जयपुर. प्रदेश में 3 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने प्रदेश भाजपा नेताओं के दावों की तो पोल खोल ही दी, लेकिन जिन नेताओं को पार्टी ने इन तीनों ही विधानसभा क्षेत्रों में कमान सौंपी थी उनकी भी संगठनात्मक कौशल और सियासी पकड़ की सच्चाई सबके सामने आ गई है. उपचुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि भाजपा के अधिकतर दिग्गज फेल हो गए कुछ एक पास तो हुए, लेकिन वजीफा मिलने लायक नंबर उनको भी नहीं दिए जा सकते.
सहाड़ा सीट पर बीजेपी के दिग्गजों के राजनीतिक कौशल की निकली हवा
इन उपचुनाव में यदि बीजेपी को सबसे बड़ी और करारी हार मिली है तो वह है सहाड़ा विधानसभा सीट. इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी को 42,200 मतों से हार का सामना करना पड़ा. सहाड़ा सीट पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कई बार पहुंचकर चुनावी प्रचार और संगठनात्मक बैठक लिए, तो वहीं विधायक दल के सचेतक जोगेश्वर गर्ग और प्रदेश मंत्री श्रवण सिंह बगड़ी यहां संगठनात्मक रूप से जिम्मेदारी संभाल रहे थे.
इसके अलावा भीलवाड़ा सांसद सुभाष महरिया, चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी और क्षेत्रीय विधायक विट्ठल शंकर के साथ ही भाजपा नेताओं की लंबी चौड़ी फौज यहां कैंप की हुई थी. केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी ने भी यहां कुछ एक चुनावी सभा और प्रचार किया था, लेकिन इन सभी नेताओं के राजनीतिक कौशल की हवा सहाड़ा विधानसभा सीट में निकल गई. मतलब इन जिम्मेदार नेताओं का संगठन में भी सियासी कद कम हुआ और परफॉर्मेंस कार्ड भी खराब हुआ.
सुजानगढ़ सीट पर धराशाई हुए भाजपा के ये दिग्गज
सुजानगढ़ सीट चूरू जिले में आती है और यहां से प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ आते हैं. लेकिन, बीजेपी प्रत्याशी खेमाराम मेघवाल इस सीट पर 35,611 वोटों से हारे. इस सीट पर भाजपा ने राजेंद्र राठौड़ के साथ ही केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, स्थानीय सांसद राहुल कस्वां और उनके पिता को पूरी जिम्मेदारी सौंपी थी. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी इस सीट पर पहुंचकर कई बार चुनाव प्रचार किया और चुनावी सभा में यहां वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवारी भी नजर आए.
पढ़ें- राजस्थान उपचुनाव के नतीजे: ना कांग्रेस जीती ना भाजपा हारी...सहानूभूति की पतवार से नैया पार
इन सबके बद भी सुजानगढ़ सीट पर परिणाम बीजेपी के पक्ष में नहीं आया या फिर कहें बीजेपी को यहां करारी हार मिली. मतलब सतीश पूनिया, उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, सांसद राहुल कस्वां, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल का राजनीतिक कौशल यहां कांग्रेस नेताओं के आगे धराशाई हुआ और पार्टी और संगठन में इनकी परफॉर्मेंस भी गिर गई.
राजसमंद सीट पर इन बीजेपी नेताओं ने बचाई लाज
मौजूदा उपचुनाव में राजसमंद ही एकमात्र ऐसी सीट रही जहां बीजेपी की इज्जत बच पाई है. हालांकि, यहां भाजपा प्रत्याशी दीप्ति माहेश्वरी महज 5310 वोट से ही जीत पाई. जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां 24,623 मतों से जीत मिली थी. इस सीट पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी कई बार पहुंचकर चुनावी प्रचार और बैठक ली थी.
इस सीट पर जिन भाजपा नेताओं को जिम्मेदारी दी गई थी उनमें सबसे प्रमुख हैं स्थानीय सांसद और प्रदेश महामंत्री दीया कुमारी. साथ ही नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया उदयपुर संभाग से आते हैं, लिहाजा उनकी प्रतिष्ठा भी इस सीट से जुड़ी हुई थी. वहीं, प्रदेश महामंत्री मदन दिलावर और विधायक वासुदेव देवनानी के साथ ही सुरेंद्र राठौड़ को यहां भाजपा प्रत्याशी को जिताने की जिम्मेदारी संगठन ने सौंपी थी, जिसमें वे पास हो गए. लिहाजा संगठन में इनका राजनीतिक कौशल भी साबित हुआ और सियासी रूप से कद भी बड़ा हुआ.
पढ़ें- राजस्थान उपचुनाव 2021: बीजेपी पर हावी रही गुटबाजी, कांग्रेस ने मारी उपचुनाव की बाजी
हार के कारणों पर शुरू हुआ चिंतन
उपचुनाव में बीजेपी का वोटिंग प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कम हुआ है. साथ ही 2 विधानसभा सीटों पर बड़े अंतराल से हुई हार प्रदेश भाजपा नेताओं के लिए चिंता का विषय है. लेकिन, इन उपचुनाव की जिम्मेदारी भी इन्हीं नेताओं के जिम्मे थी जिन्हें हार के कारणों का चिंतन और विश्लेषण करना है. लिहाजा विश्लेषण के काम में ये नेता जुट गए हैं ताकि समय रहते उसमें सुधार भी हो और साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में वो गलती ना दोहराई जाए जो इन उपचुनाव में भाजपा की ओर से हुई.