ क्षेत्र में राजनीतिक यात्रा निकाले जाने की चर्चा हुई. पार्टी के नेता चाहते थे कि कटारिया यात्रा निकालें, लेकिन वसुंधरा राजे इससे सहमत नहीं थीं और अपनी असहमति कोर कमेटी की बैठक में भी उन्होंने जता दी और अप्रत्यक्ष रूप से इस्तीफे तक की चेतावनी दे डालीं थीं. हालांकि, वसुंधरा राजे की नाराजगी को देखते हुए गुलाबचंद कटारिया अपनी यात्रा नहीं निकाल पाए, तब भी पार्टी के भीतर के ये खेमेबाजी जग जाहिर हुई थी और मीडिया में सुर्खियां बटोरी थी.

यह भी पढ़ेंः जयपुर में अरुण सिंहः BJP नेताओं से मंथन करने के बाद निकालेंगे गुटबाजी खत्म करने का 'अमृत'

BJP प्रदेशाध्यक्ष पद पर अपनी पसंद को तरजीह दिलवाने के लिए भी हुई थी खींचतान

साल 2018, अप्रैल महीने में प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के इस्तीफे के बाद इस पद पर कौन बैठेगा, इसको लेकर भी प्रदेश भाजपा में काफी कशमकश चली. सूत्र बताते हैं कि पार्टी आलाकमान खाली हुए इस पद पर जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को बैठाना चाहती थी, लेकिन राजे और उनके समर्थक इसके लिए राजी नहीं थे. हालांकि, इस बारे में वसुंधरा राजे ने कभी खुलकर कोई बयान नहीं दिया, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के दौरान थी राजे समर्थक नेताओं की दिल्ली में कई बार परेड हुई. करीब ढाई महीने तक यह गतिरोध चलता रहा और फिर बीच का रास्ता निकालते हुए मदन लाल सैनी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई, क्योंकि मदन लाल सैनी के नाम पर वसुंधरा राजे के बीच सहमति थी, तब भी इस पूरे घटनाक्रम को लेकर प्रदेश भाजपा की गुटबाजी जग जाहिर हुई थी और पार्टी की फजीहत भी हुई थी.

इन नेताओं से रही राजे की खींचतान

शुरुआती तौर पर वसुंधरा का सियासी कद राजस्थान में इतना बड़ा नहीं था, जितना पार्टी से जुड़े अन्य वरिष्ठ नेताओं का था. फिर चाहे बात की जाए ललित किशोर चतुर्वेदी की या पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह की. पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का लोकसभा से जुड़ा टिकट ना मिल पाना सबको पता है, उसके पीछे एक बड़ी वजह वसुंधरा राजे भी रहीं और पर्दे के पीछे यह बागावत सुलगती रही.

वहीं, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ललित किशोर चतुर्वेदी से भी राजे के संबंध बहुत मधुर नहीं माने जा सकते थे. इनके बीच में पर्दे के पीछे खींचतान से जुड़ी कई घटनाएं आज भी भाजपा नेता और कार्यकर्ताओं के जहन में ताजा है. इसके बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी से वसुंधरा की अदावत जगजाहिर है और अब प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे के बीच की दूरियां सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई हैं. वहीं, पिछले दिनों भाजपा मुख्यालय के बाहर लगे हार्डिंग से वसुंधरा राजे का चित्र गायब होने के बाद से राजे समर्थकों की बयानबाजी और तेज हो गई.

यह भी पढ़ेंः भाजपा प्रदेशाध्यक्ष पूनिया के बड़े बोल, अपनी पार्टी के नेताओं की तुलना कर दी महाभारत के शिशुपाल से

बतौर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के कार्यकाल में राजे विरोधियों की भाजपा में एंट्री

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर डॉ. सतीश पूनिया के काबिज होने के बाद राजस्थान भाजपा में उन नेताओं की भी एंट्री हुई, जो वसुंधरा राजे के विरोधी माने जाते थे. उनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं घनश्याम तिवाड़ी. लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी स्तर पर वसुंधरा विरोधी हनुमान बेनीवाल और उनकी पार्टी आरएलपी से भाजपा ने हाथ मिलाया और अपना सहयोगी दल भी बनाया. हालांकि, अब एनडीए से आरएलपी का गठबंधन खत्म हो चुका है.

पुरानी घटनाओं और अब में ये है असमानता

पुराने घटनाक्रमों में कहीं ना कहीं राजे अपनी असहमति को लेकर सामने आती रही हैं, लेकिन अब जो घटनाक्रम प्रदेश भाजपा में चल रहा है उसमें वसुंधरा राजे का नाम तो आ रहा है, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में वह कभी खुद खुलकर सामने नहीं आई हैं. मतलब वसुंधरा राजे समर्थक यह मांग कर रहे हैं कि राजे सर्वमान्य नेता हैं और उन्हें अगले मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट भी किया जाना चाहिए.

