जयपुर. देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चर्चा की. पीएम मोदी की इस वीसी में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी जुड़े लेकिन सीएम गहलोत को अपनी बात रखने का मौका नहीं मिल पाया. जिसके बाद सीएम गहलोत ने सोशल मीडिया के जरिए अपने सुझाव सबके सामने रखें (CM Gehlot Suggestion for Corona).
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने गुरुवार को कोविड की स्थिति को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा की. इसमें केवल 8 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ही अपनी बात रखने का अवसर मिल सका. गहलोत ने चर्चा में अवसर नहीं मिलने के कारण सोशल मीडिया के माध्यम से जनहित में कोविड प्रबंधन को लेकर अपने सुझाव साझा किए.
![CM Gehlot Suggestion for Corona](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/rj-jpr-04-pmvccm-pkg-7203319_13012022214258_1301f_1642090378_241.jpg)
सीएम गहलोत ने यह रखे सुझाव
केन्द्र सरकार ने फिलहाल कोविड वैक्सीन की प्रिकॉशन डोज 60 साल से अधिक आयु के को-मोर्बिड व्यक्तियों को लगाने के निर्देश दिए हैं . चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक को मोर्बिड की स्थिति हर आयु वर्ग में देखने को मिलती है, इसलिए प्रिकॉशन डोज सभी के लिए उपलब्ध हो.
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दूसरी डोज के बाद प्रिकॉशन डोज के लिए 9 माह का अन्तराल रखा गया है, जो काफी अधिक है . इसे 3 से 6 माह किया जाना उचित होगा, क्योंकि समय के साथ वैक्सीन का प्रभाव कम होने लगता है. दुनिया के कई देशों में 2 साल की आयु तक के छोटे बच्चों को वैक्सीन लग रही है, लेकिन भारत में फिलहाल 15 से 18 साल तक के किशोर वर्ग का वैक्सीनेशन हो रहा है . चूंकि हमारे देश के बच्चों में पोषण से संबंधित समस्याएं पहले से ही हैं . ऐसे में इतने बड़े मुल्क में छोटे बच्चों का वैक्सीनेशन जल्द शुरू होना जरूरी है.
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छोटे बच्चों का जल्द हो वैक्सीनेशन
देखा जा रहा है कि लोगों में पोस्ट कोविड के रूप में अस्थमा, हार्ट, किडनी और ब्रेन स्ट्रोक से संबंधित तकलीफ और बीमारियां हो रही हैं. मुझे भी हार्ट ब्लॉकेज की समस्या होने के कारण एक स्टंट लगवाना पड़ा. बच्चों में भी पोस्ट कोविड की समस्याएं हो सकती हैं. जिसे मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेट्री सिंड्रोम इन चिल्ड्रन (एमएसआईसी) के रूप में जाना जाता है. इसमें मृत्यु दर बढ़ जाती है. इसे देखते हुए भी छोटे बच्चों का वैक्सीनेशन जल्द होना चाहिए.
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दुनिया के विकसित राष्ट्रों में वैक्सीनेशन की गति काफी अधिक है. जबकि अल्प विकसित और गरीब देशों में इसका प्रतिशत अपेक्षाकृत काफी कम के साथ में आता है कि वे इस पर होने वाले व्यय को वहन नहीं कर पा रहे हैं. यह चिंताजनक है, क्योंकि किसी भी देश में यह महामारी रहने से पूरी दुनिया को खतरा बना रहेगा. उदाहरण के तौर पर पहली लहर का प्रभाव अधिक घातक नहीं था, लेकिन दूसरी लहर में डेल्टा वायरस पूरे विश्व के लिए घातक सिद्ध हुआ. इसमें लाखों लोगों की जान चली गई. यह वायरस भारत से दुनिया के दूसरे मुल्कों में पहुंचा. इसी तरह से दक्षिणी अफ्रीका से आया ओमीकॉन वायरस विश्वभर में फैल चुका है. ऐसे में अंतिम व्यक्ति तक वैक्सीनेशन सुनिश्चित करना आवश्यक है.
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कोरोना वायरस का मिजाज जिस तरह से बदलता है, उस स्थिति में जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा का व्यापक विस्तार जरूरी है. वर्तमान में देश में यह सुविधा नगण्य स्तर पर उपलब्ध हैं. संतोष की बात है कि राजस्थान में हर सैम्पल की जीनोम सिक्वेंसिंग का प्रयास किया जा रहा है, जिससे हमें ओमीक्रॉन के बढ़ते केसों का पैटर्न पता चल सका है. अब तक की गई जीनोम सिक्वेंसिंग में 92 प्रतिशत केस ओमिकॉन से संक्रमित पाए गए हैं. भविष्य में किसी भी वैरिएंट का पता लगाने के लिए जरूरी है कि सभी राज्यों में वृहद स्तर पर जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा विकसित हो.
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दुनिया के कई देशों में फाइजर, मॉडर्ना आदि कंपनियों की वैक्सीन को मान्यता दी गई है. देश में भी निजी क्षेत्र में इन्हें मान्यता दिया जाना उचित होगा. आर्थिक रूप से सक्षम लोग इसका उपयोग कर सकेंगे, इससे सरकार पर भी आर्थिक भार कम होगा.
राजस्थान में 90 प्रतिशत में एंटीबॉडी पाई गई-गहलोत
मुझे यह बताते हुए संतोष है कि राजस्थान में सीरो सर्विलांस करवाया गया (sero surveillance in rajasthan), जिसमें 90 प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी पाई गई है. यह इंगित करता है कि प्रदेश में कोविड संक्रमण की कम्यूनिटी स्प्रेडिंग होकर हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो चुकी है. फिर भी वैक्सीनेशन आवश्यक है, ताकि एंटीबॉडी और मजबूत हो जाए (Vaccination in Rajasthan).
राजस्थान के कोविड प्रबंधन की तारीफ की
![CM Gehlot Suggestion for Corona](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14181141_338_14181141_1642091294150.png)
यह बताते हुए भी प्रसन्नता है कि हर वर्ग के सहयोग से राजस्थान का कोविड प्रबंधन पहली लहर से ही बेहतरीन रहा और दुनियाभर में इसे सराहा गया. अब राज्य में पिछले बजट की घोषणा के अनुरूप हमने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए 130 करोड़ रूपए की लागत से 'इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मेडिसिन और वायरोलॉजी' की स्थापना का काम शुरू कर दिया गया. इसमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे और स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन, कोलकाता, दोनों की विशेषज्ञताओं एवं आधुनिकतम सुविधाओं का समावेश किया जा रहा है. जिससे भविष्य में वायरसजनित बीमारियों के अध्ययन और चुनौतियों से निपटने में आसानी होगी और पूरे देश को इसका लाभ मिलेगा. यह राजस्थान की बड़ी उपलब्धि होग .