जयपुर. कहते हैं सेवा का न कोई धर्म होता है, न कोई जाति, प्यासे को पानी पिलाना ही सबसे बड़ा धर्म माना जाता है. राजधानी (Pani wale Baba of Jaipur) जयपुर के ब्रह्मपुरी क्षेत्र में महाराज की ठंडे प्याऊ पर 72 वर्षीय बाबा बीते 40 साल से इसी धर्म का निर्वहन कर रहे हैं. जहां राहगीर की जाति-धर्म को परे रख, सिर्फ सेवा की जाती है. इनके आगे-पीछे कोई नहीं, लेकिन राहगीरों के प्रति सेवा भाव की वजह से आज पूरा शहर इनका परिवार बन चुका है.
पारंपरिक तरीके से करते हैं पानी ठंडा : यहां पर पुरानी पद्धति के मिट्टी के घड़े हैं, उनको मिट्टी में ही दबा कर पानी को ठंडा किया जाता है. ये पानी बिना किसी इक्विपमेंट के ठंडा होता है. पानी वाले बाबा ने बताया कि उनका कोई नाम नहीं है, बस यही पहचान है. जयपुर के आराध्य गोविंददेवजी मंदिर प्रांगण में बैठकर ये विचार आया कि सब कुछ यहीं रह जाएगा, तो क्यों ना लोगों की सेवा ही कर ली जाए. इससे मन को शांति मिलती है. आने-जाने वाला भगवान का नाम लेता है. यहां कोई न कोई सेवा करने वाला रोज आ जाता है. यहां नल लगा हुआ है, वहां से लोग पानी भर लेते हैं. जब कोई नहीं होता तो वो खुद ये काम करते हैं. दिन में दो से तीन बार मटकों और मिट्टी पर छिड़काव कर पानी को ठंडा किया जाता है.
अमृत से कम नहीं ये जल : बचपन से महाराज की प्याऊ पर आ रहे एक युवक ने बताया कि यहां साफ सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है. यहां पर बिना बर्फ का ठंडा पानी मिलता है. इनकी उम्र 72 वर्ष हो चुकी है. इस उम्र के लोग घर से बाहर नहीं निकलते, लेकिन महाराज 12 महीने इसी तरह जल सेवा करते हैं. वहीं एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि वो जयपुर में करीब 25 वर्ष से रह रहे हैं. जब भी इस क्षेत्र से निकलना होता है, तो यहां रूक कर पानी जरूर पीते हैं. जयपुर में बहुत सी प्याऊ हैं, लेकिन यहां के पानी में जो शुद्धता है वो अमृत से कम नहीं है. एक महिला ने बताया कि 10 साल ये यहां से गुजरते हुए ठंडा, सुगंधित, मीठा पानी पीने को मिलता है. साथ में बाबा का आशीर्वाद भी मिलता है.
आमदनी से ज्यादा मन की शांति जरूरी : पानी वाले बाबा ने बताया कि यहां पानी पिलाने से उन्हें मन की शांति मिलती है. जहां तक जीविकोपार्जन का सवाल है, आने- जाने वाले इच्छा शक्ति के अनुसार दान राशि रख जाते हैं. कोई मटके रख जाते हैं. कोई दूसरा सहयोग कर देता है. इसी से जीवन की गाड़ी चल रही है.
'मैं तो हूं अकेला पंछी' : महाराज ने बताया कि उनके आगे पीछे कोई नहीं, वो अकेले पंछी हैं. पहले पुरानी बस्ती में निवास किया करते थे. फिर किसी सामाजिक कार्यकर्ता के सहयोग से इस प्याऊ की व्यवस्था हुई, अब यहीं विश्रांति करते हैं. भगवान के आशीर्वाद के साथ आमजन की सेवा कार्य में लगातार जुटे हुए हैं. उनके इस सेवा कार्य की वजह से आज पूरा शहर उनका परिवार बन गया है.