यह भी पढ़ेंः घर वापसी के लंबे अरसे बाद BJP मुख्यालय में दिखे घनश्याम तिवाड़ी, कुछ ने बनाई दूरी...तो कई के साथ दिखी नजदीकियां

हालांकि, विधानसभा चुनाव होने में ढाई साल से अधिक का समय शेष है, लेकिन जिस तरह राजे समर्थक इस प्रकार के बयानबाजी कर रहे हैं, उससे नुकसान पार्टी को ही है और खुद राजे को भी. यह भी संभव है कि जो घटनाक्रम चल रहा है इसके पीछे वसुंधरा राजे की रजामंदी ना हो, लेकिन अगर ऐसा है तो राजे को सार्वजनिक रूप से उनके नाम पर बयानबाजी कर रहे समर्थकों को रोकना चाहिए या फिर अपनी स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए, ताकि उनके नाम पर चल रही सियासत का पटाक्षेप हो सके. फिलहाल अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है.

अरुण सिंह के प्रवास के बाद थम सकती है बयानबाजी

मौजूदा स्थितियों में जिस प्रकार के बयान राजे समर्थक और संगठन के पदाधिकारियों की ओर से आ रहे हैं इस मामले में प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह ने अपने दो दिवसीय प्रवास के दौरान जयपुर में नेताओं को सख्त हिदायत दी है और यह भी कहा है जो नहीं मानेगा उस पर सख्त कार्रवाई भी होगी.

जयपुर. राजस्थान बीजेपी की सियासत पिछले करीब डेढ़ दशक से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. फिर चाहे सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने का मामला हो या फिर गुटबाजी और बयानबाजी से पार्टी को हो रहे नुकसान का मसला. अब एक बार फिर राजे समर्थकों की बयानबाजी सुर्खियों में है, लेकिन वसुंधरा राजे पूरी पिक्चर से बाहर हैं. इस बीच एक नजर उन पुरानी घटनाओं पर भी डाल लेते हैं, जिसके चलते पिछले कुछ वर्षों में वसुंधरा राजे और बीजेपी सुर्खियों में रहे हैं.

नेता प्रतिपक्ष पद की लड़ाई में दिल्ली तक विधायकों की परेड

साल 2009 में जब प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस काबिज थी. विधानसभा चुनाव में हार के चलते वरिष्ठ पदों पर तैनात नेताओं से इस्तीफे मांग लिए गए थे, लेकिन इस बीच यह तय नहीं हो पा रहा था कि नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए. वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों का खेमा वसुंधरा राजे को नेता प्रतिपक्ष बनाए रखना चाहते थे. पार्टी का दबाव ज्यादा था तो राजे समर्थकों ने पार्टी आलाकमान पर दबाव भी बनाया. आलम ये रहा कि दिल्ली तक वसुंधरा समर्थकों की परेड तक करवा दी गई. तब विपक्ष के उप नेता के रूप में घनश्याम तिवाड़ी ने ही सदन के अंदर पार्टी की बागडोर संभाले रखी. तब प्रदेश भाजपा की गुटबाजी वसुंधरा राजे समर्थकों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही और यह पूरा घटनाक्रम मीडिया में सुर्खियों भी बना.

मरुधरा में वसुंधरा ही वसुंधरा!

कटारिया की मेवाड़ यात्रा के विरोध में वसुंधरा ने इस्तीफा की दी थी धमकी

नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया से भी कुछ साल पहले तक वसुंधरा राजे के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे. हम बात कर रहे हैं साल 2012 की शुरुआत की, जब तत्कालिक प्रदेश भाजपा कोर कमेटी के भीतर जब गुलाबचंद कटारिया की ओर से मेवाड़ क्षेत्र में राजनीतिक यात्रा निकाले जाने की चर्चा हुई. पार्टी के नेता चाहते थे कि कटारिया यात्रा निकालें, लेकिन वसुंधरा राजे इससे सहमत नहीं थीं और अपनी असहमति कोर कमेटी की बैठक में भी उन्होंने जता दी और अप्रत्यक्ष रूप से इस्तीफे तक की चेतावनी दे डालीं थीं. हालांकि, वसुंधरा राजे की नाराजगी को देखते हुए गुलाबचंद कटारिया अपनी यात्रा नहीं निकाल पाए, तब भी पार्टी के भीतर के ये खेमेबाजी जग जाहिर हुई थी और मीडिया में सुर्खियां बटोरी थी.

