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कांग्रेस से 7 सीट मांगने वाले बेनीवाल...भाजपा से 1 सीट पर कैसे मान गए...यह है वजह - BJP

लोकसभा के सियासी जमीन को साधने में जुटी भाजपा और हनुमान बेनीवाल की रालोपा के बीच हुए गठबंधन को लेकर सियासी चर्चाओं का बाजार गरम है. वहीं, इस गठबंधन को लेकर बेनीवाल के रुख को लेकर भी कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं....

हनुमान बेनीवाल और भाजपा के बीच गठबंधन।
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Published : Apr 5, 2019, 2:21 PM IST

जयपुर . लोकसभा चुनाव के मैदान में बिछी बिसात पर भाजपा-कांग्रेस की ओर से चली जा रही चालों के बीच गठबंधन की राजनीति ने सियासी पारे को चढ़ा दिया है. लोकसभा के सियासी जमीन पर भाजपा और हनुमान बेनीवाल के बीच हुए गठबंधन के बाद इसके राजनीतिक असर को लेकर जहां कई तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं. वहीं, ये चर्चा भी सियासी हलकों में तेज हो गई है कि कांग्रेस के 3 सीटों का प्रस्ताव ठुकराने वाले बेनीवाल आखिर भाजपा के सामने 1 सीट पर कैसे मान गए?

लोकसभा के चुनावी पारे के साथ ही ये सवाल भी सियासतदारों के जुबान पर चढ़ा हुआ है. इस सवाल को लेकर गरमाई सियासी चर्चाओं के बाजार के बीच कयासों का दौर जारी है. दरअसल, हनुमान बेनीवाल ने अपनी पार्टी रालोपा (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) के जरिए लोकसभा के सियासी जमीन पर प्रत्याशी उतारने का एलान किया था. इसके बाद बदले समीकरण के बीच बेनीवाल और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया. लेकिन, सीटों के बंटवारे को लेकर फंसे पेच के चलते दोनों के बीच सहमति नहीं बन पाई थी. सूत्रों ने बताया कि हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस से 7 सीटें मांगी थी, लेकिन कांग्रेस रालोपा को केवल 3 सीटें ही देने को तैयार थी. इसके बाद बेनीवाल ने कांग्रेस की ओर से दिया गया गठबंधन का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. लेकिन, उसके बाद गठबंधन को लेकर भाजपा के साथ शुरू हुई बातचीत के बीच बेनीवाल 1 सीट नागौर पर मानते हुए सहमति दे दी. नागौर सीट से गठबंधन के तहत हनुमान बेनीवाल चुनाव लड़ेंगे, जबकि, भाजपा 24 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

बेनीवाल के इस रुख ने सियासी हलकों में तमाम चर्चाओं को जन्म दे दिया है. बेनीवाल के इस निर्णय को लेकर राजनीति के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन का मौका चूकने के बाद अब रालोपा के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचा हुआ था. वहीं, यह भी माना जा रहा है कि पार्टी बनाने के बाद विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी रालोपा लोकसभा चुनाव में अकेले के दम पर चुनाव जीतने को लेकर आशंकाओं से भरी हुई थी. क्योंकि, 2014 के सियासी जमीन पर बेनीवाल मात खा चुके हैं. इस चुनाव में वे तीसरे नंबर पर रहे थे. उस चुनाव के दौरान भाजपा-कांग्रेस के सामने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे बेनीवाल ने 1 लाख 59 हजार वोट हासिल किए थे. जानकारों का कहना है कि लोकसभा के सियासी जमीन पर फजीहत के डर के चलते भी बेनीवाल भाजपा के 1 सीट के प्रस्ताव पर तैयार हो गए. नागौर सीट पर भाजपा समर्थन मिलने के बाद बेनीवाल यहां के सियासी गणित को ज्यादा बेहतर तरीके से साधने में लगे हैं. लेकिन, उनके सामने कांग्रेस की प्रत्याशी ज्योति मिर्धा बड़ी चुनौती बनी हुई हैं.

जयपुर . लोकसभा चुनाव के मैदान में बिछी बिसात पर भाजपा-कांग्रेस की ओर से चली जा रही चालों के बीच गठबंधन की राजनीति ने सियासी पारे को चढ़ा दिया है. लोकसभा के सियासी जमीन पर भाजपा और हनुमान बेनीवाल के बीच हुए गठबंधन के बाद इसके राजनीतिक असर को लेकर जहां कई तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं. वहीं, ये चर्चा भी सियासी हलकों में तेज हो गई है कि कांग्रेस के 3 सीटों का प्रस्ताव ठुकराने वाले बेनीवाल आखिर भाजपा के सामने 1 सीट पर कैसे मान गए?

लोकसभा के चुनावी पारे के साथ ही ये सवाल भी सियासतदारों के जुबान पर चढ़ा हुआ है. इस सवाल को लेकर गरमाई सियासी चर्चाओं के बाजार के बीच कयासों का दौर जारी है. दरअसल, हनुमान बेनीवाल ने अपनी पार्टी रालोपा (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) के जरिए लोकसभा के सियासी जमीन पर प्रत्याशी उतारने का एलान किया था. इसके बाद बदले समीकरण के बीच बेनीवाल और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया. लेकिन, सीटों के बंटवारे को लेकर फंसे पेच के चलते दोनों के बीच सहमति नहीं बन पाई थी. सूत्रों ने बताया कि हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस से 7 सीटें मांगी थी, लेकिन कांग्रेस रालोपा को केवल 3 सीटें ही देने को तैयार थी. इसके बाद बेनीवाल ने कांग्रेस की ओर से दिया गया गठबंधन का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. लेकिन, उसके बाद गठबंधन को लेकर भाजपा के साथ शुरू हुई बातचीत के बीच बेनीवाल 1 सीट नागौर पर मानते हुए सहमति दे दी. नागौर सीट से गठबंधन के तहत हनुमान बेनीवाल चुनाव लड़ेंगे, जबकि, भाजपा 24 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

बेनीवाल के इस रुख ने सियासी हलकों में तमाम चर्चाओं को जन्म दे दिया है. बेनीवाल के इस निर्णय को लेकर राजनीति के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन का मौका चूकने के बाद अब रालोपा के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचा हुआ था. वहीं, यह भी माना जा रहा है कि पार्टी बनाने के बाद विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी रालोपा लोकसभा चुनाव में अकेले के दम पर चुनाव जीतने को लेकर आशंकाओं से भरी हुई थी. क्योंकि, 2014 के सियासी जमीन पर बेनीवाल मात खा चुके हैं. इस चुनाव में वे तीसरे नंबर पर रहे थे. उस चुनाव के दौरान भाजपा-कांग्रेस के सामने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे बेनीवाल ने 1 लाख 59 हजार वोट हासिल किए थे. जानकारों का कहना है कि लोकसभा के सियासी जमीन पर फजीहत के डर के चलते भी बेनीवाल भाजपा के 1 सीट के प्रस्ताव पर तैयार हो गए. नागौर सीट पर भाजपा समर्थन मिलने के बाद बेनीवाल यहां के सियासी गणित को ज्यादा बेहतर तरीके से साधने में लगे हैं. लेकिन, उनके सामने कांग्रेस की प्रत्याशी ज्योति मिर्धा बड़ी चुनौती बनी हुई हैं.

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