यह भी पढ़ेंः जयपुर में अरुण सिंहः BJP नेताओं से मंथन करने के बाद निकालेंगे गुटबाजी खत्म करने का 'अमृत'

BJP प्रदेशाध्यक्ष पद पर अपनी पसंद को तरजीह दिलवाने के लिए भी हुई थी खींचतान

साल 2018, अप्रैल महीने में प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के इस्तीफे के बाद इस पद पर कौन बैठेगा, इसको लेकर भी प्रदेश भाजपा में काफी कशमकश चली. सूत्र बताते हैं कि पार्टी आलाकमान खाली हुए इस पद पर जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को बैठाना चाहती थी, लेकिन राजे और उनके समर्थक इसके लिए राजी नहीं थे. हालांकि, इस बारे में वसुंधरा राजे ने कभी खुलकर कोई बयान नहीं दिया, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के दौरान थी राजे समर्थक नेताओं की दिल्ली में कई बार परेड हुई. करीब ढाई महीने तक यह गतिरोध चलता रहा और फिर बीच का रास्ता निकालते हुए मदन लाल सैनी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई, क्योंकि मदन लाल सैनी के नाम पर वसुंधरा राजे के बीच सहमति थी, तब भी इस पूरे घटनाक्रम को लेकर प्रदेश भाजपा की गुटबाजी जग जाहिर हुई थी और पार्टी की फजीहत भी हुई थी.

इन नेताओं से रही राजे की खींचतान

शुरुआती तौर पर वसुंधरा का सियासी कद राजस्थान में इतना बड़ा नहीं था, जितना पार्टी से जुड़े अन्य वरिष्ठ नेताओं का था. फिर चाहे बात की जाए ललित किशोर चतुर्वेदी की या पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह की. पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का लोकसभा से जुड़ा टिकट ना मिल पाना सबको पता है, उसके पीछे एक बड़ी वजह वसुंधरा राजे भी रहीं और पर्दे के पीछे यह बागावत सुलगती रही.

वहीं, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ललित किशोर चतुर्वेदी से भी राजे के संबंध बहुत मधुर नहीं माने जा सकते थे. इनके बीच में पर्दे के पीछे खींचतान से जुड़ी कई घटनाएं आज भी भाजपा नेता और कार्यकर्ताओं के जहन में ताजा है. इसके बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी से वसुंधरा की अदावत जगजाहिर है और अब प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे के बीच की दूरियां सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई हैं. वहीं, पिछले दिनों भाजपा मुख्यालय के बाहर लगे हार्डिंग से वसुंधरा राजे का चित्र गायब होने के बाद से राजे समर्थकों की बयानबाजी और तेज हो गई.

यह भी पढ़ेंः भाजपा प्रदेशाध्यक्ष पूनिया के बड़े बोल, अपनी पार्टी के नेताओं की तुलना कर दी महाभारत के शिशुपाल से

बतौर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के कार्यकाल में राजे विरोधियों की भाजपा में एंट्री

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर डॉ. सतीश पूनिया के काबिज होने के बाद राजस्थान भाजपा में उन नेताओं की भी एंट्री हुई, जो वसुंधरा राजे के विरोधी माने जाते थे. उनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं घनश्याम तिवाड़ी. लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी स्तर पर वसुंधरा विरोधी हनुमान बेनीवाल और उनकी पार्टी आरएलपी से भाजपा ने हाथ मिलाया और अपना सहयोगी दल भी बनाया. हालांकि, अब एनडीए से आरएलपी का गठबंधन खत्म हो चुका है.

पुरानी घटनाओं और अब में ये है असमानता

पुराने घटनाक्रमों में कहीं ना कहीं राजे अपनी असहमति को लेकर सामने आती रही हैं, लेकिन अब जो घटनाक्रम प्रदेश भाजपा में चल रहा है उसमें वसुंधरा राजे का नाम तो आ रहा है, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में वह कभी खुद खुलकर सामने नहीं आई हैं. मतलब वसुंधरा राजे समर्थक यह मांग कर रहे हैं कि राजे सर्वमान्य नेता हैं और उन्हें अगले मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट भी किया जाना चाहिए.

यह भी पढ़ेंः घर वापसी के लंबे अरसे बाद BJP मुख्यालय में दिखे घनश्याम तिवाड़ी, कुछ ने बनाई दूरी...तो कई के साथ दिखी नजदीकियां

हालांकि, विधानसभा चुनाव होने में ढाई साल से अधिक का समय शेष है, लेकिन जिस तरह राजे समर्थक इस प्रकार के बयानबाजी कर रहे हैं, उससे नुकसान पार्टी को ही है और खुद राजे को भी. यह भी संभव है कि जो घटनाक्रम चल रहा है इसके पीछे वसुंधरा राजे की रजामंदी ना हो, लेकिन अगर ऐसा है तो राजे को सार्वजनिक रूप से उनके नाम पर बयानबाजी कर रहे समर्थकों को रोकना चाहिए या फिर अपनी स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए, ताकि उनके नाम पर चल रही सियासत का पटाक्षेप हो सके. फिलहाल अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है.

अरुण सिंह के प्रवास के बाद थम सकती है बयानबाजी

मौजूदा स्थितियों में जिस प्रकार के बयान राजे समर्थक और संगठन के पदाधिकारियों की ओर से आ रहे हैं इस मामले में प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह ने अपने दो दिवसीय प्रवास के दौरान जयपुर में नेताओं को सख्त हिदायत दी है और यह भी कहा है जो नहीं मानेगा उस पर सख्त कार्रवाई भी होगी.

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